गंगा संस्कृति, धर्म व जीवन की 'त्रिवेणी' : परवेज
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है, बल्कि इसमें संस्कृति, धर्म एवं जीवन की 'त्रिवेणी' बहती है। इसे निर्मल करने के नाम पर सदियों से चली आ रही धार्मिक परंपराओं को रोका नहीं जा सकता और न ही पूजन सामग्री और शव प्रवाह आदि होने से यह दूषित होंगी। यह बात वीर नर्मद साउथ गुजरात विश्वविद्यालय सूरत के समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. परवेज अब्बासी ने कही। गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान झूंसी में गंगा के प्रबंधन एवं संरक्षण में शैक्षिक संस्थानों की भूमिका एवं जिम्मेदारी विषय पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में भाग लेने आए प्रो. अब्बासी ने 'दैनिक जागरण' से मंगलवार को बातचीत की। उन्होंने कहा कि वेद, उपनिषद व पुराण से गंगा का गहरा संबंध है, क्योंकि जीवन के विभिन्न संस्कार गंगा जल से या फिर गंगा के किनारे होते हैं। प्रो. अब्बासी ने कहा कि गंगा में धार्मिक मान्यताओं को नहीं रोक सकते, क्योंकि यह सामाजिक संरचना से जुड़ा संस्कार है। पूजन सामग्री और शवों के प्रवाह से नदी प्रदूषित नहीं होगी, गंगा का प्रवाह न रोका जाए। बोले, गंगा में शहरों का सीवर गिरने से रोका जाना चाहिए। वह भी आज की तकनीक से। जापान की विधा पूरी तरह नहीं लागू कर सकते, क्योंकि वहां नदी को कंकरीट कर दिया गया है, ऐसा यहां करने से जीव-जंतु प्रभावित होंगे। इसलिए आंशिक बदलाव करना चाहिए। साबरमती नदी को साफ करने के तरीके सुझाने वाले प्रो. अब्बासी ने कहा कि गुजरात में नदी में गिरने वाले सीवर को शुद्ध करके झील में डाला गया, जहां सुंदर पार्क बनाया गया है।
उन्होंने कहा कि जब मिश्र, सिंगापुर, इंडोनेशिया, जापान आदि देशों की नदियां धर्म से न जुड़ी होने के बाद भी साफ हो सकती हैं तो धर्म से जुड़ी गंगा को साफ करने में क्या मुश्किल है, जो गंगा को धर्म से नहीं जोड़ते वह पर्यावरण की खातिर इसे साफ करें। अब्बासी ने कहा कि मोदी सरकार गंगा के प्रति गंभीर है। अलग मंत्रालय बनाकर व बजट देकर इसका रास्ता भी प्रशस्त कर दिया है। जरूरत है लोग, सरकार, बुद्धिजीवी सभी पूरे मन से इस कार्य में जुट जाएं।