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मजहब की गली में मोहब्बत का घर

By Edited By: Published: Fri, 10 Aug 2012 02:17 AM (IST)Updated: Fri, 10 Aug 2012 02:18 AM (IST)
मजहब की गली में मोहब्बत का घर

वरिष्ठ संवाददाता, अलीगढ़ :

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'मौसम बदला, रुत बदली है

यूं ही नहीं दिलशाद हुए..,

हिंदू-मुस्लिम जब एक हुए

तब जाकर आजाद हुए।'

सामाजिक-धार्मिक सौहार्द की बातें करने वाले बहुत मिलेंगे, मगर उनपर अमल कुछ लोग ही करते हैं। उन्हीं में से हैं नगला पटवारी क्षेत्र के आदमनगर मोहल्ले के जलालुद्दीन मलिक। इन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता की अहमियत बताने के लिए धार्मिक बंदिशें तोड़ीं और हिंदू लड़की से निकाह किया। सामाजिक सौहार्द का संदेश आम लोगों तक पहुंचाने के लिए जब-तब अनूठे कार्य भी करते रहे हैं।

जीवन के 55 वसंत देख चुके जलालुद्दीन मलिक बरौली बाईपास रोड पर 'राम-रहीम' नाम से मेडिकल स्टोर चलाते हैं। बकौल जलालुद्दीन, बचपन से ही दूसरे धर्मो के प्रति भी झुकाव रहा। खासतौर से हिंदू धर्म ने काफी आकर्षित किया। रक्षाबंधन, रामलीला, कृष्णलीला, होली, दीवाली का भरपूर आनंद लेते। तमाम हिंदू परिवारों में आना-जाना रहा, जिनसे काफी अपनापन मिला। बकौल जलालुद्दीन 'इसका मतलब यह नहीं कि मैं इस्लाम विरोधी हूं, बल्कि मेरी आस्था सभी धर्मो में बराबर है।' 'जाति-धर्म के नाम पर गलतफहमी फैलाने वालों का मैं हमेशा विरोधी रहा हूं।'

हिंदू से निकाह : हिंदू-मुस्लिम एकता को मजबूती देने के लिए जलालुद्दीन ने हिंदू लड़की से निकाह किया। उस समय कमलेश (जलालुद्दीन की पत्नी) के पिता कासिमपुर पावर हाउस में नौकरी करते थे। जलालुद्दीन का उनके घर आना-जाना था। शादी में कोई अड़चन नहीं आई। दोनों परिवारों ने सहमति जताई और कमलेश से जलालुद्दीन का निकाह हो गया।

भाईचारे का संदेश : नगला किला में अजहर मियां की मजार पर अखंड रामायण का पाठ कराकर जलालुद्दीन ने भाईचारे का संदेश दिया। इसमें तमाम हिंदुओं ने इनकी मदद की। दो दिन चले आयोजन में हवन-यज्ञ भी हुआ। बाकायदा जलालुद्दीन ने कमलेश के साथ अग्नि में आहुति दी। समापन पर श्रद्धालुओं के साथ गंगा स्नान किया और हवन-यज्ञ के अवशेष को प्रवाहित किया। जलालुद्दीन के इस कदम ने शहरवासियों के दिल में जगह बनाई।

'राम-रहीम' पुरस्कार : जलालुद्दीन की भावना का सम्मान करते हुए मानव उपकार संस्था के अध्यक्ष विष्णु कुमार बंटी ने उन्हें 'राम-रहीम' पुरस्कार से नवाजने का फैसला किया। 13 जून को भव्य समारोह में उन्हें यह सम्मान दिया गया।

हिंदू का अंतिम संस्कार : आग से झुलसे दंपती को मेडिकल कालेज में भर्ती कराने से लेकर हिंदू युवक की मौत पर उसके अंतिम संस्कार तक की जिम्मेदारी जलालुद्दीन ने खुद निभाई। इस कार्य में मानव उपकार संस्था की भी मदद ली।

इनका कहना है..

भाईचारा बढ़े। दूरियां मिटें। हमेशा यही प्रयास रहता है। कोई मजहब बुरा नहीं। सोचने का तरीका गलत होता है। विद्वेष फैलाकर किसी का भला नहीं होने वाला।

-जलालुद्दीन मलिक, नगला पटवारी

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