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खुले ताले तो सामने आई सच्चाई

जागरण संवाददाता, अलीगढ़ : किसी इमारत की खूबसूरती सिर्फ ईट-पत्थरों से नहीं होती। चमक-दमक भी बहुत दिनो

By Edited By: Published: Wed, 26 Nov 2014 01:39 AM (IST)Updated: Wed, 26 Nov 2014 01:39 AM (IST)
खुले ताले तो सामने आई सच्चाई

जागरण संवाददाता, अलीगढ़ : किसी इमारत की खूबसूरती सिर्फ ईट-पत्थरों से नहीं होती। चमक-दमक भी बहुत दिनों तक खूबसूरती को नहीं बनाए रखते। असल खूबसूरती इमारतों में लोगों की मौजूदगी से होती है, मगर यहां उल्टा हो रहा है। गांधीपार्क बस अड्डा के पास बने रैन बसेरे की इमारत में लोग आते नहीं। आते भी होंगे तो एक-दो। पर, जब मंगलवार को रैन बसेरे का ताला खुला तो उसकी हकीकत सामने आ गई।

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गांधीपार्क बस अड्डे पर चार रैन बसेरे हैं। दो पुरुष व दो महिलाओं के लिए। यहां नगर निगम कर्मी राजेंद्र की तैनाती है। राजेंद्र ने बताया कि सुबह नौ से शाम पांच बजे तक कि ड्यूटी है। पांच बजे के बाद दूसरे कर्मचारी की ड्यूटी रहती है। रैन बसेरा नियमित खुलता है, मगर कोई आता नहीं। ठंड में जरूर 50 तक की संख्या पहुंच जाती है। मंगलवार को रैन बसेरे में पुताई आदि का काम चल रहा था। गद्दे व कंबल एक कमरे में पड़े हुए थे। बेड शीट नदारद थी। जितने लोग आते हैं, उनके लिए बिस्तर निकाल दिए जाते हैं। रोज दो-चार से अधिक लोग नहीं आते हैं। सवाल ये है कि जब सारी व्यवस्थाएं दुरुस्त हैं तो लोग क्यों नही आ रहे हैं? इससे साफ पता चलता है कि लोगो को रैन बसेरे के बारे में जानकारी ही नहीं है।

बोर्ड पर चिपका पोस्टर

गांधीपार्क स्थित रैन बसेरे के पते के लिए बोर्ड लगा हुआ है, मगर बोर्ड पर रैन बसेरा नदारद है। उस पर लोगों ने पोस्टर चिपके हुए हैं, जिसे पढ़ा नहीं जा सकता है। रैन बसेरे ऊपर तल पर बने हुए हैं, नीचे दुकानें हैं। सो, बाहरी व्यक्ति को इस बारे में जानकारी नहीं हो पाती है।

गांधीपार्क चौराहे पर निर्माण कार्य

गांधीपार्क चौराहे पर हर वर्ष लगने वाला रैन बसेरा इस बार नहीं लग पाएगा। पार्क के सुंदरीकरण का काम चल रहा है। करीब दो महीने तक पार्क में काम चलेगा। चूंकि, गांधीपार्क में शहर का मुख्य बस अड्डा है। आगरा रोड और जीटी रोड दोनों यहां इसी चौराहे से सटे हुए हैं। इसलिए 24 घंटे यह चौराहा व्यस्त रहता है। यदि इस बार यहां रैन बसेरा नहीं बना तो लेागों को काफी दिक्कत होगी।

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इनकी भी सुनिए

स्थायी रैन बसेरों में लोग क्यों नहीं आते यह विचारणीय प्रश्न है, जबकि किसी भी मौसम में लोग सड़कों पर लेटे दिखाई दे जाएंगे। इससे साफ पता चलता है कि लोगों को शहर में स्थायी रैन बसेरे के बारे में मालूम ही नहीं रहता।

- राकेश कुमार सिंह, युवा रालोद नेता।

ठंड में गरीबों को कंबल ओढ़ाने से काम नहीं चलेगा। कोशिश होनी चाहिए कि ऐसे लोगों को आश्रय दिया जाए, जिससे उन्हें ठंड आदि न लगे। खास लोगों को ही नहीं पता होगा कि गांधीपार्क बस अड्डे पर रैन बसेरा है।

- भूपेंद्र वाष्र्णेय, व्यापारी नेता।

मुझे आश्चर्य हो रहा है कि लोग स्थायी रैन बसेरे में नहीं ठहरते। गांधीपार्क स्थित चौराहा का रात का नजारा तो देखिये, लोग फुटपाथों पर सोते नजर जा जाएंगे। इन लोगों को रैन बसेरे के बारे में बताना चाहिए, जिससे वे वहीं रात गुजारें।

- अब्दुल हफीज, भाजपा नेता।


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