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हम क्या थे, क्या हो गए?

कहते हैं कि महावीर स्वामी का एक शिष्य अत्यंत धनी सेठ था। वह अत्यंत लोभी, कृपण और संग्रह करने की प्रवृत्ति वाला था, परंतु महावीर स्वामी की बातों को बड़े ध्यान से सुनता था।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 24 Feb 2015 10:28 AM (IST)Updated: Tue, 24 Feb 2015 10:33 AM (IST)
हम क्या थे, क्या हो गए?
हम क्या थे, क्या हो गए?

कहते हैं कि महावीर स्वामी का एक शिष्य अत्यंत धनी सेठ था। वह अत्यंत लोभी, कृपण और संग्रह करने की प्रवृत्ति वाला था, परंतु महावीर स्वामी की बातों को बड़े ध्यान से सुनता था।

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एक दिन महावीर स्वामी बोले, 'तुम क्या चाहते हो कि तुम्हारी आने वाली पीढिय़ां इतनी निकम्मी और नकारा हों कि तुम्हारी सारी मेहनत की कमाई का उपभोग वे करें? महावीर स्वामी की इस बात से उस सेठ की जीवन दिशा बदल गई। वह अश्रुपूर्ण नेत्रों से महावीर की ओर देखने लगा। तब महावीर स्वामी ने कहा कि 'तुम अपनी जरूरत का सामान रखकर बाकी सब जरूरतमंदों में बांट दो। उस सेठ ने ऐसा ही किया। यदि देखा जाए तो मनुष्य सद्संकल्पों के सहारे बड़े से बड़ा कार्य आसानी से कर पाने में सक्षम होता है, परंतु हममें से कितने लोग ऐसा कर पाते हैं, यह एक विचारणीय बात है।

क्या हमने कभी किसी जरूरतमंद को समर्थवान बनाने का सद्प्रयास किया? क्या कभी किसी असहाय, निराश्रित, गरीब के लिए हमारे हाथ आगे बढ़े? यदि हम इस दौड़ती-भागती, तनावभरी जिंदगी पर ध्यान दें, तो कुछ गिनती के लोग ही मिलेंगे, जो इस पैमाने पर खरा उतरते हैं। यदि आप भी उनमें एक हैं, तो नि:संदेह आप प्रशंसनीय हैं, आप सौभाग्यशाली हैं, जिस पर परमात्मा की कृपा दृष्टि है। हर दो-चार घर छोड़कर देखें, तो कोई न कोई वृद्ध मां-बाप अपने जीवन की सांस को बल प्रदान करने के लिए जूझ रहे हैं। निराश्रित-असहाय बच्चे दिशाहीन होकर घूम रहे हैं। उनके जीवन का क्षण कैसे उम्दा हो, यह एक बड़ा प्रश्न है। बहू और बेटियों की आबरू आए दिन लुट रही है। कहने को तो हम मानव बस्ती में रहते हैं, लेकिन जिस्म और जान दोनों ही सस्ते में बिक रहे हैं।

हम क्या थे, क्या हो गए? हम परम पिता परमेश्वर के अमृत पुत्र हैं, लेकिन अफसोस आज हमारा पतन इस कदर हो गया है कि मानवीयता कई बार शर्मसार होती है। आज आवश्यकता है, पुनर्जाग्रत होने की ताकि समाज और राष्ट्र दोनों के प्रति हम अपने कर्तव्य का निर्वहन कर सकें। हमें अपने उत्तरदायित्व का बोध हो। जीवन का एक-एक पल कीमती है, इसके मूल्य को समझे। जितने भी महापुरुष हुए, उन्होंने इन्हीं 24 घंटों में अथक मेहनत करते हुए इतिहास के पन्नों में अपने सद्कृत्यों से स्वयं को अमर किया। भला हम ऐसा कुछ करके जीवन को सफल क्यों नहीं बना सकते?


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