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कान्‍हा की नगरी में वानर आतंक, तो यह इसके पीछे की बड़ी वजह

बंदरों को आतंकी बनाने में बिल्डर के साथ प्रशासन भी कम नहीं दोषी।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Mon, 22 Apr 2019 10:55 AM (IST)Updated: Mon, 22 Apr 2019 10:55 AM (IST)
कान्‍हा की नगरी में वानर आतंक, तो यह इसके पीछे की बड़ी वजह
कान्‍हा की नगरी में वानर आतंक, तो यह इसके पीछे की बड़ी वजह

आगरा, जेएनएन। हरियाली से आच्छादित वृंदावन में वन-उपवनों के उजाडऩा बंदरों के आतंकी होने का सबसे बड़ा कारण नजर आ रहा है। शहर के अंदर के बाग बगीचों की जगह ऊंची-ऊंची अट्टालिकाएं बन चुकी हैं। जहां बंदरों के लिए खाने को फल रहने को छांव आदि मिला करती थी, उन बंदरों को अब ठिकाना नहीं मिल पा रहा। वृंदावन के बदलते स्वरूप का असर न केवल इंसान बल्कि जानवरों पर भी पड़ा। यही कारण है कि भूखे बंदर अब आतंकी होते नजर आ रहे हैं। इसके लिए शहर के बिल्डरों के साथ जिला प्रशासन और विकास प्राधिकरण भी पूरी तरह जिम्मेदार है। जिसने हरियाली को कटते देखा और रोक तक नहीं लगाई।

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तीर्थनगरी की पंचकोसीय परिक्रमा करीब तीन दशक पहले तक पूरी तरह हरियाली से आच्छादित थी। केशीघाट से लेकर चामुंडा देवी मंदिर तक परिक्रमा में एक ओर बाग-बगीचे और दूसरी ओर कल-कल बहती यमुना का दर्शन श्रद्धालुओं को आनंदित करता था। इन बाग बगीचों में बंदरों के अलावा दूसरे पशु पक्षी भी विचरण करते और फलों को खाकर अपना गुजारा करते। वृक्षों की छांव में दिन रात रहते। लेकिन आज पूरी परिक्रमा मार्ग एक बस्ती के बीच सिमट कर रह गई है। बड़े बड़े आश्रम, भवन और मंदिरों की लंबी श्रृगला के साथ करीब दो दर्जन कॉलोनियां यमुना की सीने को चीरकर बना डाली गईं। जब वन-उपवन जिन पर बंदर व दूसरे पशु आश्रित थे, बिना वन उपवन के वे बस्तियों में आ गए। लेकिन दिनभर भूखे बंदरों को जब कुछ दिखाई नहीं देता तो वे हमलावर होते नजर आते हैं।

बस्तियां बसाने को जिम्मेदार प्रशासन

जब यमुना खादर में बस्तियां बसाई जा रही थीं और परिक्रमा मार्ग में वन-उपवन उजाड़े जा रहे थे। तब न तो स्थानीय लोगों ने और न ही जिला प्रशासन ने किसी तरह की रोक लगाई। इसी का नतीजा है कि जो बंदर वन और उपवनों में रहते थे वे बस्तियों में पहुंचकर भूख के चलते हमलावर होने लगे हैं।

इनका कहना है

-गोपीनाथ बाजार निवासी हरिओम शर्मा कहते हैं कि जब वन-उपवन थे, जब बंदर बस्तियों में कम ही दिखाई देते थे। लेकिन जब से इन्हें उजाड़ा गया तो बंदर शहर में पहुंच गए।

-बंदरों की समस्या पर लंबे समय से काम कर रहे डॉ. अभिषेक शर्मा कहते हैं कि अगर बंदरों को एक नियत स्थान में छोड़कर उनके भोजन की पर्याप्त व्यवस्था की जाए तो वे हमलावर नहीं रहेंगे।

मथुरा में भी चलाया हस्ताक्षर अभियान

बंदर मुक्ति अभियान को लेकर रालोद ने महानगर के कोतवाली रोड, चौबिया पाड़ा क्षेत्र में हस्ताक्षर अभियान चलाया। कार्यकर्ताओं ने घर-घर दुकान-दुकान जाकर जनता से बंदर मुक्ति अभियान के लिए हस्ताक्षर करवाए। इसमें पवन चतुर्वेदी, विश्वेंद्र चौधरी, रामवीर पौनिया, कैलाश चौधरी रोहताश चौधरी, शकील, आदिल, शॉनू, आशीष चतुर्वेदी, काले, गिरघर चतुर्वेदी मौजूद रहे। 


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