नाले-नालियों की दुश्मन है पॉलीथिन
जागरण संवाददाता, आगरा: नगर निगम के लिए पॉलीथिन जी का जंजाल बन चुकी है। नाले-नालियों की सफा
जागरण संवाददाता, आगरा: नगर निगम के लिए पॉलीथिन जी का जंजाल बन चुकी है। नाले-नालियों की सफाई में टनों पॉलीथिन निकलती हैं। इसके चलते जल्दी-जल्दी सफाई करानी पड़ती है। ये पूरे ड्रेनेज सिस्टम को चौपट कर देती है। नाले-नालियों के उफान मारने से गंदगी बढ़ती है और लोगों को परेशानी होती है।
आए दिन शहर के किसी न किसी क्षेत्र में गंदा पानी सड़क पर भरा हुआ दिख जाता है। सड़क पर बिखरी पॉलीथिन नालियों में जाकर पानी को रोक देती है, उससे यह स्थिति पैदा होती है। पॉलीथिन पर प्रतिबंध होने के बाद भी इस पर अभी तक प्रभावी कार्रवाई नहीं हो सकी है। ग्राहकों की मानसिकता देख दुकानदार भी पॉलीथिन को छोड़ नहीं पा रहे हैं। पॉलीथिन का प्रयोग करने के बाद इसे कई बार सड़कों पर फेंक दिया जाता है। इससे यह नाली-नालों तक पहुंच जाती है। इससे ड्रेनेज सिस्टम चोक हो जाता है। नगर निगम के आकड़ों की मानें, तो शहर से हर दिन छह टन कूड़ा निकलता है। यह तीन सौ के करीब स्थाई और अस्थायी डलावघरों तक पहुंचता है। यहां से ट्रकों में भरकर कुबेरपुर स्थित खत्ताघर में पहुंचाया जाता है। छह टन में हर दिन आधा टन के करीब पॉलीथिन होती है। यह कूड़े के साथ मिली होती है, जिसे अलग करना भी संभव नहीं होता है।
बढ़ जाता है बजट: पिछले तीन साल के भीतर नालियों-नालों की सफाई का बजट तेजी से बढ़ा है। इस साल यह बीस करोड़ रुपये है। वर्ष 2016 में 17 और वर्ष 2015 में 15 करोड़ रुपये था।
देर से उठती है सिल्ट : पॉलीथिन के चलते सिल्ट को उठाने में भी देरी होती है। नालों से निकलने वाली सिल्ट को चार से पांच दिन के भीतर उठाने का प्रावधान है, लेकिन पॉलीथिन अधिक होने के कारण यह सूखने में समय लेता है। डेढ़ सप्ताह के बाद ही सिल्ट उठ पाती है।