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कुदरत और शिल्प का मिलन

By Edited By: Published: Wed, 05 Dec 2012 08:25 PM (IST)Updated: Wed, 05 Dec 2012 08:25 PM (IST)
कुदरत और शिल्प का मिलन

[एल. मोहन कोठियाल]। सातवीं से लेकर दूसरी सदी ईसा पूर्व के बीच का दौर ऐसा रहा जब भारत में चत्रनों को काट कर उनमें मठ, मंदिर, विहार आदि बनाने का प्रचलन था। ओडिशा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश व तमिलनाडु में ऐसी कई प्रसिद्ध गुफाएं हैं। ऐसे गुफा मंदिरों का निर्माण श्रमसाध्य, मंहगा व दीर्घकालिक होता था। यही कारण रहा कि इनका निर्माण कई कालखंडों में हुआ। लगभग सभी गुफाएं राजाश्रय से निर्मित हुई। इनमें सबसे पहले बौद्ध गुफाओं का निर्माण हुआ। उसके बाद हिंदू व जैन गुफाएं बनी।

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ज्यादातर गुफा मंदिर सातवाहन, चालुक्यों, राष्ट्रकूटों के समय निर्मित हुए। उनके बाद सुदूर दक्षिण के पल्लव राजाओं ने मंदिर व गुफाएं आदि बनाईं। बादामी जिसका प्राचीन नाम वटापि था, को बसाने का श्रेय पूर्व चालुक्य नरेश पुलकेशिन प्रथम को जाता है जिन्होंने सन 540 ई. में इस जगह को राजधानी के लिए उपयुक्त व सुरक्षित पाते हुए अपनी राजधानी को बसाने का निर्णय लिया। यह अगले 216 सालों तक चालुक्यों की सत्ता का केन्द्र रही। चालुक्यों को पल्लवों के हाथों मात खानी पड़ी। परंतु सन 757 ई. में क्षीण हो चुके पल्लवों की सत्ता राष्ट्रकूटों के हाथों में जाने से वटापि का महत्व समाप्त हो गया।

बादामी की गुफाओं का निर्माण राजधानी बसने के बाद 550 ई. में प्रारंभ हुआ। बादामी में कुल चार गुफाएं है जो दक्षिणी चत्रनों पर बनी है। यह गुफाएं न लंबी है और न बहुत विशाल लेकिन शिल्प की दृष्टि से भारत की सबसे शानदार हिंदू गुफाओं में से हैं। बादामी में इन चार गुफाओं में पहली शिव गुफा है। दूसरी व तीसरी दो विष्णु गुफाएं हैं जबकि चौथी व अंतिम एक जैन गुफा है। इनके सामने उत्तरी पहाड़ी पर मध्य में व शिखर पर दो शिव मंदिर हैं। दोनों पहाडि़यों के मध्य लगभग आधा वर्ग किमी. क्षेत्रफल में फैला अगस्त्य कुंड है। कुंड के पूर्वी छोर पर भूतनाथ मंदिर है। ये सभी भारतीय पुरातत्व संरक्षण विभाग के अधीन सरक्षित स्मारकों की परिधि में है। इसके अलावा यहां पर दूसरे अन्य मंदिर भी है जिनमें से कुछ बादामी कस्बे की नई बस्ती में बीच अपने वजूद के लिए संघर्ष करते लगते हैं। बाकी या तो आक्रांताओं ने या फिर खजाने की आस में लोगों ने मटियामेट कर डाले। बादामी में जो भी मंदिर है उनके खंडित होने से उनमें उपासना नहीं होती है।

अजंता व ऐलोरा गुफाएं ज्वालामुखी के लावे के ठंडे होने से बनी चत्रनों से बनी हैं वहीं बादामी की गुफाएं गहरे भूरे रंग की कठोर बलुए पत्थर की चत्रनों पर बनी हैं। यह गुफाएं अजंता में निर्माण आरंभ होने के बाद की हैं व ऐलोरा की समकालीन हैं। बादामी में प्रथम गुफा प्रवेश द्वार से महज 50 मीटर पर है जबकि दूसरी, तीसरी व चौथी इससे आगे ऊंचाई पर हैं।

प्रथम गुफा नृत्याधिपति नटराज को समर्पित है। यह अंग्रेजी के वर्ण एल के आकार में बनी है। इसमें प्रवेश करने पर एक ओर नटराज के 18 हाथों युक्त अद्वितीय प्रतिमा है तो दूसरी ओर वटापि गणेश है। इसके अलावा गुफा में महिषासुमर्दनी, कार्तिकेय, हरिहर, अ‌र्द्धनारीश्वर भी चित्रित हैं। दीवारों व छत पर फूल-पुष्पों के अलंकरण है। यहां से कुछ मीटर नीचे उतर कर आगे का रास्ता आपको गुफा संख्या दो में ले जाता है जो एक विष्णु गुफा है। यह अपेक्षाकृत छोटी गुफा है। यहां पर विष्णु के कई अवतारों को पत्थरों की दीवारों पर उकेरा गया है। यहां पर विष्णु गरुड़ पर विराजित हैं। विष्णु का वामन व वाराह अवतार दर्शनीय है।

तीसरी गुफा सबसे शानदार हैं। यह परावासुदेव यानि विष्णु गुफा है। गुफा के बाहर एक बड़ा सा आंगन है। गुफा के प्रवेश पर द्वारपालक हैं। अंदर मुखमंडप है जबकि अन्दर स्तंभों से युक्त एक बड़ा हॉल है। इसके अंदर दीवारों पर विष्णु के विविध अवतार को चित्रंाकित किया गया है। यहां पर शेषनाग की कुंडली पर विराजित विष्णु हैं। इस गुफा की दीवारें के अलावा छत को भी उकेरा गया है। इसके कुछ हिस्से पर अजंता की तरह भित्ति चित्र थे। यह गुफा पुलकेशिन प्रथम के पुत्र कीतिवर्मन के काल में उनके भाई मंगलेश ने 578 ई. में बनवाई। इस गुफा के समक्ष हर पल तेज हवा चलती रहती है। हवा का प्रवाह कभी-कभी इतना तेज होता है कि संतुलन बिगड़ने पर वह किसी को भी सैकड़ों फीट गहरी खाइ में धकेल सकता है। तीसरी गुफा से कुछ ही मीटर आगे जैन गुफा है। इसमें भगवान महावीर की ध्यानस्थ मूर्ति के अलावा दूसरे जैन तीर्थकरों की प्रतिमाएं उकेरी गई हैं। इससे आगे मार्ग बंद है। इन गुफाओं के ऊपर तोप भी स्थापित हैं लेकिन बाद में असुरक्षति पाए जाने पर गुफा के शिखर का मार्ग पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया।

नीचे आकर उत्तरी पहाड़ी के लिए रास्ता जाता है जहां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का छोटा सा संग्रहालय हैं। यहां आकर चालुक्य शासकों व इस स्थान के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। संग्रहालय से आगे बादामी किले के लिए रास्ता है। यहां से चत्रनों के बीच होते हुए 200 मीटर की कठिन चढ़ाई है। जिसके बीच में निचला शिव मंदिर व शीर्ष पर ऊपरी शिव मंदिर हैं। यहां से बादामी गुफाओं व नगर का दूसरा नजारा दिखता है। दोनों पहाडियों के मध्य अगस्त्य कुंड है जिसके एक छोर पर भूतनाथ मंदिर है। माना जाता है कि यहां के शिल्पी उसी श्रृंखला के थे जिन्होंने ऐलोरा में निर्माण किया। इन गुफाओं को जिस तरह से योजनाबद्ध ढंग से बनाया गया उससे इनके निर्माताओं के अभियान्त्रिकी कौशल का अनुमान लगाया जा सकता है। गुफा को काटने में यह भी ध्यान दिया गया कि उसमें कहा व कितने स्तम्भों को बनाया जाए ताकि चत्रन के खोखला होने पर वह भार को सहन कर सके। गुफाओं को बनाने के साथ-साथ उनका अलंकरण भी योजनाबद्ध तरीके से किया गया है- स्तंभों से लेकर दीवारों में उकेरी गई प्रतिमाएं और आवासगृह तक। गुफा में अनेक शिलालेखों से इसके काल का सही-सही निधार्रण हुआ है।

बादामी घूमने आएं तो निकट ही चालुक्य नरेशों द्वारा स्थापित ऐहोले व विश्वविरासत स्थल पत्रडकल के मंदिरों को देखना न भूलें। बादामी व ऐहोले भी विश्व विरासत में स्थान पाने लायक संरचनाएं हैं, इसीलिए इन दोनों स्थानों को भी पत्रडकल के साथ ही विश्व विरासत घोषित करने की पहल चल रही है ताकि चालुक्य राजाओं की विरासत को एक साथ प्रस्तुत किया सके।

कब, क्या, कैसे

यहां से दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता जैसे महानगरों से सीधी रेल सेवा न होने से यहां आने वाले 80 से 85 फीसदी सैलानी कर्नाटक के ही होते हैं जबकि 8 से 10 फीसदी निकटवर्ती महाराष्ट्र व अन्य राज्यों व देशों से आते हैं। दिल्ली, मुंबई, चेन्नई से यहां आने के लिए शोलापुर या गुंटकल ही निकटस्थ स्थान है जहां तक सीधी रेल सेवा है। शोलापुर से गडग मार्ग पर बागलकोट व बादामी होते हुए बेंगलुरू के लिए सीधी रेल सेवा है। चाहे तो शोलापुर से बागलकोट रुककर बादामी जा सकते हैं जो वहां से मात्र 30 किमी दूर है। हैदराबाद से रेल से गडग के रास्ते आ सकते हैं जहां से बादामी 70 किमी दूर है। हुबली तक घरेलू उड़ानें भी हैं जहां से बादामी 100 किमी दूर है। बेंगलुरू, हैदराबाद, शोलापुर, बीजापुर, गुंटकल होसपेट से बागलकोट के लिए राज्य परिवहन निगम की सीधी सेवाएं हैं। बादामी देखने आने वाले ज्यादातर पर्यटक हम्पी की सैर के बाद यहां आते हैं। आने-जाने के लिएं बस, टैक्सी व थ्री व्हीलर हैं जो बुकिंग व शेयर आधार पर चलते हैं। यदि बागलकोट में रुकें तो एक सर्किल बनाकर बादामी, पत्रडकल व ऐहोले होते हुए वापस आ सकते हैं। बागलकोट में रुकने पर आप कृष्णा नदी बने अलमाटी बांध व समीप में बने रॉक गार्डन का नजारा देख सकते हैं। यदि हम्पी नहीें देखा है तो वापसी में हम्पी देखते हुए दक्षिण के दूसरे स्थानों को निकल सकते है। बादामी में रुकने के लिए कर्नाटक पर्यटन विभाग के और दूसरे कई होटल व रिजॉर्ट हैं। स्थानीय भाषा कन्नड होने के बावजूद लोग हिंदी बोल व समझ लेते हैं। बादामी की गुफाओं में बंदरों से दो-चार होना पड़ता है। इसलिए यहां पर खाने-पीने की सामग्री के साथ कतई न साथ आएं। प्रकृति के विविध रंगों का खजाना

माऊं की नैसर्गिक सुंदरता को विश्व के किसी भी पर्यटन स्थल से कमतर नहीं आंका जा सकता। विशाल हिमालयी पर्वतों की श्रृंखला, नदियां व झरनों समेत सैरगाह के तमाम खूबसूरत स्थान कुदरत ने उपहार में कुमाऊं को दिए हैं। इस खूबसूरती का आनंद लेने के लिए सैलानियों को सारी सहूलियतें देने में कुमाऊं मंडल विकास निगम पूरी तरह से मुस्तैद है। कुमाऊं में कोई सी भी जगह छांट ले, एक शांत व खूबसूरत हनीमून के लिए बेहद फिट रहेगी।

छह जिलों वाले कुमाऊं अंचल को अंग्रेजों के समय से ही पर्यटन के मानचित्र पर लाने के लिए तमाम कोशिशें की गईं। नैनीताल, रानीखेत व कौसानी जैसे इलाके उसी समय खासे विकसित हुए। नैनीताल की लोकप्रियता आज पूरी दुनिया में है। अंग्रेजों ने इस शहर का नाम ही छोटी बिलायत रख दिया। वहीं अल्मोड़ा कुमाऊं का सबसे पूराना शहर माना जाता है। मुनस्यारी, पिथौरागढ़, बागेश्वर की सैर किए बिना भी कुमाऊं भ्रमण पूरा नहीं होता। लाखों पर्यटक हर साल यहां पहुंचते हैं।

कुमाऊं मंडल विकास निगम ने इस अंचल में पर्यटकों की सैर कराने के लिए तमाम सुविधाएं जुटाई हैं। निगम के लगभग 50 पर्यटक आवास हैं। इसके अलावा तीन होली-डे कैंप भी हैं। यह सब ऐसे स्थानों पर बनाए गए हैं जहां से नैसर्गिक सुंदरता का भरपूर लुत्फ उठाया जा सकता है। सभी आवास गृह अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित है। इनकी बुकिंग कहीं से भी ऑनलाइन की जा सकती है या महानगरों में निगम के दफ्तरों से भी की जा सकती है। नैनीताल, अल्मोड़ा, बिनसर, पिथौरागढ़, मुनस्यारी में मौजूद हैं। नैनीताल, रानीखेत, कौसानी, बिन्सर, पिथौरागढ़, चौकोड़ी, भीमताल, नौकुचियाताल, अल्मोड़ा, मुनस्यारी इत्यादि प्रमुख पर्यटन स्थलों पर 50 से 120 शैय्या क्षमता तक के पर्यटक आवास गृह हैं। कई जगह नेचर कैंप हैं जहां से पर्यटक नेचर वॉक व जंगली जानवरों को देखने का आनंद जीप सफारी, एलीफेंट सफारी, जंगल वाक इत्यादि के माध्यम से करते हैं।

कुमाऊं मंडल विकास निगम ट्रेकिंग टूर भी आयोजित करता है। हिमालय के कई सबसे खूबसूरत व रोमांचक ट्रेकिंग रूट कुमाऊं इलाके में हैं। पिंडारी ग्लेशियर, कफनी ग्लेशियर, सुन्दरढूंगा ग्लेशियर, मिलम ग्लेशियर, पंचाचूली ग्लेशियर आदि इनमें प्रसिद्ध हैं। इनके अलावा काली व रामगंगा नदियों में राफ्टिंग का प्रशिक्षण कराया जाता है। रॉक क्लाइंबिग, पैराग्लाइडिंग,माउंटेनियरिंग व वाटर स्पो‌र्ट्स जैसे एडवेंचर टूर भी कुमाऊं में भरपूर होते हैं। कुमाऊं मंडल विकास निगम ही प्रसिद्ध कैलाश-मानसरोवर यात्रा की भारतीय नोडल एजेंसी भी है। इसके अलावा 1990 से आदि कैलाश के लिए भी यात्रा का संचालन हर साल जून से सितंबर के बीच किया जाता है।

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