मौत की पटरी पर बदला किस्मत कनेक्शन
अली अब्बास, आगरा कभी-कभी जिंदगी अजब-गजब खेल दिखाती है। मौत के हाथ में पहुंच डराती है और फिर फिसल
अली अब्बास, आगरा
कभी-कभी जिंदगी अजब-गजब खेल दिखाती है। मौत के हाथ में पहुंच डराती है और फिर फिसल कर उम्मीद दिखाती है। रिश्तों के रूप बदल नए सांचे में ढाल देती है। सोलह वर्षीय गुड़िया और बारह साल की शिवानी की किस्मत की यही कहानी है। नौ साल पहले मौत की पटरी से लौटने के बाद छोटी बहन का हाथ थामे दोनों दोराहे पर खड़ी थीं। पिता उनके हाल पर छोड़कर जा चुके थे। बेटियों को अपने सपने पूरे करने को हौसला चाहिए था। ऐसे में उन्हें एक दंपति मिले। उनके साथ अपने रिश्ते को मां-बाप का नाम दिया।
गुड़िया जब आठ साल की थी और शिवानी चार साल की तो मां पुष्पा देवी की मौत हो गई। कुछ दिन तो पिता नेकराम ने पाला, लेकिन फिर दुनियादारी की जिम्मेदारी से कांप गया। बेरोजगारी और दो बेटियों के पालन-पोषण में पिता को लगा कि अब जिंदगी का वजन वह नहीं उठा सकेगा। ऐसे में उसने दोनों बेटियों की मौत के साथ आत्महत्या का फैसला कर लिया। वर्ष 2009 में रकाबगंज क्षेत्र में दोनों बेटियों को रेलवे पटरी पर ले गया। आत्महत्या करने के लिए पिता ने बेटियों को भी अपने साथ पटरी पर लिटा लिया। पिता का कहना था कि वह मर रहा है, ऐसे में तुम दोनों कहां रहोगी। बेरहम दुनिया रहने नहीं देगी। ट्रेन आने में कुछ ही सेकेंड थे। जिंदगी और मौत के बीच चंद फासला रह गया था। इस बीच कुछ लोगों ने उन्हें देखा और पटरी से खींचकर जान बचाई। बेटियों को मारने की कोशिश करने वाला पिता पुलिस को सौंप दिया। बेटियों को मारने के प्रयास की खबर सुनकर रामलाल वृद्ध आश्रम के संचालक शिव प्रसाद शर्मा थाने पहुंचे। वह अपनी पत्नी से बातकर दोनों बहनों को साथ ले आए। बाद में उन्हें आश्रम में रख दिया। यहां आने के कुछ माह बाद ही गुडि़या और शिवानी शिव प्रसाद और ज्योति से खूब घुलमिल गईं। वह उनको पापा-मम्मी कहने लगीं। उनकी कहानी पता चली, तो दोनों बेटियों की पढ़ाई का खर्च शहर के एक कारोबारी की पत्नी ने उठाने का प्रस्ताव रखा। वह अमल भी करने लगीं। यह पता चलने पर एक दिन मासूम शिवानी ने सवाल किया, जिसने शिव को अंदर तक झकझोर दिया। शिवानी ने पूछा कि पापा आप हमारी पढ़ाई का खर्चा उनसे क्यों लेते हो, क्या हम आपकी बेटियां नहीं? शिव प्रसाद बताते हैं कि इस सवाल ने उनकी आंखों में आंसू ला दिए। यहीं से एक और बदलाव हुआ। उन्होंने और पत्नी ज्योति ने दोनों बेटियों को अपना नाम देने का फैसला किया। ज्योति बेटियों को तुरंत ही अपने साथ घर ले गईं। इस समय गुडि़या आठवीं और शिवानी चौथी कक्षा में उनके बेटे के साथ एक ही स्कूल में पढ़ रही हैं। दोनों उच्च शिक्षा हासिल करके कुछ बनना चाहती हैं।
नहीं मिला पता और परिवार
पिता नेकराम ने पुलिस को अपना पता भरतपुर का वंशी पहाड़पुर बताया था। आश्रम वालों ने भरतपुर जाकर दोनों के रिश्तेदारों को खोजने का प्रयास किया, लेकिन वह नहीं मिला। गुड़िया और शिवानी का कहना था कि वह पापा और मम्मी के सपनों को पूरा करना चाहती हैं। दुनिया को कुछ बनकर दिखाना चाहती हैं।
जेल गया या नहीं किसी को नहीं पता
बेटियों के साथ मरने का प्रयास करने वाले पिता नेकराम का क्या हुआ? यह किसी को पता नहीं है। जेल के बाद उसका क्या हुआ, यह किसी को पता नहीं है।
मैं चाहता हूं मिसाल बनें बेटियां
पिता शिव प्रसाद शर्मा कहते हैं कि वह दोनों बेटियों को कुछ बनाना चाहते हैं। वह मेहनत भी कर रही हैं। उनकी इच्छा है कि यह लड़कियां मिसाल बनें। उन लोगों को भी सबक दें, जो बेटियों से अलग व्यवहार करते हैं।