'जल की रानी' ने बदली किस्मत
जागरण संवाददाता, अलीगढ़ : हरदुआगंज क्षेत्र के बरौठा गांव के इस युवक ने कानून की पढ़ाई करने के बाद भी
जागरण संवाददाता, अलीगढ़ : हरदुआगंज क्षेत्र के बरौठा गांव के इस युवक ने कानून की पढ़ाई करने के बाद भी कोर्ट-कचहरी के चक्कर नहीं काटे। इसने कुछ अलग करने की ठानी और आज वह अपनी मेहनत, लगन के बूते युवाओं के लिए नजीर बन गए हैं। 'जल की रानी' (मछली) पालन ने उसकी ऐसी किस्मत बदली कि अब वह पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहते।
शुरुआती सफर
एमए, एलएलबी तक की पढ़ाई कर चुके बरौठा के विजय पाल सिंह कश्यप साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। खेती-किसानी कर पिता ने एलएलबी तक की पढ़ाई कराई। करीब 11 साल पहले पढ़ाई पूरी करने के बाद विजय कुछ ठोस काम करने की तलाश में थे। इतने में उन्हें मछली पालन की सूझी। उन्होंने मत्स्य विभाग के अफसरों से संपर्क साधा और तैयारी शुरू कर दी।
आई दिक्कतें
बरौठा में ही .88 हेक्टेयर तालाब में मछली पालन की शुरुआत करने के बाद कुछ ऐसी दिक्कतें आई, जिससे उनके कदम ठिठके भी। पर, धीरे-धीरे सब सामान्य हो गया। विजय बताते हैं, शुरू में मछलियां मरने लगी। दरअसल, जानकारी के अभाव में कुछ कमियां रह गई थी। बाद में सब ठीक हो गया।
प्रशिक्षण भी
केरल के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिश टेक्नोलॉजी से बाकायदा मछली पालन की बारीकियां सीखीं। इसके बाद, विजय को सरकारी मदद से आंध्र प्रदेश के काकीनाड़ा में 15 दिन का प्रशिक्षण, उड़ीसा के भुवनेश्वर में 15 दिन का प्रशिक्षण दिलाया गया।
मिली कामयाबी
मेहनत से मछली पालन का सफर आगे बढ़ता गया। अब प्रतिवर्ष मछली का उत्पादन 70 कुंतल तक पहुंच गया है। व्यापार का सफर भी कई शहरों तक है। मुरादाबाद क्षेत्र में अधिकतर मछलियां भेजी जाती हैं। गजरौला, मुरादाबाद, संभल, दिल्ली आदि शहरों से बेहतर मांग है। रोहू, कतला, ग्रासकार्प, कॉमन कार्प, सिल्वर कार्प आदि मछलियां पालते हैं।
मछली से बने व्यंजन कर रहे आकर्षित
विजय पाल ने मछली से बने विभिन्न तरह के व्यंजनों में भी हाथ आजमाना शुरू किया है। मत्स्य जीवी सहकारी समिति, बरौठा का गठन कर कुछ ऐसे आइटम बनाने शुरू किए, जो अलीगढ़ के लिए नए हैं। मछली का आचार, मछली कटलेट, बॉल्स आदि आइटम बनाने की शुरुआत हो चुकी है। नुमाइश के कृषि कक्ष में लगी दुकान लोगों को खासा आकर्षित कर रही है।
इनका कहना है.
बिना किसी झंझट के मछली पालन में हाथ आजमाया जा सकता है। इसमें अच्छा लाभ होता है। बस, थोड़ी गंभीरता हो तो बेहतर किया जा सकता है।
-डॉ. महेश चौहान, सहायक निदेशक, मत्स्य विभाग।