बांग्ला समाज की वजह से नहीं, ऐसे पड़ा नाम इसका बंगाली मार्केट
बंगाली मार्केट के आसपास के सारे क्षेत्र को नई दिल्ली के सबसे पहले विकसित हुए आवासीय इलाकों में गिना जा सकता है।
दिल्ली या एनसीआर में बस गए बांग्ला समाज का जिक्र होने पर कभी बंगाली मार्केट की चर्चा नहीं होती। पहली नजर में तो होनी चाहिए। नाम से लगता है, मानो इधर बांग्लाभाषी रहते होंगे या उनका इससे कोई संबंध रहा होगा। पर यह बात नहीं है। बंगाली मार्केट का नाम पड़ा लाला बंगाली मल लोहिया (1887-1937) के नाम पर। वे दिल्ली के एक धनी वैश्य परिवार से संबंध रखते थे। परिवार का कपड़े का लंबा-चौड़ा कारोबार था। उनके जीवन में उनके परिवार ने जिधर बंगाली मार्केट स्थित है, वहां पर काफी जमीन खरीदी। उन्होंने ही 1935 से 1940 के बीच ये मार्केट स्थापित की। शुरू-शुरू में तो यह मार्केट सुनसान ही रहती थी। दुकानों के बाहर कुछ खोमचे वाले भी बैठने लगे क्योंकि इधर तानसेन रोड, बाबर रोड, वकील लेन वगैरह में सरकारी और निजी घर बनने लगे थे।
बंगाली मार्केट के बंगाल से संबंधों को लेकर भ्रम की स्थिति काफी व्यापक स्तर पर है। कुछ साल पहले बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद भारत आईं। उनका एक कार्यक्रम बंगाली मार्केट से सटे फिक्की सभागार में भी था। उधर बहुत से पत्रकार उनके कार्यक्रम को कवर कर रहे थे। तब शेख हसीना की टोली के एक सदस्य ने हमसे पूछा क्या इधर बहुत बांग्लाभाषी रहते हैं। इस सारे इलाके के नाम से तो यही लगता है। जाहिर है, उन्हें निराश ही हाथ लगी होगी जब उन सज्जन को बताया गया कि इधर कुछ ही बांग्ला भाषी परिवार रहते हैं। बंगाली मार्केट का नाम तो लाला बंगाली मल के नाम पर रखा गया था।
दरअसल बंगाली मार्केट के आसपास के सारे क्षेत्र को नई दिल्ली के सबसे पहले विकसित हुए आवासीय इलाकों में गिना जा सकता है। दिल्ली-6 के संपन्न परिवारों ने इधर बाबर रोड, टोडरमल लेन, फायर ब्रिग्रेड लेन, तानसेन मार्ग वगैरह में प्लाट खरीदे। और बंगाली मार्केट की बात हो तो यहां के बाबर रोड और तानसेन रोड की भी बात करने का मन करता है। बाबर भारत में मुगल वंश के संस्थापक थे। यानी वो खास शासक थे। लेकिन उनके नाम पर रखी सड़क छोटी सी है। हालांकि उनके वंशजों जैसे हुमायूं, अकबर, शाहजहां, औरगंजेब के नाम पर लुटियन दिल्ली के खासमखास इलाकों में सड़कें हैं। औरगंजेब के नाम पर रोड तो नहीं रही, पर लेन अब आबाद है।
और टोडरमल तो अकबर के नवरत्नों में से थे। मुगलकाल के स्वर्णिम काल यानी अकबर के दौर में दो ङ्क्षहदू क्रमश: बीरबल और राजा मान सिंह का बार-बार उल्लेख होता है, पर राजा टोडरमल का उस तरह से जिक्र नहीं होता। हालांकि वे भी अकबर के बेहद करीबी थे। वे अकबर के दरबार में राजस्व मंत्री थे। वे भी हिन्दू थे। उन्होंने ही सबसे पहले भूमि की पैमाइश की। वे जाति के खत्री बनिया थे और पैसे-कौड़ी के मामले में उस्ताद।
हालांकि कुछ इतिहासकार कहते हैं कि टोडरमल कायस्थ थे। उनके रहते हुए क्या मजाल कि अकबर के दरबार में एक पैसे की भी हेराफेरी हो जाए। टोडरमल के नाम पर दिल्ली के अलावा शायद ही किसी शहर में कोई सड़क हो।
विवेक शुक्ला, इतिहासकार
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