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70 साल बाद भी पाकिस्तान के नाम हिन्दुस्तान की जमीन

हिन्दुस्तान के बंटवारे के समय 1947 में कुछ लोग यहां से पाकिस्तान चले गए थे लेकिन उनकी जमीन रह गई।

By amal chowdhuryEdited By: Published: Fri, 21 Jul 2017 01:02 PM (IST)Updated: Fri, 21 Jul 2017 01:02 PM (IST)
70 साल बाद भी पाकिस्तान के नाम हिन्दुस्तान की जमीन
70 साल बाद भी पाकिस्तान के नाम हिन्दुस्तान की जमीन

अलीगढ़ (जागरण संवाददाता)। पाकिस्तान को भारत से अलग हुए भले ही 70 साल हो गए लेकिन यहां की जमीन आज भी वहां के नागरिकों के नाम है। ऐसी ही जमीन कोल तहसील के गांव वीरपुर छबीलगढ़ी में है। अफसरों की से लाखों रुपये की 70 बीघा जमीन पाकिस्तानी नागरिक मसर्रत अली के नाम है।

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जमीन पर कब्जा भी यहां रह रहे मसर्रत अली के भतीजे सैफी का है और वे खेती कर रहे हैं। जबकि यह जमीन शत्रु संपत्ति घोषित होनी चाहिए थी। ग्राम प्रधान ने खतौनी सौंपकर प्रशासन से जांच की मांग की है।

यह है शत्रु संपत्ति: हिन्दुस्तान के बंटवारे के समय 1947 में कुछ लोग यहां से पाकिस्तान चले गए थे लेकिन उनकी जमीन रह गई। इस जमीन को शत्रु संपत्ति का नाम दिया गया। तहसीलों में इसकी पहचान भी शत्रु संपत्ति के नाम से ही है। यह सरकारी संपत्ति की तरह प्रयोग होती है। इस पर मालिकाना हक जिला प्रशासन का होता है। लोकसभा में भी शत्रु संपत्ति को सरकारी घोषित करने के लिए विधेयक पास हो चुका है। सरकारी रिकॉर्ड में जिले में 17 शत्रु संपत्ति हैं। सबसे अधिक 11 शत्रु संपत्ति कोल तहसील में हैं। खैर में तीन, गभाना में एक और अतरौली में दो शत्रु संपत्ति हैं।

बंटवारे में हुए थे अलग: कोल तहसील के गांव वीरपुर छबीलगढ़ी निवासी मसर्रत अली परिवार के साथ पाकिस्तान चले गए थे। उनके भाई यहां रह गए। पाकिस्तान जाने के बाद उनकी संपत्ति पर विवाद शुरू हो गया। प्रशासन ने संपत्ति को शत्रु संपत्ति में शामिल कर लिया, लेकिन कब्जा नहीं लिया। गांव में भी मसर्रत अली के भतीजे सैफी ने कब्जा कर इस पर खेती शुरू कर दी।

दर्ज हो गया पाकिस्तानी पता: खतौनी में जमीन शत्रु संपत्ति के रूप में दर्ज होनी चाहिए, लेकिन कई सालों पहले ही जमीन को लेकर कोल तहसील में खेल हो गया। इस जमीन को शत्रु संपत्ति की बजाय मसर्रत अली के नाम पाकिस्तानी पते पर दर्ज कर दिया।

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एसडीएम को सौंपी जांच: बुधवार को ग्राम प्रधान सुनील कुमार ने इसकी शिकायत प्रशासन से की। पहले तो उनकी बात पर विश्वास नहीं किया गया, लेकिन खतौनी में दर्ज नाम-पते के सबूत दिखाए गए तो अफसरों के होश उड़ गए। एडीएम प्रशासन ने जांच की जिम्मेदारी एसडीएम कोल डॉ. पंकज कुमार वर्मा को दी है। अगर जांच में आरोप सही पाए जाते हैं तो कब्जा करने वालों पर मुकदमा दर्ज कर रिकवरी भी की जाएगी।

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