कल की चिंता आज क्यों करें
भविष्य में सुख पाने के लिए अपने वर्तमान को दुखमय बना लेना नासमझी ही है।
एक अमीर व्यापारी को उसके मुनीम ने जानकारी दी, ‘आपके पास इतनी संपत्ति है कि आपकी सात पीढ़ी बिना कुछ किए ऐश-ओ-आराम से रह सकती है।’ व्यापारी इस चिंता में डूब गया कि मेरी आठवीं पीढ़ी का क्या होगा। वह इस चिंता में सूखने लगा।
तभी नगर में एक संत आए। व्यापारी ने संत को अपनी चिंता बताई। संत ने कहा, ‘इसका हल बड़ा आसान है। इसी नगर में एक गरीब वृद्धा रहती है, उसे आधा किलो आटा दान कर दो। अगर वह स्वीकार ले तो तुम्हारी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी।’ व्यापारी आधा किलो के बजाय एक क्विंटल आटा लेकर वृद्धा के झोपडे़ पर पहुंच गया। व्यापारी ने जब उसे देना चाहा, तो वृद्धा ने कहा- ‘मैं अकेली जान, क्या करूंगी इतना आटा?’ व्यापारी ने कहा- ‘एक क्विंटल नहीं तो यह आधा किलो रख लीजिए।’ वृद्धा ने कहा, ‘बेटा, आज के लिए पर्याप्त आटा मेरे पास है, मुझे जरूरत नहीं है।’ सेठ ने कहा, ‘इसे कल के लिए रख लीजिए।’ वृद्धा ने कहा, ‘बेटा, कल की चिंता मैं आज क्यों करूं? जैसे हमेशा प्रबंध होता है, वैसे ही कल का भी प्रबंध हो जाएगा।’ सेठ को सबक मिल चुका था। एक तरफ गरीब वृद्धा थी, जिसे कल के भोजन की चिंता नहीं थी और एक वह था, जो अथाह धन होते हुए भी आठवीं पीढ़ी की चिंता में घुला जा रहा था।
कथा-मर्म : भविष्य में सुख पाने के लिए अपने वर्तमान को दुखमय बना लेना नासमझी ही है।