कुछ पल गुजारे चिनाब के किनारे
[योगिता यादव]। चंद्रभागा देवों की नदी है और चिनाब प्रेम की। दो नामों वाली इस नदी का किनारा अपने आंचल में समेटे हैं आध्यात्मिक प्रेम की अविस्मरणीय अनुभूति। महाभारत काल, बौद्ध काल, मुगल काल और स्वर्णिम डोगरा शासन का इतिहास समेटे यह किनारा आपकी राह तक रहा है- सैलानियों की भीड़ और ट्रैफिक के कानफोड़ू शोर से बिल्कुल अलहदा।
जम्मू से अखनूर
एक दूसरे से गले मिलने को बेताब दिखते हरे और ऊंचे पेड़ों के बीच से गुजरता है जम्मू से अखनूर की ओर का रास्ता। चिंता न करें, सड़क पक्की है और अच्छी भी। इसी सड़क पर आगे बढ़ते जाइए अखनूर की तरफ। रास्ते भर रणवीर नहर आपके साथ-साथ चलेगी। तब तक, जब तक चिनाब में उठती लहरों की ठंडक सीधे आप तक न पहुंचने लगे। अखनूर को जम्मू से जोड़ने के लिए चिनाब पर अब दो पुल बन चुके हैं। एक पुल से दिखाई देता है राजा विराट का किला तो दूसरे को पार करते ही पहुंच सकते हैं सीधे अंबारां। दोनों रास्तों से भ्रमित होने से बेहतर है हम कृष्ण का मार्ग चुनें। जहां से वे पहुंचे थे अखनूर। पांडवों को अज्ञातवास की समाप्ति की सूचना देने- ग्वाले के वेश में।
अखनूर का किला
महाभारतकालीन यह किला पुरातत्व महत्व का है। यह इस वक्त भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। मान्यता है कि इस किले का निर्माण राजा विराट ने करवाया था। जहां पांडवों ने अपने अज्ञातवास का समय गुजारा। किले के साथ ही सीढि़यों से नीचे उतरकर पांडव गुफा तक पहुंचा जा सकता है। यहां पांडवों ने अपना अज्ञातवास का समय गुजारा था।
पांडव गुफा
पांडव गुफा में प्रवेश करने से पहले ही प्रांगण में एक अद्भुत पेड़ है जिसकी जड़ तो एक ही है परंतु ऊपर जाकर वह एक तरफ से पीपल का नजर आता है और दूसरी तरफ से बरगद का। इसी पेड़ से कुछ दूरी पर एक शिला भी स्थापित है, जिस पर पुरुष और गाय के पदचिन्ह बने हुए हैं। लोककथाएं कहती हैं कि यह शिला उस समय को प्रमाणित करती है जब न घड़ी हुआ करती थी और न ही कैलेंडर। इसलिए अज्ञातवास का समय समाप्त होने की सूचना देने के लिए कृष्ण यहां ग्वाले का वेश में आए थे। लोगों की मान्यता है कि इस शिला पर उन्हीं के पदचिन्ह अंकित हैं, जिसे बाद में मंदिर में स्थापित कर दिया गया।
जिया पोत्ता घाट
पांडव गुफा से बाहर निकल कुछ दूरी पर बनी सैरगाह से होते हुए आप जिया पोत्ता घाट तक पहुंच सकते हैं। लगभग एक किलोमीटर लंबी इस सैरगाह से चिनाब का आनंद ही कुछ अलग है। यह वह घाट है जहां जम्मू के महाराजा गुलाब सिंह का राज्याभिषेक किया गया था। घाट की दीवारों पर पत्थरों में राज्याभिषेक का दृश्य उभारा गया है। विशेष अवसरों पर इसी घाट से शाम के समय चिनाब की आरती की जाती है। बैसाखी पर लगने वाला मेला घाट के आकर्षण को और बढ़ा देता है। इसी के पास है गुरुद्वारा सुंदर सिंह।
कामेश्वर महादेव मंदिर
यह भव्य और विहंगम मंदिर भी महाभारतकालीन बताया जाता है। यूं तो यह पूरा मंदिर ही आकर्षक है, जहां कई देवताओं के अलग-अलग मंदिर बने हुए हैं परंतु इसका मुख्य आकर्षण है इसके भीतर स्थापित तीन पिंडियां। यह पिंडियां राजा बरबरीक की बताई जाती हैं। बरबरीक भीम का पौत्र व घटोत्कच का पुत्र था। मान्यता यह है कि महाभारत के समय जब कृष्ण को यह मालूम हुआ कि बरबरीक युद्ध में कमजोर पक्ष की ओर से लड़ना चाहता है तो उन्होंने वरदान में बरबरीक से उसका सिर मांग लिया, जिसे उन्होंने बरबरीक की इच्छानुसार पर्वत पर स्थापित कर दिया। राजस्थान में इसे लोग खाटू श्याम जी के रूप में पूजते हैं। सिर कटा यह धड़ जब वापस घोड़े पर सवार हो अपने राज्य की ओर लौट रहा था तो लोगों ने अजीब सी इस आकृति को देखकर शोर मचाना शुरू कर दिया और तभी राजा बरबरीक का धड़, उनकी बाजू पर बंधा रुद्र और उनका घोड़ा, तीनों पिंडियों में बदल गए। प्रत्यक्षदर्शियों ने जब इन पिंडियों को खोदना चाहा तो वे और नीचे धसती चली गई। अंतत: इन्हीं पिंडियों के आसपास कामेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कर दिया गया।
अम्बारां के बौद्ध स्तूप
कामेश्वर महादेव मंदिर से कुछ ही दूरी पर नए पुल के किनारे पर स्थित है अम्बारां के बौद्ध स्तूपों के अवशेष। ये अवशेष प्रमाण हैं कि कभी यहां बौद्ध मतावलंबियों की अच्छी-खासी संख्या रहा करती थी। जैसे आप अंबारां गांव के भीतर प्रवेश करते जाएंगे जिज्ञासा और बढ़ती जाएगी। इसकी ड्योढ़ी पर बौद्ध स्तूपों के अवशेष है और भीतर मुगल स्थापत्य के प्रवेश द्वार। कुछ माह पहले दलाई लामा ने यहां आकर कहा था कि उन्हें यहां किसी दिव्य शक्ति का अहसास हो रहा है। निश्चित रूप से वह शक्ति और कोई नहीं, चंद्रभागा के उसी किनारे का सुकून है से व कहां जम्मू से अखनूर तक की दूरी तकरीबन 28 किलोमीटर है। इसके लिए जम्मू बस स्टैंड से बस ली जा सकती है। परंतु यदि आप हर स्थल का लुत्फ उठाना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि आप बस स्टैंड से ही प्राइवेट टैक्सी ले लें। चिनाब अर्थात चंद्रभागा का यह किनारा अब भी भीड़-भाड़ से बहुत दूर है। इसलिए अच्छे रेस्तरां या कैफेटेरिया जैसी सुविधाओं की अपेक्षा न ही रखें तो बेहतर होगा। हालांकि कामेश्वर महादेव मंदिर के भीतर एक ही समय में सौ से ज्यादा लोगों के ठहरने और भोजन का इंतजाम रहता है। सर्दियों की गुनगुनी दोपहर में राजमा, चावल और गलगल के खट्टे अचार का सात्विक स्वाद यहां लिया जा सकता है। अम्बारां के पास ही तीन सरकारी गेस्ट हाउस भी हैं। वहीं अखनूर शहर के भीतर आपको सुविधा की हर छोटी-बड़ी वस्तु उपलब्ध हो सकती है।
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