डीईआइ: संगीत के राग से जुड़ेंगे पेंटिंग के रंग
जागरण संवाददाता, आगरा : सुरों की सरगम और राग-रागिनी के साथ अगर रंगों को जोड़ दिया जाए तो ऐसी पेंटिंग
जागरण संवाददाता, आगरा : सुरों की सरगम और राग-रागिनी के साथ अगर रंगों को जोड़ दिया जाए तो ऐसी पेंटिंग सामने आएगी जो संगीत और कला का अद्भुत नमूना होगी। पर ऐसा होगा कैसे? राग-रागिनी पर आधारित पेंटिंग को भारत में कैसे तैयार किया जा सकता? इस क्षेत्र में शोध की संभावनाएं क्या हैं? इस पर विस्तृत चर्चा की गई है दयालबाग शिक्षण संस्थान में।
संस्थान के ड्राइंग एंड पेंटिंग विभाग द्वारा राग और रंग विषय पर कार्यशाला का आयोजन मल्टीमीडिया हॉल में किया गया। हैदराबाद से आए कलाकार प्रो. विजय कुमार, जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स, मुंबई के शार्दुल कर्दम, आगरा के प्रो. केशव तलेगांवकर के अलावा दुबई से सुरेखा और मुंबई के आचार्य पंडित अनुपम राय ने स्काइप पर कार्यशाला में हिस्सा लिया। सुरेखा ने बताया कि वे ऐसे प्रोजेक्ट पर कार्य कर रही हैं, जिसमें कैनवास पर पेंटिंग बनाकर बीमार बच्चों को ठीक करने की कोशिश करती हैं। इनमें कई बच्चों की दवाएं छूट चुकी हैं। अचार्य अनुपम राय ने कहा कि स्वर को रंगों से अलग कर ही नहीं सकते। दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसे पेंटिंग में कैसे उतारा जाए, इस पर अभी और चर्चा की जरूरत है। जर्मनी व अन्य देशों में ऐसा हो रहा है। प्रोफेसर भगवान दास ने कहा कि जिस तरह रंगों की अपनी फ्रीक्वेंसी होती है उसी तरह स्वरों की भी अपनी फ्रीक्वेंसी होती है। इसे आपस में जोड़कर बेहतर पेंटिंग तैयार की जा सकती है। इसके लिए स्केल, कंट्रास्ट, मूड का ध्यान रखना होगा। विभागाध्यक्ष प्रो. रागिनी रॉय, प्रो. अश्विनी कुमार शर्मा, डॉ. मीनाक्षी ठाकुर, डॉ. नमिता त्यागी, डॉ. सोनिका, विजया आदि मौजूद रहीं।
जो देखो उसे महसूस करो
कार्यशाला से पूर्व सुबह के सत्र में प्रो. विजय कुमार ने लैंडस्केप बनाकर छात्राओं को पेंटिंग की बारीकियां समझाईं। उन्होंने कहा कि जो भी दृश्य दिखाई देता है, उसे महसूस करो तभी पेंटिंग सुंदर बनाई जा सकती है। आम लोगों के पास वो दृष्टि नहीं होती जो कलाकारों के पास होती है। उन्होंने अर्मूत में मूर्त ढूंढने का प्रयास करने को कहा।