एक सड़क, दो राष्ट्रपति
ये बेहतर बात है कि नेताओं से हटकर भी लुटियन दिल्ली में समाज के खास लोगों के नामों पर सड़कें हैं। वर्ना तो ये मान सा लिया गया है कि प्रमुख सड़कों के नाम नेताओं के नामों पर ही रखे जाएंगे।
ये बात उन दिनों की है जब डॉक्टर केआर नारायण देश के राष्ट्रपति थे। एक दिन उनका काफिला राष्ट्रपति भवन से दाराशिकोह रोड की तरफ बढ़ा तो उनकी नजर वहां से गुजरने वाली एक छोटी सी सड़क के नाम पर पड़ी। नाम था हुक्मी माई रोड। इस नाम को पढ़कर वे चौंके। वे बड़े सरस्वती पुत्र थे। जब भी उस ओर से गुजरते तो हुक्मी माई मार्ग पढ़कर सोचने लगते कि ये नाम किस शख्सियत का है। उन्होंने अपने स्तर पर इस नाम की असलियत जानने की भी चेष्टा की। लेकिन बात नहीं बनी। एक दिन उन्होंने अपनी जिज्ञासा अपने स्टाफ के माध्यम से नई दिल्ली नगर पालिका (एनडीएमसी) के चेयरमैन के पास भिजवाई। पूछा गया कि हुक्मी माई कौन हैं? ये किस्सा सुनाते हैं कभी एनडीएमसी के सूचना विभाग के निदेशक रहे मदन थपलियाल। राष्ट्रपति के दफ्तर से मांगी गई जानकारी के बाद तो सारा स्टाफ लग गया हुक्मी माई के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए। जाहिर है, इससे अहम काम और कोई हो ही नहीं सकता था। आखिर देश के महामहिम कुछ जानकारी प्राप्त करना चाहते थे। काफी मशक्कत के बाद पता ये चला कि हुक्मी माई नामधारी सिख समाज की एक पूजनीय स्त्री थीं। वो हिन्दू और सिख धर्म की प्रकांड विद्वान थीं। उनका जन्म पंजाब में सन 1870 के आसपास हुआ। वो विश्व बंधुत्व, प्रेम और भाई-चारे का संदेश देती रहीं। अब सवाल उठता है कि हुक्मी माई के नाम पर सड़क का नाम किसने और कब रखवाया? पता चला कि जब ज्ञानी जैल सिंह देश के राष्ट्रपति थे, उन दिनों नामधारी सिखों ने उनसे अनौपचारिक रूप से आग्रह किया था कि वे (जैल सिंह) हुक्मी माई के नाम पर नई दिल्ली की किसी सड़क का नाम रखवा दें। यानी आग्रह किया गया होगा सन 1982-97 के बीच में। उसी दौरान जैल सिंह देश के राष्ट्रपति थे। जाहिर है कि जैल सिंह ने इस बाबत इच्छा जाहिर कर दी होगी और फिर एनडीएमसी ने उनके आदेश का पालन करने में विलंब नहीं किया हुआ होगा। ये बेहतर बात है कि नेताओं से हटकर भी लुटियन दिल्ली में समाज के खास लोगों के नामों पर सड़कें हैं। वर्ना तो ये मान सा लिया गया है कि प्रमुख सड़कों के नाम नेताओं के नामों पर ही रखे जाएंगे। खैर, हुक्मी माई रोड शुरू में कर दिया गया था हुक्मी बाई मार्ग। अहिल्या बाई मार्ग की तर्ज पर। लेकिन बाद में नामधारी सिखों की तरफ से एनडीएमसी को बताया गया कि शुद्ध नाम हुक्मी माई है न कि हुक्मी बाई। फिर नाम शुद्ध हुआ। अब तो दिल्ली पुलिस का यातायात महकमा इसे हुक्मी माई रोड ही कहता है।
निश्चित रूप से हुक्मी माई प्रमुख समाज सुधारक थीं।
उन्होंने अपने समय के भारतीय समाज में व्याप्त कुप्रथा, अंधविश्वास, रुढि़वाद और पाखंडों को दूर करते हुए जन-साधारण को धर्म के ठेकेदारों, पण्डों, पीरों आदि के चंगुल से मुक्त किया। उन्होंने प्रेम, सेवा, परिश्रम, परोपकार और भाई-चारे का संदेश दिया। हुक्मी माई जैसी महान हस्तियों पर दिल्ली और देश के दूसरे शहरों के प्रमुख मार्ग होने चाहिए।
विवेक शुक्ला
लेखक व इतिहासकार