अब फिर से दिल्ली 6 को क्यों इंतजार है अरुणा आसफ अली का
राजधानी में शराब की दुकानें लगभग चक्रवृद्धि ब्याज की रफ्तार से खुल रही हैं। पर इनसे दिल्ली-6 बची हुई थी। लेकिन जब सब कुछ बदलेगा तो अपनी पुरानी दिल्ली क्यों नहीं बदलेगी।
दिल्ली 6 में जो अब हो रहा है, वह कभी नहीं हुआ था। ये कोई बहुत पुरानी बात नहीं है जब इसके अंदर-बाहर की हदें मदिरा के मुरीदों को रास नहीं आती थीं। वजह ये थी कि इधर शराब की दुकाने नहीं थीं, लेकिन अचानक से बीते कुछेक सालों में इधर शराब की पांच दुकान खुल गईं। डिलाइट से दिल्ली गेट के बीच दो दुकान खुलीं। इनके ठीक पास है बुलबुलीखाना का गर्ल्स स्कूल। इसी तरह से दो मेन दरियागंज में चालू हो गईं और एक कमला मार्केट में चलने लगी। यानी दो-ढाई किलोमीटर में पांच शराब की दुकानें और अब ये जब तक खुली रहती हैं, तब तक इन सबमें इनके कद्रदान पहुंचते रहते हैं।
बेशक, राजधानी में शराब की दुकानें लगभग चक्रवृद्धि ब्याज की रफ्तार से खुल रही हैं। पर इनसे दिल्ली-6 बची हुई थी, लेकिन जब सब कुछ बदलेगा तो अपनी पुरानी दिल्ली क्यों नहीं बदलेगी। ये पांचों दुकानें मेन रोड पर हैं। इनके कस्टमर सारी दिल्ली से होते हैं फिर भी ज्यादातर कस्टमर शाहजहांनाबाद वाले ही होते हैं। गौर करने वाली बात ये है कि इन शराब की दुकानों के खुलने का कभी विरोध नहीं हुआ। इसी तरह से इन्हें बंद करवाने की किसी सियासी पार्टी या सामाजिक संगठन ने कोशिश भी नहीं की। ये पुरानी दिल्ली का जाज नहीं था। पुरानी दिल्ली के पुराने बाशिंदे याद करते हैं उस दौर को जब दरियागंज मेन बाजार में खुली एक शराब की दुकान को बंद करवाने के लिए अरुण आसफ अली, सरला शर्मा, मीर मुश्ताक अहमद और सुभद्रा जोशी जैसे सामाजिक-राजनीतिक नेताओं ने धरने-प्रदर्शन किए थे।
ये बातें 70 के दशक के शुरुआती सालों की हैं। सरकार को झुकना पड़ा था। दुकान बंद करवा दी गई थी। अरुणा आसफ अली और मीर मुश्ताक अहमद क्रमश: डिलाइट के पीछे और दरियागंज में ही दशकों से रह रहे थे। सुभद्रा जोशी चांदनी चौक से सांसद भी रही थीं। ये सभी जमीनी नेता थे। ये दिल्ली की जनता के सुख-दुख में शामिल होते थे। जनता इनका सम्मान करती थी, लेकिन तब से दिल्ली का समाज बहुत बदल गया है और फिर अब यहां पर पहले वाले जन धड़कन से जुड़े नेता भी तो नहीं रहे जिनकी बातों को सुना जाता था।
सरकार उन रहनुमा के विरोध को खारिज नहीं कर पाती थी। हालांकि ये कहना भी ज्यादती होगी कि इन पांच दुकानों के खुलने से पहले दिल्ली-6 में सभी आध्यात्मिक जल जैसा कोई तरल पदार्थ ही पीना पसंद करते थे। तब दिल्ली-6 के मदिरा के शैदाई कश्मीरी गेट मेन मार्केट में बीते करीब 60-70 साल से चल रही और कनॉट प्लेस की शराब की दुकानों से अपना कोटा ले आते थे, लेकिन उन्हें अपना गला तर करने के लिए मशक्कत तो करनी पड़ती थी। उनके पड़ोस में शराब नहीं बिक पाती थी।
अभी इतनी तो गनीमत है कि दिल्ली-6 के भीतर शराब की दुकान को खोलने का साहस किसी ने नहीं किया है। बड़ा सवाल ये ही है कि क्या आने वाले समय में शाहजहांनाबाद को कोई अरुणा आसफ अली सरीखी जुझारु जन नेता मिलेगी या मिलेगा जो नई शराब की दुकानों के खोले जाने के सवाल पर बड़ा आंदोलन खड़ा करने की क्षमता रखता हो।
लेखक व इतिहासकार
विवेक शुक्ला