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कैप्टन अब्बास अली पर व्याख्यान कल

अलीगढ़ : देश के जाने-माने इतिहासकार और एएमयू के प्रोफेसर एमिरेट्स पद्मभूषण इरफान हबीब शनिवार को दिल्

By Edited By: Published: Thu, 05 Mar 2015 11:06 PM (IST)Updated: Thu, 05 Mar 2015 11:06 PM (IST)
कैप्टन अब्बास अली पर व्याख्यान कल

अलीगढ़ : देश के जाने-माने इतिहासकार और एएमयू के प्रोफेसर एमिरेट्स पद्मभूषण इरफान हबीब शनिवार को दिल्ली के इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर में पहला कैप्टन अब्बास अली समृति व्याख्यान देंगे। विषय है, 'आजाद हिंद फौज की विरासत'।

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आजाद ¨हद फौज से जुड़े तमाम तथ्य रोंगटे खड़े करने वाले हैं। फौज का गठन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1942 में सिंगापुर और मलाया (अब मलेशिया) में जनरल मोहन सिंह व नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने किया था। इसमें अविभाजित भारत के 60 हजार लोग शामिल थे। इनमें 45 हजार वे भारतीय सैनिक थे, जो पहले ब्रितानी फौज का हिस्सा थे और 1942 में आत्मसमर्पण के बाद जापानियों ने युद्धबंदी बना लिए गए थे। बाद में इन्हें ब्रितानी फौज ने युद्धबंदी बना लिया था। इन सैनिकों पर अंग्रेजों ने मुकदमे चलाए। कोर्ट मार्शल किया। सजाए मौत तक सुनाई। कैप्टन अब्बास अली भी उन्हीं 45 हजार सैनिकों में से थे, जिन्हें कोर्ट मार्शल के बाद मौत की सजा सुनाई गई थी। खुशकिस्मती से तभी देश आजाद हो गया और उनकी जान बच गई।

तकलीफदेह बात यह कि देश के लिए लड़े इन मुजाहिदों को आजादी के बाद भारतीय सेना में वापस नहीं लिया गया। यह भी उल्लेखनीय है कि आजाद भारत के पहले भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल करियप्पा ने सेना में न लेने की वजह यह बताई थी कि ये अनुशासित नहीं हैं। उस वक्त करियप्पा समेत तमाम जनरल ब्रितानी हुकूमत के वफादार रहे थे। आजादी के 30 साल बाद तक इन सैनिकों को स्वतंत्रता सेनानी तक नहीं माना गया। 1975 में विपक्ष के भारी दबाव के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी ने बमुश्किल आजाद हिंद फौज के सेनानियों को यह दर्जा दिया। तब तक, आईएनए के 45 हजार सैनिकों में से अधिकतर की मौत हो चुकी थी। बाद में, कैप्टन अब्बास अली ने समाजवादी आदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और 50 से बार सिविल नाफरमानी में भी जेल गए। पिछले साल 11 अक्टूबर को 94 वर्ष की उम्र में कैप्टन का अलीगढ़ में निधन हो गया।

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