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तीन साल में मिलीं सिर्फ बंदिशें, उबरने में वक्त लगेगा

जागरण संवाददाता, आगरा: मोदी सरकार के तीन साल में भी रीयल एस्टेट सेक्टर की मुश्किलों में कोई कमी नहीं

By JagranEdited By: Published: Tue, 23 May 2017 01:00 AM (IST)Updated: Tue, 23 May 2017 01:00 AM (IST)
तीन साल में मिलीं सिर्फ बंदिशें, उबरने में वक्त लगेगा
तीन साल में मिलीं सिर्फ बंदिशें, उबरने में वक्त लगेगा

जागरण संवाददाता, आगरा: मोदी सरकार के तीन साल में भी रीयल एस्टेट सेक्टर की मुश्किलों में कोई कमी नहीं आई। हालांकि कारोबारियों को सरकार की मंशा पर शक नहीं है, लेकिन बुलंद इमारत की नींव पड़ने के लिए जरूरी है सरकारी मशीनरी को पहले दुरुस्त किया जाना। दैनिक जागरण 'मोदी काल तीन साल' के तहत शहर के प्रबुद्ध वर्ग से परिचर्चा कर रहा है। सोमवार को इंडस्ट्रियल एस्टेट स्थित दैनिक जागरण कार्यालय में रीयल एस्टेट कारोबारियों के साथ परिचर्चा हुई।

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योजनाएं सब अच्छी, लेकिन अनुपालन जरूरी

क्रेडाई आगरा के अध्यक्ष जेएस फौजदार का कहना है कि योजनाएं तो हमेशा से बनती आ रही है और सभी अच्छी होती है, लेकिन इसका अनुपालन किस तरह हो रहा है, यह ज्यादा जरूरी है। अधिकांश योजनाओं की स्थिति कोई बहुत ज्यादा ठीक नहीं रही है।

धरातल पर कुछ नहीं हुआ

बिल्डर आलोक सिंह कहते हैं कि इन तीन वर्षो में ऊपरी स्तर पर भले बहुत कुछ दिख रहा हो, लेकिन धरातल कुछ नहीं दिख रहा है। आगे दो साल में भी नहीं होगा। स्वच्छ भारत अभियान पर करोड़ों रुपये खर्च हो गया, निकलकर कुछ नहीं आया। ऐसा ही मेक इन इंडिया के साथ हुआ। इसके नाम पर कुछ नहीं बना।

रेरा के नाम पर ब्लैकमेल

डवलपर्स मानते हैं कि रीयल एस्टेट रेगुलेशन एक्ट (रेरा) अच्छा है। इससे पारदर्शिता आएगी, लेकिन इसका नाकारात्मक असर भी दिखने लगा है। अब उपभोक्ता कानून के नाम पर ब्लैकमेल करने लगे हैं। हालांकि उमेश शर्मा का कहना है कि इससे उन पर रोक लगेगी जो गलत तरीके से निर्माण करते थे। सही गलत का भी फर्क तय होगा। बिल्डर दीपेंद्र अग्रवाल के मुताबिक इससे अच्छे डवलपर्स पर कोई फर्क नहीं पडे़गा।

नौकरशाही आ रही आडे़

रेडिको के अध्यक्ष केसी जैन के मुताबिक सरकार की नीयत पर कोई शक नहीं है, मगर नौकरशाही यहां भी अड़ंगा डालने से बाज नहीं आ रही है। उनका माइंडसेट हो चुका है। इस पर अंकुश लगना चाहिए।

नए कानून में नियम अव्यवहारिक

बिल्डर्स का कहना है रेरा में नियम अव्यवहारिक है। कोई फिक्स पेनल्टी नहीं रखी गई। अधिकारी चाहे जितनी लगा सकता है। सालों पुराने प्रोजेक्ट्स का भी पंजीकरण कराना है जबकि रजिस्ट्री डिपार्टमेंट में डिजिटल रिकॉर्ड रखने की कोई व्यवस्था नहीं है।

किसानों के कर्ज माफ, हमें क्या दिया

परिचर्चा में बिल्डरों का दर्द बाहर आया। उनका कहना था कि किसानों की बदहाली देखते हुए उनका करोड़ों रुपये का कर्ज माफ कर दिया, लेकिन हमारी तरफ किसी ने नहीं सोचा जबकि सेक्टर की हालत लगातार खराब हो रही है।

पांच साल बाद रहेंगे सिर्फ कॉरपोरेट्स

सुमित गुप्ता का कहना है कि जिस तरह के हालात बन रहे हैं और जिस तरह की नीतियां बनाई जा रही हैं। उससे यह तय माना जा रहा है कि अगले पांच साल में रीयल एस्टेट सेक्टर में सिर्फ कारपोरेट्स ही होंगे। हम जैसे गायब हो जाएंगे।

किराएदारी कानून में हो परिवर्तन

किराएदारी कानून में परिवर्तन होना जरूरी है। विदेशों में बेदखली आसान है। इसलिए मकान को किराए पर देना आसान है, लेकिन यहां कानून सख्त न होने से किराएदारों की मानसिकता ही बदल जाती है। सालों तक कब्जा खाली नहीं करते हैं।

..तो विवादों में आएंगे प्रोजेक्ट्स

ऑनगोइंग प्रोजेक्ट्स को रेरा में नहीं लाना चाहिए। अगर प्रोजेक्ट विवादों के दायरें में आएंगे तो सभी का नुकसान होगा। बिल्डर भगत सिंह बघेल का कहना है कि नियम को लचीला बनाया जाना जरूरी है। बिल्डर कौशल सिंघल के मुताबिक इसमें केवल डवलपर्स की नहीं बल्कि अधिकारियों की भी जवाबदेही तय होनी चाहिए।

चाइना ने कहा न दिखाएं जल्दबाजी

बिल्डर मनीष बंसल का कहना है कि हाल में चाइना ने एक एडवाइजरी जारी कर निवेशकों से भारत के रीयल एस्टेट सेक्टर में जल्दबाजी न दिखाने के लिए सतर्क किया है। इससे समझा जा सकता है कि कारोबार आगे भी मंदी की चपेट में रह सकता है।

सुझाव

- अनापत्ति प्रमाण पत्र समय से जारी होने चाहिए।

- सरकारी अधिकारियों की भी जवाबदेही तय हो।

- सिंगल विंडो क्लियरेंस होना चाहिए

- खनन और नक्शे को एक अधिकारी अनुमति दे।

- लैंड पूलिंग कानून बनना चाहिए

- विकास शुल्क उसी परियोजना पर खर्च हो।

- भवन उपविधिया व्यवहारिक बनाई जाएं।

- आगरा में आइटी और नॉन पॉल्यूटिंग इंडस्टी को बढ़ावा देना चाहिए जिससे लोगों की क्रय शक्ति और बढे़।

ये रहे मौजूद

जेएस फौजदार, केसी जैन, अलोक सिंह, उमेश शर्मा, मनीष बंसल, भरत सिंह बघेल, सुमित गुप्ता, संतोष कटारा, दीपेंद्र अग्रवाल, कौशल सिंघल मौजूद रहे।


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