डॉक्टरों ने ढूंढ निकाला 'केजरीवाल खांसी' का इलाज
जागरण संवाददाता, आगरा: मुंह पर हाथ रखकर खुल्ल-खुल्ल, आमजन के बीच अब यह 'केजरीवाल खांसी' के नाम से प्
जागरण संवाददाता, आगरा: मुंह पर हाथ रखकर खुल्ल-खुल्ल, आमजन के बीच अब यह 'केजरीवाल खांसी' के नाम से प्रचलित है, तो डॉक्टरों के लिए भी चुनौती बनी हुई है। शुक्रवार को होटल जेपी पैलेस में 16वें नेशनल कॉलेज ऑफ चेस्ट फिजीशियंस एवं दि इंडियन चेस्ट सोसायटी (आइसीएस) के सम्मेलन के दूसरे दिन 'केजरीवाल खांसी' के इलाज की गाइड लाइन तय की गई।
सम्मेलन में डॉ. भारत गोपाल, नेशनल चेस्ट सेंटर, दिल्ली ने बताया कि छह से आठ सप्ताह तक खांसी होने पर इलाज मुश्किल होता है। इन मरीजों की जांच में टीबी और फेफड़ों का संक्रमण नहीं होता है। फिर खांसी क्यों आती है, इसके लिए मूल कारण तक पहुंचना जरूरी होता है। इस तरह की खांसी का एक बड़ा कारण एसिडिटी है। जिन मरीजों को एसिडिटी की समस्या रहती है, इन मरीजों में गेस्ट्रो इसोफेगस रिफलक्स डिसऑर्डर (जीईआरडी) से एसिड गले तक आ जाता है और खांसी आने लगती है। वहीं, कई मरीजों में जुकाम (नजला) होने पर खांसी और कुछ मरीजों में अस्थमा, एलर्जी और ड्रग एंडज्यूड कफ से भी खांसी की समस्या रहती है। इसकी जांच करने के लिए एंडोस्कॉपी और राइनोस्कॉपी (गले और खाने की नली की जांच) की जाती है। साथ ही एकॉस्टिक कफ रिकॉर्डर से भी जांच की जाती है। ऐसे मामलों में एसिडिटी की दवा, एंटी रिफलक्स सर्जरी के साथ ही अस्थमा और एलर्जी की दवा देकर इलाज के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। वहीं, सम्मेलन में रेस्पेरेटरी एलर्जी, टीबी के इलाज पर चर्चा की गई।
इस दौरान आयोजन सचिव डॉ. राकेश भार्गव, सह आयोजन सचिव डॉ. संतोष कुमार, डॉ. गजेंद्र विक्रम सिंह सहित देश-विदेश और आयोजक एसएन मेडिकल कॉलेज, आगरा और जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज, अलीगढ़ के चिकित्सक मौजूद रहे।
टीबी के सरकारी इलाज में होने लगा बदलाव
सरकारी अस्पतालों में टीबी के इलाज के लिए डायरेक्ट ऑब्जर्व थैरेपी (डॉट्स) के तहत एक दिन छोड़कर दवा दी जाती है। सम्मेलन में डॉट्स के सरकारी इलाज पर निजी क्लीनिक पर मरीजों को हर रोज दी जा रही दवा पर बहस हुई। आइसीएस के उपाध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत ने टीबी की दवा हर रोज देने के पक्ष में अपना तर्क रखा। उन्होंने कहा कि एक दिन छोड़कर दी जा रही टीबी की दवा से रिलेप्स और मल्टी ड्रग रजिस्टेंट एमडीआर टीबी के केस बढ़ रहे हैं। वहीं, डॉ. जयकिशन, पंजाब ने डॉट्स के दवा शेड्यूल को सही बताया। काफी देर तक चली बहस के बाद डॉ. रोहित, निदेशक नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टीबी एंड रेस्परेटरी डिसीज ने बताया कि अब बच्चों को एक दिन छोड़कर दवा देने के बजाय डॉट्स के तहत हर रोज दवा दी जा रही है।
अस्थमा की दवा से बच्चों की लंबाई हो रही कम
एसएन मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभागाध्यक्ष डॉ. राजेश्वर दयाल ने बच्चों के अस्थमा पर शोध पत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि 15 फीसद बच्चे अस्थमा के शिकार हो रहे हैं। इसके प्रमुख कारण अनुवांशिक, परिजनों का धूमपान करना और वायु प्रदूषण है। अस्थमा पीड़ित बच्चों में हाई डोज कॉटीकोस्टीरॉयडदेने से लंबाई भी प्रभावित हो रही है। ऐसे में कम डोज में दवा देने का सुझाव दिया गया।