'राजस्थान के मारवाड़ी', बेचते हैं हंटर
यशपाल चौहान, आगरा: पांच दशक का लंबा अरसा। लोग आते गए, कुनबा बढ़ता गया और बस्तियां बसने लगीं। जिले मे
यशपाल चौहान, आगरा: पांच दशक का लंबा अरसा। लोग आते गए, कुनबा बढ़ता गया और बस्तियां बसने लगीं। जिले में हुई तमाम संगीन वारदातों के तार इनसे जुड़े, मगर इनकी जड़ें खंगालने के बजाय सरपरस्ती होती रही। आखिर ये हैं कौन? आपबीती में तो ये स्वयं को राजस्थान का मारवाड़ी बताते हैं, आगरा में हंटर और छाता बेच पेट भरते हैं, मगर असलियत कुरेदने पर ही बिदक जाते हैं। बहाने लगते हैं घड़ियाली आंसू।
दरअसल, यह ¨हदुस्तानी नहीं, बांग्लादेशी घुसपैठिये हैं। शहर में इनकी जगह-जगह बस्तियां बस गई हैं। दुनिया में एक आदत होती है कि बाहर से आकर कहीं बसे लोग एक हो जाते हैं, तो ये भी एक माला में गुथे हैं। इनकी भाषा बंगाली है, आखिर मारवाड़ी तो यह नहीं बोलते। ऐसे में स्थानीय जुड़ाव दर्शाने को यहीं की बोली बोलने लगते हैं। इसी तरह की कई झुग्गी-झोपड़ियों में संदिग्ध बांग्लादेशी पकड़े गए और उनके तार संदिग्ध लोगों से जुड़े मिले। इसके बाद भी पुलिस और खुफिया विभाग हरकत में नहीं आए। 'जागरण' ने ऐसी ही एक बस्ती में पड़ताल की तो तमाम सवाल उठ खड़े हुए हैं।
एत्माद्दौला क्षेत्र में यमुना ब्रिज के पास सुनसान इलाके में करीब डेढ़ सौ झोपड़ियां पड़ी हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि ये पांच दशक पुरानी हैं। पहले इन लोगों की बोली समझ में नहीं आती थी, अब यहां के माहौल में रच-बस गए हैं। ¨हदी में बात करते हैं, मगर आपस में कौन सी भाषा बोलते हैं, स्थानीय लोग समझ नहीं पाते। सरकारी तंत्र ने इन लोगों की जांच कराने के बजाय इन्हें वैध मान लिया है। इनकी बस्ती को गोपी झोपड़ी, मारवाड़ी इंद्रा नगर का नाम भी दे दिया है। यहां के लोगों को आधार कार्ड भी मिल चुके हैं। तमाम पर वोटर कार्ड भी हैं।
'जागरण' के दस्तक देते ही कुछ महिलाएं झोपड़ियों से बाहर आ गई। बोलीं- क्या करने आए हो? मीडिया का पता लगते ही कहने लगीं- उल्टी खबर मत छाप देना। क्यों, क्या कुछ गलत तो नहीं हो रहा यहां? के सवाल पर बोलीं- ऐसा कुछ नहीं है। हम तो मजदूरी करते हैं। क्या बांग्लादेशी हो? के सवाल पर तपाक से बोलीं- हम तो राजस्थान के मारवाड़ी हैं, यहां पर हंटर बनाकर बेचते हैं, छाता भी बेचते हैं। जैसे-तैसे पेट पाल रहे हैं। पुरुष लोग कहां हैं? के सवाल पर कहा कि काम करने गए हैं। जब पूछा क्या काम करते हैं? बताया कि ऐसे ही फेरी लगाकर सामान बेचने। इस दौरान इनके चेहरों पर इनकी घबराहट साफ झलक रही थी। मारवाड़ी हो तो वहां की भाषा बोलकर दिखाओ इस पर सन्नाटा छा जाता है।
गोपी झोपड़ी की तरह सिकंदरा, सदर और रकाबगंज के बिजलीघर में बस्तियां हैं। इनमें हजारों लोग रहते हैं, जिनका पुलिस ने अभी तक सत्यापन नहीं किया है।
ठंडे बस्ते में डाली घुसपैठियों की जांच
- 16 फरवरी 2017 को एत्माद्दौला के सुशील नगर से एनआइए ने फातिमा को गिरफ्तार किया। बांग्लादेशी फातिमा नकली नोटों के गिरोह से जुड़ी थी। पकड़े जाने के बाद उसका यह राज खुल गया। तमाम बिंदु जांच करने वाले थे, लेकिन पुलिस ने अपने स्तर से कोई जांच नहीं की। हालांकि एनआइए मामले की जांच में लगी है।
- 9 फरवरी 2016 को खुफिया एजेंसियों ने सदर के बुंदू कटरा में एक डेरे पर छापा मारकर मोहम्मद जोयनल निवासी जिला बागरहट, बांग्लादेश और मेहताब विश्वास निवासी जिला गोपालगंज, बांग्लादेश को गिरफ्तार कर लिया। स्थानीय गुप्तचर इकाई (एलआइयू) की ओर से सदर थाने में बिना पासपोर्ट के यहां रहने और 14 विदेशी अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज करने के बाद उन्हें जेल भेज दिया। ये फोन पर पाकिस्तान से संपर्क में थे। इसके बाद पुलिस उनके नेटवर्क को नहीं खोल सकी।
- दिसंबर 2014 में वेद नगर में इसी तरह की बस्ती में धर्म परिवर्तन मामला सुर्खियों में आया था। यहां रहने वालों ने खुद को पश्चिम बंगाल का बताया। उनके बताए हुए पते पर पुलिस पहुंची तो वहां कोई रिश्तेदार नहीं मिला। इसके बाद ये रातोंरात गायब हो गए। पुलिस ने उन्हें ट्रेस करना भी उचित नहीं समझा।
- 25 मार्च 2013 को एडीआरडीई कार्यालय की बाउंड्री के नजदीक एक संदिग्ध युवक को सेना पुलिस ने दबोच लिया। पूछताछ में उसने अपना नाम लुकपर पुत्र अदीम अली बताया। वह बंग्लादेश बटमल जिले में सुदपुर गांव का रहने वाला था। मुकदमा दर्ज होने के बाद इसे जेल भेज दिया गया। मगर, उसके संपर्क कहां तक थे, पुलिस पता नहीं कर सकी।
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थाने में नहीं रहता कोई रिकार्ड
शहर के एत्माद्दौला, सदर, सिकंदरा और रकाबगंज थानों में घुसपैठियों की बस्ती हैं। मगर, पुलिस के रिकार्ड में कुछ नहीं है। न तो बीट सिपाही इनको देखता है न ही दारोगा। इनकी गतिविधियों पर भी कोई नजर नहीं रखी जा रही है। पुलिस की ढिलाई के चलते वे अब यहां के नागरिक बनते जा रहे हैं, जिससे उन्हें बंग्लादेशी प्रमाणित करना ही मुश्किल हो रहा है।
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बीट सिस्टम को मजबूत बनाया जा रहा है। हर कांस्टेबल को जिम्मेदारी दी गई है कि वह अपनी बीट की सूचना दर्ज कराएं। इससे ऐसी बस्तियों और संदिग्ध व्यक्तियों की निगरानी भी रखी जाएगी।
कुंवर अनुपम सिंह, एसपी सिटी