विज्ञान और किसान
सरकार को जागरूकता कार्यक्रम ऐसी जगह चलाने चाहिए जहां किसानों की पहुंच हो। गांवों में कृषि गोष्ठियां नियमित होनी चाहिए।
राज्यपाल राम नाईक ने किसानों की दुर्दशा पर चिंता जताते हुए माना है कि सरकारी योजनाओं और वैज्ञानिक कृषि के तरीकों का लाभ उन्हें नहीं मिल पा रहा। उनकी चिंता वाजिब है। प्रकृति का साथ न मिलना किसानों की दुर्दशा का एक कारण हो सकता है, लेकिन सबसे बड़ा कारण तो सरकारों की उदासीनता है।
जरा याद कीजिए हर चुनाव में नेताओं के वादे। तब सब तरफ किसानों के उत्थान की घोषणाएं सुनाई देती हैं पर जीतने के बाद उन पर अमल नहीं होता। सरकारी दफ्तरों में खूब बैठकें होती हैं, किसान उत्थान के लिए माथापच्ची होती है और नीतियां गढ़ी जाती हैं पर हकीकत में किसानों को इनका लाभ नहीं मिल पाता। साफ है कि तंत्र ही संवेदनहीन हो चुका है। जमीनी स्तर पर अधिकारी जाना नहीं चाहते। किसानों को नीतियां पता नहीं चल पातीं। नतीजा किसानों की बेबसी और लाचारी के रूप में दिखता है।
ऐसा नहीं कि विज्ञान ने कृषि क्षेत्र में तरक्की नहीं की। खूब तरक्की हुई है, लेकिन लाभ मुट्ठी भर लोगों को ही मिल पाया है। अधिकांश किसान अब भी वही पारंपरिक खेती किए जा रहे हैं। विज्ञान कहता है कि फसल चक्र का पालन करो। एक ही फसल को बार-बार न बोया जाए क्योंकि इससे पैदावार घटती है, लेकिन किसानों को यह जानकारी कहां? उन्हें इस बारे में किसी ने बताया ही नहीं। 1ज्यादातर किसान अपने पूरे रकबे में एक ही फसल बो देते हैं और मौसम प्रतिकूल होने पर बर्बाद हो जाते हैं, जबकि विज्ञान कहता है कि कोई भी मौसम हर फसल के लिए खराब नहीं होता।
अतिवृष्टि से गेहूं को नुकसान होगा तो गन्ने को फायदा। आलू खराब होगा तो केले को फायदा। कई फसलें कम पानी में भी अच्छी उपज देती हैं, पर किसानों को यह बताए कौन? अज्ञानता में किसान खेतों में उर्वरक का अधाधुंध उपयोग करते हैं और इससे भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट होती है, लेकिन किसानों को इसकी जानकारी नहीं दी जाती। आधुनिक कृषि यंत्रों की जानकारी भी प्राय: किसानों को नहीं मिल पाती। सरकार को जागरूकता कार्यक्रम ऐसी जगह चलाने चाहिए जहां किसानों की पहुंच हो। गांवों में कृषि गोष्ठियां नियमित होनी चाहिए। मृदा परीक्षण के लिए वहां शिविर लगाए जाने चाहिए। जैविक खेती के लाभ, सिंचाई की नवीनतम विधियां और मिट्टी के अनुसार फसल चयन के नुस्खे भी किसानों को मौके पर जाकर दिए जाने चाहिए। सरकार को योजनाओं के लाभ में जटिलताएं भी कम करनी चाहिए।
(स्थानीय संपादकीय, उत्तर प्रदेश)