कम पानी में भी लहलहाएगा धान
राज नारायण सिंह, अलीगढ़ कृषि वैज्ञानिकों ने धान की ऐसी प्रजातियां तैयार की हैं, जो बुंदेलखंड जैसे
राज नारायण सिंह, अलीगढ़
कृषि वैज्ञानिकों ने धान की ऐसी प्रजातियां तैयार की हैं, जो बुंदेलखंड जैसे कम बारिश वाले इलाकों में भी अच्छी पैदावार देंगी। उत्तर प्रदेश राजकीय कृषि शोध परिक्षेत्र क्वार्सी में नई प्रजातियों की पौध तैयार की जा रही है। शुरुआती नतीजे शानदार रहे हैं। अंतिम मुहर के लिए आखिरी परीक्षण बाकी हैं। उसके बाद ये बीज किसानों को मिल सकेंगे। मौसमी मार से हलकान किसानों के लिए ये प्रजातियां वरदान साबित होंगी।
अलीगढ़ स्थित राजकीय कृषि शोध परिक्षेत्र की दो साल पहले ही 10वें शोध केंद्र के रूप में मान्यता मिली थी। यहीं नई प्रजातियों पर शोध हुआ है। ये नतीजे शानदार रहे हैं। अंतिम मुहर के लिए संयुक्त कृषि निदेशक (शोध) की अगुवाई वाली कमेटी गुणदोष के आधार पर निर्णय लेगी। फिर, बीज दूसरे जिलों में किसानों को भेजे जाएंगे। बहरहाल, अलीगढ़ में ईजाद की गईं पीएसी 8130 व पीएसी 801 प्रजातियों की बुवाई 30 मई से होने जा रही है।
फार्म इंचार्ज जनेंद्र यादव ने बताया कि पिछले साल दोनों प्रजातियों का ट्रायल हो चुका है। ये असिंचित क्षेत्रों में भी बोयी जा सकती हैं। बुंदेलखंड के बांदा, चित्रकूट, उरई, ललितपुर आदि ऐसे कम बारिश वाले जिलों के लिए ये प्रजातियां संजीवनी साबित हो सकती हैं।
बारिश के पानी से काम
शोध केंद्र के वरिष्ठ तकनीकी सहायक लाल साहब सिंह बताते हैं कि रोपाई का समय महत्वपूर्ण है। खेत की मेड़बंदी कायदे से हो ताकि बारिश का पानी खेत में ही रुक सके। फिर, चार महीने तक सिंचाई की जरूरत नहीं रहती। एकदम बारिश न हो तो एक बार सिंचाई करनी पड़ेगी।
आधी लागत
धान को पानी बहुत चाहिये। इसी कारण जहां बारिश कम होती है, वहां धान नहीं बो सकते। एक बीघे धान में खाद, बीज, कीटनाशक, सिंचाई आदि का खर्च 3000 रुपये आता है। इसमें सिंचाई में ही डेढ़ हजार रुपये खर्च हो जाते हैं। ऐसे में पीएसी 8130 व पीएसी 801 फसलों की लागत आधी रह जाएगी।
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