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योग एक विज्ञान है, जीवन जीने की विधि है

योग आत्मा का विषय है जो स्वानुभूति कराता है। मानव के विचारों को एकाग्र कर भौतिक से सूक्ष्म, सूक्ष्म से अतिसूक्ष्म तक ले जाकर आत्मीय-बोध कराता है। योग का संबंध अंत:करण और बाह्य दोनों से है। योग मानव को इहलौकिक और पारलौकिक दोनों की यात्र कराता है। योग शरीर, मन

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 11 Feb 2016 09:28 AM (IST)Updated: Thu, 11 Feb 2016 09:34 AM (IST)
योग एक विज्ञान है, जीवन जीने की विधि है
योग एक विज्ञान है, जीवन जीने की विधि है

योग आत्मा का विषय है जो स्वानुभूति कराता है। मानव के विचारों को एकाग्र कर भौतिक से सूक्ष्म, सूक्ष्म से अतिसूक्ष्म तक ले जाकर आत्मीय-बोध कराता है। योग का संबंध अंत:करण और बाह्य दोनों से है। योग मानव को इहलौकिक और पारलौकिक दोनों की यात्र कराता है। योग शरीर, मन और इंद्रियों की क्रिया है। एकमात्र योग ही ऐसी क्रिया है जो मन को वश में करने का मार्ग बताती है। योग जन्म से ही प्राप्त है। आसन-योग नहीं है। यह योग की एक बहिमरुखी क्रिया है जो शरीर को स्वस्थ रखती है, परंतु आसन को ही लोगों ने योग समझ लिया है। वैसे तो योग अनेक हैं और इसके सहयोग के बगैर बोधितत्व सत्य की प्राप्ति भी नहीं है। इसीलिए भक्ति के साथ योग है, ज्ञान के साथ भी योग है, क्रिया के साथ भी योग है, संकल्प के साथ भी योग है।
योग एक विज्ञान है, जीवन जीने की विधि है। योग एक व्यवस्थित नियम को प्रतिपादित करता है। योग शरीर को अनुशासित ढंग से रखता है। मन को उद्देश्यपूर्ण दिशा में चलने का बोध देता रहता है। योग एक प्रयोग भी है, क्योंकि यही मनुष्य को प्रकृति के अनुकूल चलने के लिए प्रेरित करता है। विचार गति है, भाव उत्पत्ति है और शब्द अभिव्यक्ति है। योग में सबका अपना महत्वपूर्ण योगदान है। यह पूरी तरह से शरीर के धर्म का प्रकृति के अनुकूल बोध कराता है।
मानव शरीर में ही संपूर्ण ब्रrांड का वैभव छिपा है। जिसे पहचानना और जानना आवश्यक है। संपूर्ण ब्रrांड की चेतना और प्रारूप को पाकर भी मानव सांसारिक वाटिका में भटकता रहता है। आकाश और घटाकाश का भेद जानते हुए भी मनुष्य ब्रrा और काया का विमोचन नहीं कर पाता। किनारे की खोज में लक्ष्य के भेदन में सामंजस्य स्थापित करता हुआ, वह स्वत: एक दिन अपने आपको जीवन तट पर खड़ा पाता है। समय दूर फेंक देता है, जीवन ढलने लगता है। तब व्यक्ति जन्म के उद्देश्य को लेकर प्रायश्चित करने लगता है, लेकिन तब वक्त समझौता करना छोड़ देता है। नदियों में जब पानी का बहाव रुक गया तब संगम स्थल तक नहीं पहुंचने के लिए पश्चाताप करने के सिवाय है ही क्या? इसलिए मेरा संदेश है कि योग को माध्यम बनाकर आज और अभी से शरीर रूपी प्रयोगशाला का उपयोग कर सदैव संकल्पित स्वरूप को प्राप्त कर ब्रह्ममय जीवन जिएं


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