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देखें भारत के आखिरी गांव कहे जाने वाले छितकुल की अनछुई प्राकृतिक खूबसूरती

भारत का आखिरी गांव कहे जाने वाले छितकुल की अपनी सौंदर्य भरी यात्रा के अनुभव साझा कर रहे हैं गिरीश तिवारी...

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sun, 31 Jul 2016 08:52 AM (IST)Updated: Sun, 31 Jul 2016 09:28 AM (IST)
देखें भारत के आखिरी गांव कहे जाने वाले छितकुल की अनछुई प्राकृतिक खूबसूरती
देखें भारत के आखिरी गांव कहे जाने वाले छितकुल की अनछुई प्राकृतिक खूबसूरती

बर्फ से लदी पर्वत चोटियों से सटे हरे-भरे घास के मैदानों के बीच से निकलती छोटी-छोटी नदियां, जिनकी सतह पर मौजूद सफेद पत्थरों पर जब सूरज की किरणें पड़ती हैं, तो अविरल धारा पर उभरते सफेद मोती जैसे प्रतिबिंब को देख ऐसा लगता है कि कहीं यह किसी चित्रकार की कल्पना तो नहीं। भारत-तिब्बत सीमा पर बसा चितकुल (छितकुल) गांव ऐसी ही एक जगह है। इसे भारत का अंतिम गांव भी कहा जाता है। यह समुद्र तल से करीब 3450 मीटर की ऊंचाई पर हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में स्थित बास्पा घाटी का अंतिम और ऊंचा गांव है। बास्पा नदी के दाहिने तट पर स्थित इस गांव में स्थानीय देवी माथी के तीन मंदिर बने हुए हैं। इस गांव को किन्नौर जिले का क्राउन भी कहा जाता है।
अनछुई खूबसूरती
हिमाचल की राजधानी शिमला से करीब 250 किलोमीटर की दूरी पर बसा यह गांव प्रकृति की बेजोड़ सुंदरता को अपने में समाए हुए है। प्रकृति के इस मनोरम दृश्य ने पिछले 24 घंटे के सफर की थकान को एक नई ऊर्जा में बदल दिया। 24 घंटे पहले जब मैं दिल्ली से चला था, तो मन में बस छितकुल पहुंचने की लालसा थी। मेरे साथ दो मित्र राजेश शैली और गोपाल शर्मा भी थे। रात के करीब 10 बजे होंगे। हमने कार में एक डोम टेंट, स्लिपिंग बैग और कुछ गरम कपड़ों के साथ खाने-पीने का सामान भी रख लिया था।

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लगातार सात घंटे की ड्राइविंग के बाद सुबह पांच बजे जब नींद आने लगी, तब तक शिमला शहर से 13 किलोमीटर आगे नेशनल हाइवे 22 के साथ करीब 2290 मीटर की ऊंचाई पर बसे हिल स्टेशन कुफरी पहुंच चुके थे। लगातार ड्राइविंग से थकान भी काफी हो गई थी। सड़क से कुछ दूरी पर छोटे घास के मैदान पर तिरपाल बिछाया और स्लिपिंग बैग निकालकर हमने करीब तीन घंटे की नींद ली। उठे तो फिर वही छितकुल पहुंचने की लालसा। कार स्टार्ट की और आगे के सफर पर निकल पड़े।
हाटू मंदिर
घुमावदार पहाड़ी रास्तों पर करीब 50 किलोमीटर चलने के बाद शिवालिक पर्वत श्रेणी से घिरे 2710 मीटर की ऊंचाई पर बसे नारकंडा पहुंच चुके थे। नारकंडा भी लोकप्रिय हिल स्टेशन है। अब भूख भी लगने लगी थी। होटल में कुछ देर के लिए रुके। फ्रेश होकर ब्रेकफास्ट का जमकर लुत्फ लिया। नारकंडा से पांच किलोमीटर आगे देवदार के पेड़ों से घिरे 3400 मीटर की ऊंचाई पर हाटू पीक है।


यहां लकड़ी से बना हाटू माता का मंदिर है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह मंदिर रावण की पत्नी मंदोदरी का है। मंदिर का दर्शन करने के बाद जब हाटू पीक पर पहुंचे, तो यहां प्रकृति की अद्भुत छटा देखते ही बनती थी। रुई के फाहों से उड़ते बादलों के बीच ऐसा लग रहा था कि मानो आसमान में उड़ रहे हों। करीब दो घंटे यहां बिताने के बाद हम निकल पड़े अपने गंतव्य की ओर।
खतरनाक सड़कें
नारकंडा से रामपुर, सराहन, वांगटू, करच्छम, सांगला से होते हुए दुनिया की कुछ सबसे खतरनाक सड़कों को पाकर हम आगे बढ़ रहे थे, जिसे ड्राइविंग के लिए एक चुनौती माना जाता है। इन चुनौती भरे रास्तों से होते हुए हम रात के आठ बजे करीब 3059 मीटर की ऊंचाई पर बास्पा नदी के किनारे बसे रक्छम गांव पहुंच चुके थे। खूबसूरत गांव रक्छम रक्छम पहाड़ की ऊंचाइयों पर बसा खूबसूरत गांव है। बर्फ से लदी पर्वत चोटियों के बीच बसे छितकुल से 10 किलोमीटर पहले करीब 3050 मीटर की ऊंचाई पर यह गांव है। यहां से हरे-भरे घास के मैदानों से होते हुए छोटी-छोटी जल धाराएं निकलती हैं, जो आगे चलकर बास्पा नदी में समा जाती हैं।


रात में खुले आसमान से निकलती चांदनी में नहाते पहाड़ों के बीच दूर-दूर तक फैले मैदान ऐसा लग रहा था, मानो घास का एक कारपेट बिछा हो। फिर क्या, हमने भी इसी चांदनी रात के बीच मैदान में अपना टेंट लगाने का फैसला किया। स्लीपिंग बैग में घुसने के बाद कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। नींद तब टूटी जब सुबह सूरज की लालिमा चारों तरफ अपने सौंदर्य की छटा बिखेर रही थी। रक्छम से छितकुल की दूरी लगभग 10 किलोमीटर की है। दोनों गांव के बीच घास के मैदान पर पहाड़ों से पिघल कर बर्फ की छोटी-छोटी धाराएं निकलती दिखाई देती हैं। ये छोटी-छोटी धाराएं इस स्थान को अद्भुत बना देती हैं। रक्छम और छितकुल के बीच कई ऐसी जगहें हैं, जो प्रकृति प्रेमियों को अपनी और आकर्षित करती हैं। अगर आप अपना टेंट लगाना चाहें, तो घास के मैदानों पर लगा सकते हैं।

ट्रैकर्स के लिए अद्भुत जगह

जो लोग एडवेंचर यानी ट्रैकिंग के शौकीन हैं, वे रक्छम से छितकुल के बीच10 किलोमीटर की लंबी ट्रैकिंग कर सकते हैं। जो लोग इससे भी ज्यादा ट्रैकिंग करने का साहस रखते हैं, वे रक्छम से 12 किलोमीटर का ट्रैक कर रक्छम कांडा तक जा सकते हैं। यहां नदियों के उद्गम स्थल भी दिखाई देंगे।

दर्शनीय स्थल

सांगला वैली के कामरू गांव में करीब 2600 मीटर की ऊंचाई पर कामरू फोर्ट 15वीं शताब्दी में बना था। इसी के प्रांगण में कामाख्या देवी का मंदिर है। लकड़ी का बना यह फोर्ट लकड़ी पर की गई अद्भुत नक्काशी के लिए विख्यात है। यहां पहुंचने के लिए लगभग 500 मीटर पैदल चलना पड़ता है। यहीं से किन्नर कैलाश को भी देखा जा सकता है। यहां से आप रिकांगपियो, पूह विलेज, नाको, काजा होते हुए स्पीति वैली जा सकते हैं।

कब जाएं

छितकुल आने के लिए सही समय अप्रैल से मध्य जून और अगस्त से अक्टूबर तक माना जाता है। लेकिन याद रहे, चाहे चिलचिलाती गर्मी का ही मौसम क्यों न हो अपने साथ गर्म कपड़े हमेशा रखें, क्योंकि यहां बारिश के छींटे भी दिसंबर और जनवरी की कड़कड़ाती सर्दी का अहसास कराने के लिए काफी है।

कैसे पहुंचें

शिमला से किन्नौर के लिए बसें मिल जाती हैं। नजदीक का हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन शिमला में ही है। नेशनल हाईवे 22 पर शिमला से रिकांगपिओ तक का सफर लगभग 10 घंटे का है। आप रिकांगपिओ या फिर रक्छम से छितकुल के लिए बस या फिर किराये की गाड़ी भी ले सकते हैं।

कहां ठहरें

छितकुल में ठहरने और खाने की उचित व्यवस्था है। यहां आपको आधुनिक सुख-सुविधाओं वाले होटल मिल जाएंगे।

(लेखक दैनिक जागरण के फोटो पत्रकार हैं)
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