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अशिक्षा के अंधेरे में तालीम की ताल

अली अब्बास, आगरा: समाज को सरकार नहीं बदलती। ये सेवा में जुटे फरिश्ते बदलते हैं। पांच साल पहले एसएन

By Edited By: Published: Fri, 19 Dec 2014 08:59 PM (IST)Updated: Fri, 19 Dec 2014 08:59 PM (IST)
अशिक्षा के अंधेरे में तालीम की ताल

अली अब्बास, आगरा: समाज को सरकार नहीं बदलती। ये सेवा में जुटे फरिश्ते बदलते हैं। पांच साल पहले एसएन मेडिकल कॉलेज से एमएस करके निकला एक युवा चिकित्सक। अरमानों की नब्ज पकड़कर भविष्य के इलाज को तैयार था। अचानक सब बदल गया। फरहत खान शाहगंज की मलिन बस्ती हमीद नगर गड्ढा में लगे एक मेडिकल कैंप में गए। वहां रहने परिवारों की गरीबी और रोते बच्चों को देखा तो दिल भर गया। यहीं से एक सेवा की फसल की बुवाई कर दी। उनके कदम गंदी गली में टूटी-फूटी छतों वाले 25 घरों की ओर मुड़ गए। वहां 106 बच्चों मे सिर्फ एक बालक स्कूल जाने वाला मिला। वह भी ग्यारह साल की उम्र में पहली कक्षा का छात्र था। उनके अभिभावकों ने दो जून की रोटी की जिद्दोजहद का हवाला देकर तालीम से हाथ खड़े कर दिए। इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। एक नई राह पर चल पड़े।

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लोहामंडी के मोती कुंज में रहने वाले डॉक्टर फरहत खान और उनकी पत्नी सुबुही बताते हैं कि यह शिविर उनकी जिंदगी को मकसद दे गया। उन्होंने अशिक्षा के अंधेरे से जूझते बच्चों को तालीम की रोशनी से नई दिशा देने का फैसला किया। इसके लिए चिकित्सक दंपति ने मित्रों और परिवारीजनों को योजना बनाई। ज्यादातर ने कहा कि कहां चक्कर में पड़ रहे हो परंतु मन न माना। आखिर उन्होंने दिसंबर 2009 में एस.एम. चैरिटेबिल सोसाइटी बनाई। इसकी मदद से ताजगंज, सदर के अलावा आजमपाड़ा, कमाल खां, राहुल नगर समेत एक दर्जन से अधिक मलिन बस्तियों में शिक्षा के प्रति जागरुकता अभियान चलाना शुरू किया। सबसे पहले ऐसे बच्चों को चिन्हित किया, जिनके मां-बाप गरीबी के चलते स्कूल नहीं भेजते थे। आखिर उनकी सहायता का सिलसिला शुरू कर दिया। वह उन बच्चों का किताब और ड्रेस का पूरा खर्च उठाने लगे जो पढ़ना चाहते थे। पांच साल के दौरान कई सौ बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला करा चुके हैं। इस मुहिम में स्कूलों ने फीस आदि में छूट देकर उनका काफी सहयोग किया। पढ़ने वाले बच्चों की लगातार समीक्षा करते हैं।

गरीब परिवारों को बच्चों की पढ़ाई के लिए मनाना टेढ़ी खीर होता है। डॉक्टर फरहत बताते हैं इसके लिए उदाहरण देते हैं कि कि बच्चों को पढ़ाएंगे तभी वह इंजीनियर-डॉक्टर बन सकेंगे। कमाल खां के एक परिवार को अपनी बेटियों को स्कूल भेजने के लिए उनको तीन दिन तक उसके घर जाकर मनाना पड़ा। उससे वादा किया कि स्कूल जाने वाले बच्चों पर एक रुपया भी नहीं खर्च करना पड़ेगा।

यह मिशन सफल होने पर डॉक्टर फरहत खान और सोसाइटी के अध्यक्ष अब्दुल मजीद और उप सचिव अय्यूब खान ने बच्चों की मुफ्त शिक्षा को आखिर स्कूल खोलने का फैसला किया। उन्होंने शाहगंज के कमला खां स्थित कच्चा तालाब की मलिन बस्ती को चुना। डॉ. फरहत बताते हैं, यह जगह चुनने की वजह यहां के लोगों में शिक्षा के प्रति सबसे ज्यादा उदासीनता थी। अब एक महीने पहले ही बस्ती में किराए पर मकान लेकर 110 बच्चों को पढ़ाने के लिए दो शिक्षकों की नियुक्ति की है। इन बच्चों को पढ़ता देख बस्ती के 90 और बच्चे पढ़ने के लिए तैयार हो गए हैं। अब इंतजाम बढ़ाए जा रहे हैं।

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इंसेट

बारह की उम्र के बाद कामकाज

चिकित्सक दंपति बताते हैं कि मलिन बस्तियों संस्था द्वारा सर्वे के दौरान चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इन बस्तियों में प्राइमरी शिक्षा ग्रहण करने (पहली से पांचवी कक्षा तक) वाले बच्चों का आंकड़ा 90 से 95 प्रतिशत तक था। वहीं छठी कक्षा में आते ही यह आंकड़ा 20-25 प्रतिशत तक रह गया था। ग्राफ में अचानक आई कमी की छानबीन की तो पता चला कि बच्चों के 12 साल की उम्र पार करते ही परिवारों ने काम पर लगा दिया था। इन परिवारों को बच्चों को आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए मनाने को काउंसिलिंग करनी पड़ी। कई परिवार अपने बच्चों को स्कूल भेजने को राजी हो गए।

जलाया दीप से दीप

दीप से दीप जलाने की योजना के तहत बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरित करने का काम किया। जिन बच्चों को स्कूल भेज रहे थे, उनके माध्यम से ही बस्ती के अन्य बच्चों को पढ़ने के लिए राजी करने की कोशिश होती। साथियों को अच्छी ड्रेस में कंधे पर बैग लादकर स्कूल जाते देखकर अन्य बच्चे भी धीरे-धीरे तैयार होने लगे।

दिन में इलाज, रात में शिक्षा की योजना

चिकित्सक दंपति बताते हैं यह सब इतना आसान नहीं रहा। उनको दिन में मरीजों को देखना पड़ता है, इसके बाद पढ़ने वाले बच्चों की देखभाल और उनके भविष्य की योजना को अभिभावक के नजरिए से देखना पड़ता है। देर रात तक जागना पड़ता है। हां, यह सब करके उनके दिल को सुकून मिलता है। इन बच्चों के परिवार जब दुआ को हाथ उठाते हैं तो ऊर्जा दुगुनी हो जाती है।

मलिन बस्तियों के लिए मोबाइल क्लीनिक की तैयारी

डॉक्टर फरहत और उनकी पत्नी डॉक्टर सुबुही का एमजी रोड पर एसएम के नाम से हॉस्पिटल है। दंपति मोती कुंज में इसी नाम से चैरिटेबिल हॉस्पिटल चलाते हैं। जहां वह बच्चों का मुफ्त इलाज करते हैं। कई मरीज तो इतने गरीब होते हैं कि उनके पास अस्पताल तक आने के लिए रुपये नहीं होते। इसके चलते वह मोबाइल क्लीनिक की योजना पर काम कर रहे हैं। इस क्लीनिक में एक्स-रे मशीन, अल्ट्रासाउंड की मशीन तथा खून की जांच की पूरी यूनिट होगी। मलिन बस्तियों और वहां स्थित प्राथमिक विद्यालयों में जाकर मुफ्त जांच और दवाएं उपलब्ध कराएगी।

लोग जुड़ते गए कारवां बनता गया

चार साल पहले डॉक्टर फरहत ने जब तालीम फैलाने का फैसला किया था, तब लगा यह काफी मुश्किल है। आखिर लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया। चार साल बाद जब पीछे मुड़कर देखते हैं, तो लगता है कि उन्होंने सही किया था। सुशिक्षित समाज की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार नहीं, हम सभी की है।


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