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दिल्ली के पहले शहर की एतिहासिक राहें

इतिहास को जानने की उत्सुकता में पैडल थमते नहीं हैं और पहुंच जाते हैं गांव की दहलीज पर। जहां यात्रा का पहला पड़ाव आता है। इसी सड़क के दाहिनी ओर अधम खान का मकबरा है।

By Babita KashyapEdited By: Published: Sat, 15 Apr 2017 02:10 PM (IST)Updated: Sun, 16 Apr 2017 11:00 AM (IST)
दिल्ली के पहले शहर की एतिहासिक राहें
दिल्ली के पहले शहर की एतिहासिक राहें

मिहिरपुरी, मिहिरावली उसके बाद महरौली। दिल्ली के पहले शहर के ऐसे ही नाम बदलते चले गए। उस वकत में मिहिर भोज के राज के कारण इस जगह को महिरपुरी नाम दिया गया था। हजार साल पुराने इतिहास को समेटे इस अनूठे शहर के अंचल में सूफी रुहानी अंदाज के साथ धार्मिक सौहार्द की मिसाल समाई हैं। 

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 सुबह करीब साढ़े छह बजे, अलग अलग क्षेत्रों से लोग कुतुब मीनार के नजदीक कुतुब टिफिन कैफे में एकत्रित होते हैैं। इस साइकिल हेरिटेज टूर में डॉक्टर, आर्किटेक्ट, वकील, कनाडा दूतावास के अधिकारी, सरकारी अधिकारी भी दिलचस्पी लेते हैं। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर (इंटेक) की वॉलंटियर गनीव कौर की अगुवाई में यहीं से साइकिल सवारों का समूह निकलता है। कुतुबमीनार के सामने से होकर गुजरती हुई सड़क अब गांव की तरफ चढऩे लगती है। जाहिर है चढ़ाई है तो साइकिल सवारों के लिए मुश्किलें भी हैैं। लेकिन इतिहास को जानने की उत्सुकता में पैडल थमते नहीं हैं और पहुंच जाते हैं गांव की दहलीज पर। जहां यात्रा का पहला पड़ाव आता है।  इसी सड़क के दाहिनी ओर अधम खान का मकबरा है। अतीत के पन्नों को समेटे इस मकबरे के अहाते से होकर गुजरती हुई दीवार, दिल्ली के पहले शहर लाल कोट की है। हालांकि ठोस ग्रेनाइट व कंक्रीट के मसालों से बंधी दीवार का अब कुछ ही हिस्सा रह गया है। लाल कोट के दुर्ग को तोमर राजा अनंगपाल ने बनवाया था। राजा अनंगपाल को हराकर पृथ्वी राज चौहान ने यहां अपनी बादशाहत कायम की और लाल कोट की दीवार पर अपने दुर्ग की दीवार बनवाई जिसे किला राय पिथौरा भी कहा जाता है। बहरहाल, सूर्य के उदय की लालिमा में अधम खान के मकबरे की खूबसूरती और निखर रही है। मकबरे की गुंबद, चारों ओर मेहराब नुमा गेट, उस पर तार व कमल की सजावट आकर्षित करती है। बताते हैं इसे अकबर ने अपनी मुंह बोली दाई मां माहम अंगा के लिए बनवाया था। अधम खान माहम अंगा का बेटा था। अधम खान ने अकबर के सबसे खास कमांडर अतगा खां को मार डाला था, जिसके बाद अकबर ने अधम खान को आगरा के किले से नीचे फिंकवा दिया था। बेटे की मौत के गम में माहम अंगा की भी सांसे थम गईं। दोनों को इसी मकबरे में दफनाया गया। लेकिन ब्रिटिश राज में दोनों की कब्र को इस मकबरे से हटा दिया गया। इस मकबरे को अंग्रेजों ने अपना पुलिस स्टेशन बनाया। देश आजाद होने के बाद अधम खान की कब्र को यहां रखा गया। स्थानीय लोग इसे भूल भुलैया भी कहते हैैं क्योंकि इसकी सीढिय़ों से ऊपर जाने वाला रास्ता थोड़ा पेचीदा है। 

-गंधक की बावली 

अब मकबरे से थोड़ा आगे बढ़ेंगे तो महरौली की मुख्य सड़क के बाईं ओर एक सड़क नीचे उतरती दिखाई देती है जो गंधक की बावली पर रुकती है। यहां चिडिय़ों की चहचहाट के साथ मुर्गे की बांग की आवाजें भी बेहद मधुर लगती है। इस बावली का पानी हरा नजर आता है लेकिन इसे लोग पाक मानते हैं। पांच तल वाली इस बावली का निर्माण इल्तुतमिश ने 13वीं शताब्दी में खासतौर पर सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के लिए करवाया था। इसके पानी में रसायन सल्फर की गंध आती है इसलिए इसे गंधक की बावली कहा जाता है। इसके दक्षिणी हिस्से में एक गहरा कुआं भी है। इसी बावली के पास कुतुब साहिब की दरगाह और जफर महल भी है। इस शहर में यही एक इकलौती सड़क हुआ करती थी। बाद में बहादुर शाह जफर ने अपनी आवाम के लिए गांव के बाहर एक और सड़क बनवाई।

-जहाज महल की सैर 

अब हमारा साइकिल टूर अपने अगले पड़ाव जहाज महल की ओर बढ़ता है। बावली से महल की दूरी तकरीबन दो किलोमीटर होगी लेकिन यह दूरी भी बेहद रोचक किस्सों से भरी है। इस रास्ते पर प्रथम ïिवश्व युद्ध में मारे गए महरौली और बदरपुर के 92 लोगों की याद में स्मारक बनाया गया है। ब्रिटिश राज के समय इस यादगार दीवार को बनवाया गया था। शहर के बीच से गुजरती हुई आड़ी तिरछी सड़के के किनारे हुक्के कई दुकाने हैं। जहां पुरानी गुडग़ुड़हाट के अंदाज से लेकर आज के आधुनिक युग के हुक्के जीवन शैली को दर्शाता है। इसके अलावा इन दिनों सड़कों पर चुनावी रंगत भी दिखाई देती है। इसी रास्ते पर हिज्रों की खानकाह भी है। सब्जी बाजार से होते हुई हम अपने अगले पड़ाव यानी जहाज महल पर जाकर रुकते हैं। जहाज की आकृति जैसा दिखने वाले इस महल का निर्माण लोदी काल में कराया गया था। इस महल में इस्लामिक आर्किटेक्चर का खूब इस्तेमाल किया गया। संकरी सीढिय़ों से होते हुए जहाज महल की छत पर गांव का नजारा लिया जा सकता है। यहां ऐतिहासिक हौज-ए-शम्सी को भी देखा जा सकता है। इसे इल्तुतमिश ने जल संग्रहण के लिए बनवाया था। यहीं पर फूल वालों की सैर का कार्यक्रम भी होता है। इसी के नजदीक झरना भी है जिसे चार बाग की तर्ज पर विकसित किया गया था। बादशाह अपनी बेगमों के साथ यहां घूमने आया करते थे। करीब पांच सौ साल पहले बने इस झरना परिसर में दो छोटे स्मारक हैैं जिसमें कुछ कब्र हैं। झरने के बाद इस सफर का अगला पड़ाव आर्कियोलॉजिकल पार्क के अंदर बलबन का मकबरा है। महरौली की सड़कों से बाहर निकल अब हम गुडग़ांव महरौली रोड़ होते हुए आर्कियोलॉजिकल पार्क में प्रवेश करते हैैं। इस पार्क में करीब 100 ऐतिहासिक महत्व के स्मारक हैैं। लेकिन गियासुद्दीन बलबन का मकबरा इस्लामिक आर्किटेक्चर में खास स्थान रखता है। मुगल सेना के लिए बनाए कमरों के खंडहरों से होकर जंगल के बीच टूटा फूटा सा मकबरा है। इसकी खास बात इसकी मेहराब है। कहा जाता है कि 13 वीं शताब्दी में पहली बार इसी मकबरे में सही तरीके से मेहराब बनाई गई। क्योंकि इसमें वी आकार के पत्थर लगाए हैैं। जबकि कुतुबमीनार के चारों ओर बनाई गई मेहराबी दीवारें इसलिए ढह गई क्योंकि इसकी मेहराब गलत तरीके से बनाई गई थीं। 

-जमाली कमाली का सवा-जवाब स्टाइल 

अगला पड़ाव जमाली कमाली का मकबरा है, जो वास्तु के हिसाब से पर्यटकों को आकर्षित करता है। इसे सवाल जवाब की तर्ज पर बनाया गया था। गुंबद में अब भी फूल वाली सुंदर पेंटिंग लगी हुई हैं। पांच मेहराब के अंदर फारसी में आयत भी लिखी देखी जा सकती हैैं। जमाली कमाली की कब्र पास के अहाते में है जिसे बंद रखा जाता है। इसके बाद लोदी काल(1506) में बनी राजाओं की खूबसूरत बावली अगला पड़ाव है। यह बावली राजाओं के कारीगर द्वारा इस्तेमाल की जाती थी। शायद इसलिए इसका नाम राजाओं की बावली रखा गया। 

-कूली खान या मेटकाफ का आरामगृह 

अकबर की दाई मां माहम अंगा का बेटा कूली खान के लिए बनाए गए इस मकबरे का इस्तेमाल मुगलों और ब्रिटिश प्रशासन की कड़ी कहलाने वाले थॉमस मेटकाफ ने खूब किया। वे इसे दिलखुश भी कहा करते थे। उन्होंने इस मकबरे से कब्र हटा कर इसके चारों ओर कमरे बना दिए। यही नहीं अपने खास दोस्तों के लिए गेस्ट हाउस भी बनवाया। इस मकबरे के ठीक सामने बोट हाउस भी बनवाया। उस जमाने में यह क्षेत्र पानी से घिरा हुआ था। इसी क्षेत्र में मेटकाफ द्वारा बनाए गए पुल को भी देखा जा सकता है। आज कल प्री ब्राइडल शूट्स के लिए इस जगह को खूब पसंद किया जाता है। 

प्रस्तुति : विजयालक्ष्मी, नई दिल्ली 


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