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मां! बताओ ये प्रतिमा या शिला

By Edited By: Published: Sat, 26 Jul 2014 01:00 AM (IST)Updated: Sat, 26 Jul 2014 01:00 AM (IST)
मां! बताओ ये प्रतिमा या शिला

जागरण संवाददाता, आगरा: उन्नाव के डोंडियाखेड़ा में साधु का सपना खरा नहीं खोटा निकला। वहां स्वप्न के मुताबिक सोना नहीं निकला। यहां भी मामला सपने का है लेकिन सोने की बात नहीं प्रतिमाओं की है। तप पर बैठी नौ देवियों के सपने के अनुसार खुदाई चल रही है। मीडिया की भीड़ और चैनलों की ओबी वैन की लाइनों के बीच शुक्रवार को एक पत्थर निकला तो वहां मौजूद एक बच्चा अपनी मां से पूछने लगा- मां, यह क्या है। दुविधा बहुत थी मां क्या बताए प्रतिमा या पत्थर। मां चुप रही, क्योंकि बात आस्था की थी।

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जगनेर ब्लॉक के खौरपुरा गांव की हकीकत इसके इर्द-गिर्द घूमती है। अरावली पर्वत श्रंखला की पहाड़ी की तलहटी में जहां 14 दिन से विश्वास, आस्था, असमंजस और कयासों की मिलीजुली बयार चल रही थी, वहां शुक्रवार शाम आस्था का ज्वार फूट पड़ा। खुदाई में एक शिला निकल आई। देखने में यह पत्थर ही है, लेकिन आस्था में डूबे ग्रामीणों ने इसे पथवारी माता मान पूजा शुरू कर दी है।

आगरा से लगभग 70 किलोमीटर दूर अरावली पर्वत श्रंखला के बीच बसा है जगनेर का बहिरगवां खुर्द। इसका मजरा है खौरपुरा। यहां 13 जुलाई से शुरू हुए एक घटनाक्रम ने गांव की तस्वीर बदल रखी है। उस वक्त किसान श्रीनिवास सिंह की 14 वर्षीय बेटी अंजना के हावभाव अचानक बदल गए थे। परिजनों के मुताबिक, वह खुद को माता कहने लगी और घर से थोड़ी दूर तप पर जा बैठी। परिजन देर शाम जबरन उसे घर ले आए। एक दिन बमुश्किल रोक पाए। 15 जुलाई को वह फिर दूसरे स्थान पर जा बैठी और बोली यहां खुदाई करने पर शेड़ (पथवारी) माता और काली माता की प्रतिमाएं निकलेंगी। माता-पिता ने दबाव बनाया तो बोली- मैं अकेली नहीं हूं। मेरे साथ आठ देवियां और हैं। ग्रामीणों के मुताबिक, गांव की ही दो कन्याएं उसी दिन रोती हुई उसी स्थान पर पहुंच गई और अंजना वाली बात ही दोहराई। दो-तीन दिन में नौ कन्याएं अन्न त्याग कर तप पर बैठ गई।

उसके बाद से वहां मेला सा सजा हुआ है। दूर-दूर से हजारों ग्रामीण रोजाना पहुंच रहे हैं। धीरे-धीरे खुदाई हो रही थी। शुक्रवार को दिन भर खुदाई के बाद कुल नौ फुट गहरा गड्ढा हो गया, तभी शाम लगभग 5.30 बजे मिट्टी में एक शिला निकल आई। देवी स्वरूप में लाल चुनरी ओढ़े बैठी कन्याएं और ग्रामीण इस शिला को पथवारी माता की प्रतिमा बता रहे हैं। उनका तर्क है कि पथवारी माता की प्रतिमा किसी आकृति में नहीं होती। शिला के स्वरूप में ही पाई जाती हैं। दूसरे स्थानों से पहुंचने वाले हालांकि तर्क-वितर्क कर रहे थे। उनका कहना था कि यह तो पत्थर है। लेकिन ग्रामीणों के लिए अब यह स्थान पावन तीर्थ के समान हो चुका है। शिला निकलते ही भीड़ का दबाव बहुत बढ़ गया। हवन-पूजन और देवी स्वरूप में बैठी कन्याओं की परिक्रमा शुरू हो गई।

सच के दावे का अब इससे होगा फैसला

तप पर बैठी कन्याओं कहना है कि अभी 15 फुट खुदाई होने पर काली माता की मूर्ति निकलेगी। शुक्रवार को शिला निकलने के बाद वहां आस्थावानों का यह पूरा विश्वास है कि दावे के अनुसार प्रतिमा निकलेगी। इससे ही सपने की बात पर पूरी मुहर लगेगी।


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