सूखे ताल मे डूब गई तैराकी
मयंक त्यागी, अलीगढ़ : क्या कागजी ताल में तैराकी की जा सकती है? आपका जवाब ना में होगा। डीएस कॉलेज में
मयंक त्यागी, अलीगढ़ : क्या कागजी ताल में तैराकी की जा सकती है? आपका जवाब ना में होगा। डीएस कॉलेज में कागजी ताल में ही विद्यार्थियों से तैराकी कराई जा रही है। यहां का स्वीमिंग पूल करीब 50 साल से बंद है। इसका शुल्क आज भी वसूला जा रहा है, जो विद्यार्थियों के साथ सरासर छल है।
1966 में निर्माण
डीएस कॉलेज की नींव तो आजादी से पहले ही रख गई थी, डिग्री कालेज की मान्यता 1947 में मिली। इससे पहले यहां संस्कृत पाठशाला चलती थी। दस्तावेजों पर भरोसा करें तो कॉलेज में खेल विभाग ने खेल मैदान के पीछे 1966 में स्वीमिंग पूल का निर्माण कराया था। पहली साल सब ठीक चला। अगले साल इसमें डूबकर एक छात्र की जान चली गई। इसके बाद प्रशासन के दबाव में स्वीमिंग पूल को बंद करा दिया गया।
तकनीकी खामियां
स्वीमिंग पूल के निर्माण में तकनीकी पहलुओं का ध्यान नहीं रखा गया। पूल को ढलान में बना दिया गया। पानी की निकासी के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं की गई। कॉलेज से जुड़े पुराने लोगों की मानें तो जिस समय स्वीमिंग पूल संचालित था, उसमें नलकूप से पानी भरा जाता था। उसके गंदे पानी को पंप लगाकर या बाल्टियों से निकाला जाता था।
फीस वसूली
कॉलेज में स्वीमिंग पूल बंद हुए 47 साल हो चुके हैं, लेकिन अब भी इसके नाम पर हर विद्यार्थी से 1.50 रुपया शुल्क वसूला जा रहा है। कॉलेज में तकरीबन आठ हजार विद्यार्थी हैं। जिनसे हर साल 12 हजार रुपये वसूले जाते हैं। 47 साल से हिसाब जोड़ा जाए तो विद्यार्थी तकरीबन छह लाख रुपये इस सुविधा के लिए दे चुके हैं। कॉलेज प्रशासन ने भी इस पर कभी ध्यान नहीं दिया। कॉलेज में हॉट एंड कोल्ड मद में भी पैसा वसूला जाता है। जबकि, विद्यार्थियों को यहां न तो कूलर या एसी की सुविधा मिलती है, न हीटर की।
.........
स्वीमिंग पूल शुल्क पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। इस शुल्क को बंद करने का प्रस्ताव कॉलेज लेखा समिति से पास कराकर विश्वविद्यालय को भेजा जाएगा।
- डॉ. एके तोमर, प्राचार्य डीएस कॉलेज।