यहां सभी धर्मों के लोग करते हैं सजदा
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तहत आने वाले इस ऐतिहासिक स्मारक के कई रोचक किस्से हैं।
ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह कुतुब साहिब की दरगाह के नाम से लोकप्रिय है। इस ऐतिहासिक कुतुब साहिब की दरगाह पर सभी धर्मों के लोग सजदा करते हैैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तहत आने वाले इस ऐतिहासिक स्मारक के कई रोचक किस्से हैं। महरौली स्थित इस दरगाह के आसपास आयातकार अहाता है जिसे कई शासकों ने अलंकृत किया था। इसकी पश्चिमी दीवार में कई रंगीन टाइल लगे हुए हैैं। इस दीवार के बारे में कहा जाता है कि इसे औरंगजेब ने जड़वाया था। ख्वाजा को विभिन्न शासक बड़ा सम्मान देते थे और उनमें से बहुत से बादशाहों की कब्र इनके आसपास बनाई गई हैं। यहां जो दफन किए गए शासकों में बहादुर शाह प्रथम, शाह आलम, अकबर द्वितीय शामिल हैं। यहां तक ही मुगलों के आखिरी बादशाह बहादुर शाह जफर ने भी अपनी कब्र यहां बनवाई थी, लेकिन उन्हें कैद कर रंगून भेज दिया गया जहां उनकी मृत्यु हो गई और उन्हें वहीं दफन कर दिया गया।
इस दरगाह के आसपास कई स्मारक भी हैैं। आर्किटेक्ट कृतिका देसाई बताती हैैं कि यहां अलग अलग प्रयोग के लिए कई फाटक बनाए गए। इसके साथ नौबत खाना, मजलिस खाना, तोश खाना, मस्जिद, तालाब और बावली भी बनाए गए। इन सभी में इस्लामिक वास्तुकला की गहरी छाप दिखती है। संगमरमर के पत्थरों पर मुगल जाली वाला काम देखा जा सकता है। मुगल आर्किटेक्ट की विशेषता अनुसार त्रिकोणीय मेहराब, जालीदार, अलग अलग कमरे व संकरी सीढिय़ा यहां दिखाई देती हैं।
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