भविष्य का खाता बंद!
अलीगढ़: ये खाते की गजब कहानी है। ऐसी कि सुनहरे भविष्य की खिड़कियां तक बंद पड़ी हैं। किस्सा विद्युत विभाग के 250 संविदा कर्मियों का है। इनकी भविष्य निधि (सीपीएफ) का 80 लाख रुपये हवा में है। पैसा तब जमा होता, जबकि खाते खुलवाए जाते। चार साल बीत चुके हैं। ठेकेदार बेफिक्र है, अफसर भी। ऑडिट में मामला अटका तो गूंज शासन तक हुई। यूपी पावर कारपोरेशन के चेयरमैन संजय अग्रवाल ने प्रकरण को बेहद गंभीर बताते हुए वित्तीय अनियमितता करार दिया है। आगरा के प्रबंध निदेशक को दोषी अफसरों व ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई को भी कहा है।
क्या है मामला
शहर में लाइन खींचने, फाल्ट ठीक करने व बिजलीघरों के दूसरे काम के लिए संविदा पर स्टेशन ऑपरेटर (एसएसओ), लाइनमैन आदि कर्मी रखे गए हैं। विद्युत विभाग ने वर्ष 2011 से 2013 तक विद्युत कल्याण सहकारी श्रम संविदा समिति शिवपुरी को इन्हें रखने का ठेका दिया था। फर्म के 250 कर्मचारी हैं। फर्म को मानदेय से 10 फीसद काटकर सीपीएफ के बतौर जमा करना था। इतनी ही हिस्सेदारी विद्युत विभाग को देनी थी।
विभाग व ठेकेदार में ठनी
एक अप्रैल 2012 से 31 मार्च 2013 तक कर्मचारियों के सीपीएफ की रकम करीब 43 लाख बैठी। ठेकेदार व विद्युत विभाग ने रकम जमा कर दी। इनके खाते नहीं खुलने से विद्युत विभाग ने पूरी रकम की एफडीआर बनवाकर अपने पास रख ली।
झमेला और भी
एक अप्रैल 2013 से फरवरी 2014 तक की अवधि के लिए ठेकेदार ने 22 लाख रुपये सीपीएफ के काटकर अपने पास रख लिए। ठेकेदार का कहना है कि विभाग भी अपने हिस्से के 22 लाख रुपये दे तो एफडीआर बनवाई जाए। अफसर चाहते हैं कि ठेकेदार पहले पैसा जमा करे, तब एफडीआर बनवाई जाए। यह खींचतान जारी है।
करो कार्रवाई
सीपीएफ के गड़बड़झाले की गूंज शासन तक है। ऑडिट में मामला फंसा तो पावर कारपोरेशन के चेयरमैन संजय अग्रवाल ने संविदा कर्मियों के सीपीएफ की रकम की एफडीआर बनाए जाने को गलत करार दिया। चेयरमैन ने इसे अमानत में खयानत बताते हुए अफसरों व कार्यदायी संस्था (ठेकेदार/कर्मचारी कल्याण समिति) को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है। दोनों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं।
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ठेकेदार ने कर्मचारियों के सीपीएफ खाते नहीं खुलवाए थे। इस कारण पैसा जमा नहीं हो पाया। अब कर्मचारियों के खाते खुलवाए जा रहे हैं। पूरी रकम उन्हीं खातों में डाली जाएगी।
-एनसी अग्रवाल, एसई सिटी।
सीपीएफ की रकम की एफडीआर बनाकर विद्युत विभाग को दे रखी है। विभाग अपने हिस्से की रकम नहीं दे रहा। इसी कारण कर्मचारियों को नुकसान हो रहा है।
- प्रताप चौधरी, ठेकेदार।