घर-घर होत है पूजा हे छठ मइया
जागरण संवाददाता, अलीगढ़ : लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा पर यहां के भी कई गली-मोहल्ले छठ मईया के गीतों
जागरण संवाददाता, अलीगढ़ : लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा पर यहां के भी कई गली-मोहल्ले छठ मईया के गीतों से गुंजायमान हो गए। भोजपुरी गीतों ने टीकाराम मंदिर, बदरबाग रेलवे कॉलोनी, नौरंगाबाद, पीएसी, आरएएफ, सीएमओ कंपाउंड सहित विभिन्न क्षेत्रों में पूर्वाचल की दूरियां भी कम करके रख दीं। डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रतियों ने सूर्य की उपासना की।
सोमवार को नहाय खाय से शुरू यह पर्व बुधवार की शाम अपनी रंगत में दिखा। पारंपरिक परिधानों में सजी महिलाओं ने बहंगी को श्रद्धा और भक्ति से सजाया। गंगा जी के घाट बाटी, हमरा गंगा मइया का पनिया हिलोर मारे ला, घर-घर होत है पूजा हे छठ मइया, छठ के परब आइल, चारों ओर अजोर छाइल, भोर से सांझ भइल, सांझ से भिनसहरा, कांच रे बांस के सुपलिया अरघदेल जाए आदि गीतों से पूजा स्थल गूंज रहा था। दोपहर तीन बजे ही पूजा स्थल पर व्रती पहुंच गई थीं। बास से बने डेंगची और सूप में नारियल, मेवा, हल्दी, ठेकुआ और अन्य पूजा सामग्री रखी गई थीं। व्रतियों ने छठ मईया की पूजा-अर्चना करने के साथ ही डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया और उपासना की। 36 घंटे के इस संकल्प का पहला पड़ाव पूरा हुआ। रात को घरों में व्रतियों ने छठ मईया के गीत गाए।
गुरुवार की सुबह व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करेंगी। चार दिनों तक चलने वाले इस छठ पर्व की विशेष पूजा के लिए टीकाराम मंदिर, रेलवे कॉलोनी बदरबाग, नौरंगाबाद सहित विभिन्न स्थानों पर विशेष व्यवस्था की गई है।
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आतिशबाजी भी
टीकाराम मंदिर पहुंचे अरविंद तिवारी ने बताया कि दीपावली पर लाई गई आतिशबाजी में से कुछ बचाकर रखी जाती है। इसका उपयोग छठ पूजा वाले दिन करते हैं। बुधवार की शाम टीकाराम मंदिर सहित विभिन्न पूजा स्थलों पर खूब आतिशबाजी हुई।
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ट्रेडिशन विद टेक्नोलॉजी
सीएमओ कंपाउंड में भी कई महिलाओं ने छठ पर्व पर व्रत रखा। यहां पहले दिन अर्घ्य देते समय छठी मईया के गीत चलाने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल हुआ। यू-ट्यूब पर छठ मईया के गीत चलाकर पूजा-अर्चना की गई। यहां के प्रशांत कुमार सिंह ने बताया कि घर से दूर भले हैं, पर पूजा पूरी परंपरा से की जाती है। यहां की व्रती सुमन सिंह, अल्का पांडेय ने कहा कि तकनीक ने कई काम आसान कर दिए हैं।
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पर्व पर एक नजर..
टीका राम मंदिर के पुजारी रामजी ने बताया कि छठ पर्व का प्रारंभ कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थ तिथि से प्रारंभ होता है। पर्व का प्रारंभ 'नहाय-खाय' से होता है। दूसरे दिन यानी पंचमी के दिनभर व्रती उपवास कर भगवान भास्कर की अराधना कर प्रसाद ग्रहण करती हैं। इस पूजा को 'खरना' कहा जाता है। षष्ठी तिथि को उपवास रखकर शाम को व्रतिया नदी, तालाब, या अन्य जलाशयों में जाकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देती हैं। इसके अगले दिन यानी सप्तमी तिथि को सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर घर वापस लौटकर अन्न-जल ग्रहण कर 'पारन' करती हैं यानी व्रत तोड़ती हैं।