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अपना सच्चा मित्र कौन है

अपना सच्चा मित्र कौन है? विचार करें तो मनुष्य का सच्चा मित्र धर्म ही है। मनुष्य के पंचभौतिक शरीर छोड़ने पर उसका धन भूमि में या तिजोरी में पड़ा रह जाता है। भवन खड़ा रह जाता है व पशु बंधे रह जाते हैं। प्यारी स्त्री शोक विह्वल भवन के दरवाजे

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 06 Feb 2016 10:55 AM (IST)Updated: Sat, 06 Feb 2016 10:58 AM (IST)
अपना सच्चा मित्र कौन है
अपना सच्चा मित्र कौन है

अपना सच्चा मित्र कौन है? विचार करें तो मनुष्य का सच्चा मित्र धर्म ही है। मनुष्य के पंचभौतिक शरीर छोड़ने पर उसका धन भूमि में या तिजोरी में पड़ा रह जाता है। भवन खड़ा रह जाता है व पशु बंधे रह जाते हैं। प्यारी स्त्री शोक विह्वल भवन के दरवाजे तक साथ देती है। परिवारीजन और मित्र श्मशान तक साथ देते हैं। परलोक मार्ग में मात्र धर्म ही साथ जाता है। नीतिशास्त्र कहता है कि परदेश में मनुष्य के लिए विद्या ही मित्र है। यानी उसके पास कोई अनुभव, कला आदि है तो लोग उसका आदर करेंगे। परिवार में आज्ञाकारिणी पत्नी मित्र है।
रोग होने पर दवा मित्र का कार्य करती है और मरने वाले के लिए एकमात्र धर्म ही मित्र है। धर्म क्या है? धर्म का सार क्या है? इसका उत्तर है कि धर्म का सार सुनकर उसको धारण करना चाहिए। धर्म का सार है कि जो आचरण आपके लिए प्रतिकूल है, उसका अन्य के लिए प्रयोग न करें। दूसरों के साथ वही व्यवहार करें, जो स्वयं आप चाहते हों। यदि आप चाहते हैं कि हमारी बहन-बेटी को कोई बुरी निगाह से न देखे तो आपको भी चाहिए कि आप किसी की बहन-बेटी को बुरी निगाह से न देखें। यदि आप दूसरे का झूठ बोलना पसंद नहीं करते तो आपको भी किसी के साथ झूठ व्यवहार नहीं करना चाहिए। जहां धर्म है, वहीं साथ में सुख भी है। धार्मिक जीवन बिताने से आप सदा सुखी रहेंगे। कोई मनुष्य त्रिभुवन का स्वामी रहकर भी दुखी रह सकता है और दरिद्र से दरिद्र भी विश्व का सबसे सुखी प्राणी हो सकता है।
प्रभु तो एक कदम और भी आगे बढ़ गए हैं। उन्होंने कहा है कि जहां धर्म है, वहीं पर जय है। धर्म वह प्रणाली या संस्था है, जिसकी सर्वागपूर्ण परिभाषा बन चुकी है और जिसे ‘सनातन धर्म’ के नाम से पुकारा जाता है। न तो किसी समय विशेष में इसका जन्म हुआ और न किसी विशेष संस्थापक से ही इसका श्रीगणोश हुआ। यह पृथ्वीगत सीमाबंधन को नहीं मानता। जितने लोग संसार में पैदा हो चुके हैं और जो उत्पन्न होंगे, वे सब इसी के अंतर्गत हैं। इसके नियम से मनुष्य बच नहीं सकता। हमारा धर्म सनातन है। यह त्रिपथगामी है। हमारा धर्म त्रिकर्मरत है। मानव की सभी प्रधान वृत्तियों में जो तीन वृत्तियां, ऊध्र्वगामिनी, ब्रrाप्राप्ति से संबंधित और बलदायिनी हैं, वे हैं सत्य, प्रेम व शक्ति। इन्हीं के द्वारा मानव-जाति की क्रमानुसार उन्नति हो रही है।


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