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मर्ज कैसा भी हो, दवाएं मुट्ठी भर

जागरण संवाददाता, आगरा: सामान्य बुखार में तीन दिन तक पैरासीटामोल टैबलेट से काम चल सकता है, मगर मरीज स

By Edited By: Published: Fri, 29 Jul 2016 01:03 AM (IST)Updated: Fri, 29 Jul 2016 01:03 AM (IST)
मर्ज कैसा भी हो, दवाएं मुट्ठी भर

जागरण संवाददाता, आगरा: सामान्य बुखार में तीन दिन तक पैरासीटामोल टैबलेट से काम चल सकता है, मगर मरीज समस्या बताता है और डॉक्टर का पेन से पर्चे को रंगता जाता है। यहीं नहीं, मधुमेह और हृदय रोगियों का पर्चा आगे और पीछे दोनों तरफ भरा होता है। ऐसे में मरीज सुबह से लेकर रात तक मुट्ठी भरकर दवाएं गटक रहे हैं।

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डॉक्टर पहले मर्ज पता करते हैं, इसके बाद दवाएं लिखी जानी चाहिए। हो यह रहा है कि मरीज लक्षण बताता है, डॉक्टर दवाएं लिख देते हैं। मर्ज का पता करने के लिए तमाम तरह की पैथोलॉजी जांच लिख दी जाती हैं। मरीज दो दिन बाद आता है। अधिकांश मामलों में पैथोलॉजी जांच सामान्य होती हैं, इसके बाद भी डॉक्टर एक दो और दवाएं बढ़ा देते हैं। मरीज को मौसमी वायरल संक्रमण है, तो वह सात दिन में सही हो जाता है। मधुमेह, अस्थमा, हृदय रोग सहित गंभीर बीमारी है, तो मरीज के पर्चे पर हर महीने दवाएं बढ़ती जाती हैं। कई बार मरीज की संतुष्टि के लिए दवाएं बदल दी जाती हैं, उन्हें दूसरी कंपनी की वही दवा लिख दी जाती है। इससे दवाओं का खर्चा बढ़ गया है।

डॉक्टर के रिश्तेदारों की दवा कंपनी

दवा के धंधे में मोटा मुनाफा कमाने के लिए डॉक्टर के रिश्तेदारों ने भी अपनी कंपनी खोल ली हैं। वे कुछ दवाएं तैयार करा लेते हैं, इसमें अधिकांश दवाएं विटामिन और न्यूट्रीशनल सप्लीमेंट होते हैं। ये डॉक्टरों के पर्चे पर ज्यादा दिखाई देते हैं।

करोड़ों का दवाओं का कारोबार

दवा का कारोबार करोड़ों में पहुंच चुका है। दवा कंपनियां डॉक्टरों को दवाएं लिखने के एवज में मोटा कमीशन दे रही हैं। ऐसे में कंपनी का टारगेट पूरा करने के लिए डॉक्टर कुछ दवाएं अतिरिक्त लिख देते हैं, जिनके बिना भी मरीज ठीक हो सकता है।

ये दवाएं लिखी जा रही ज्यादा

- सामान्य बुखार में एक से अधिक एंटीबायोटिक

- विटामिन और न्यूट्रीशनल प्रोडक्ट

- पेन किलर

- एसिडिटी की दवाएं

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'डॉक्टर गैर जरूरी दवाएं न लिखें। इसके लिए नेशनल मेडिकोज ऑर्गनाइजेशन (एनएमओ) प्रयास कर रही है। अक्टूबर में राष्ट्रीय कार्यशाला में इस पर चर्चा की जाएगी।'

डॉ. सुनील बंसल, एनएमओ

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'एंटीबायोटिक का अत्यधिक इस्तेमाल हो रहा है, इससे रजिस्टेंट डेवलप होने लगा है। इस पर रोक लगाई जानी चाहिए। हॉस्पिटल और आइसीयू में एंटीबायोटिक प्रोटोकॉल का पालन किया जाए।

डॉ. अंकुर गोयल, विभागाध्यक्ष, माइक्रोबायोलॉजी विभाग एसएन

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