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आश्रित के अधिकार पर तंत्र का अड़ंगा

अलीगढ़ : भारतीय संविधान ने 'द ¨हदू एडोप्शन एंड मेंटीनेंस एक्ट 1956' में गोद लिए बच्चे को वो सभी अधिक

By JagranEdited By: Published: Fri, 24 Feb 2017 02:27 AM (IST)Updated: Fri, 24 Feb 2017 02:27 AM (IST)
आश्रित के अधिकार पर तंत्र का अड़ंगा
आश्रित के अधिकार पर तंत्र का अड़ंगा

अलीगढ़ : भारतीय संविधान ने 'द ¨हदू एडोप्शन एंड मेंटीनेंस एक्ट 1956' में गोद लिए बच्चे को वो सभी अधिकार दिए हैं, जो उस परिवार के बाकी सदस्यों को प्राप्त हैं। एक शख्स पिछले डेढ़ साल से यही साबित करने की कोशिश में लगा है। मगर, बिजली विभाग के अफसर संतुष्ट नहीं हैं। किस्सा मृतक आश्रित कोटे में नौकरी पाने का है।

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28 साल पहले : रामघाट रोड स्थित पहलवान कॉलोनी, किशनपुर निवासी पन्नालाल बारहद्वारी सब स्टेशन लाइन मैन थे। इनकी कोई संतान नहीं थी। 22 अक्टूबर 1989 में उन्होंने एटा निवासी अपने साले सुशील से बेटा धर्मेद्र गोद लिया। धर्मेद्र का पालन-पोषण, पढ़ाई-लिखाई पन्नालाल और उनकी पत्‍‌नी सुषमा देवी ने की। धर्मेद्र ने इंटर पास कर ली। किसी ने कानूनी तौर पर धर्मेद्र को बेटा घोषित करने की सलाह दी तो 2002 में गोदनामा रजिस्टर्ड करा लिया। उसे वारिसान हक मिल गया। 22 सितंबर, 15 में पन्नालाल का सेवा में रहते हुए निधन हो गया। धर्मेद्र ने पिता के स्थान पर नौकरी पाने की जिद्दोजहद शुरू कर दी, मगर सफल नहीं हो सका।

मां की गुहार : सुषमा देवी ने भी धर्मेद्र को मृतक आश्रित कोटे में नौकरी दिलाने की तमाम कोशिशें कीं। मुख्य अभियंता को इस संबंध में पत्र लिखा गया। बताया कि मृतक आश्रित कोटे में सेवायोजन के लिए अधिशासी अभियंता को प्रार्थना पत्र दिया था, जो आवश्यक दस्तावेजों के साथ 29 अगस्त, 16 को अधीक्षण अभियंता को अग्रसारित कर दिया गया। छह सितंबर को प्रार्थना पत्र आपत्तियां लगाकर वापस भेज दिया। आरोप है कि अफसरों ने फर्जी दस्तावेज का हवाला देकर उल्टा मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दे दी। ये नहीं बताया कि दस्तावेज फर्जी कैसे हैं? महिला की पीड़ा है कि पति की मौत को डेढ़ साल हो गया, न क्लेम फाइनल हुआ, न ही बेटे को नौकरी मिली। जिला मजिस्ट्रेट के दफ्तर से जारी वारिसान प्रमाण पत्र, गोदनामा समेत तमाम जरूरी दस्तावेज पेश कर दिए गए। शपथ पत्र भी दिया जा चुका है।

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मृतकाश्रित कोटे में सेवायोजन के लिए जो दस्तावेज लगाए गए हैं, वह फर्जी प्रतीत हो रहे हैं। शैक्षिक प्रमाण पत्र में नाम गलत अंकित है, गोदनामा भी 2002 का है, जबकि बचपन में गोद लेने की बात की जा रही है। दस्तावेजों की जांच चल रही है।

सतगुरु श्रीवास्तव, अधीक्षण अभियंता


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