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बुद्धि का करें सदुपयोग

गणेश चतुर्थी (29 अगस्त) पर विशेष गणेश जी बुद्धि के देवता हैं। कोई भी कार्य प्रारंभ करने से पहले उनका नाम लेने का अर्थ है कि यदि हम बुद्धि का सदुपयोग करेंगे तो कार्य अवश्य सफल होगा। गणेश जी का रूप हमारे जीवन को एक सार्थक दिशा देता है। डॉ. प्रमिला दुबे का आलेख.. बुद्धि के देवता कहे जाने वाले गणेश जी सभी को ि

By Edited By: Published: Thu, 28 Aug 2014 01:37 PM (IST)Updated: Thu, 28 Aug 2014 02:36 PM (IST)
बुद्धि का करें सदुपयोग
बुद्धि का करें सदुपयोग

गणेश चतुर्थी (29 अगस्त) पर विशेष
गणेश जी बुद्धि के देवता हैं। कोई भी कार्य प्रारंभ करने से पहले उनका नाम
लेने का अर्थ है कि यदि हम बुद्धि का सदुपयोग करेंगे तो कार्य अवश्य सफल होगा। गणेश जी का रूप हमारे
जीवन को एक सार्थक दिशा देता है। डॉ. प्रमिला दुबे का आलेख..
बुद्धि के देवता कहे जाने वाले गणेश जी सभी को प्रिय हैं। वे अकेले ऐसे देवता हैं, जिन्हें कलाकार तरह-तरह की आकृतियों में बनाते हैं। चित्रकारों को उनमें सृजनात्मकता की तमाम संभावनाएं दिखती हैं। वे जितना बच्चों को पसंद हैं, उतना ही बड़ों को। गणपति शुभारंभ के प्रतीक बन गए हैं। किसी भी काम की शुरुआत को ही श्रीगणेश कहा जाता है। मतलब स्पष्ट है कि बिना बुद्धि के कोई काम करेंगे, तो वह सफल कैसे होगा। यानी काम में बुद्धि-विवेक को प्राथमिकता दें।
दरअसल, गणेश चतुर्थी यानी भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी गणेश जी का जन्मदिवस है। उनके जन्मदिवस पर आइए जानें गणेश जी की मनमोहक आकृति और उनके बुद्धि और विवेक वाले गुणों के अतिरिक्त वे अन्य कौन से गुण हैं, जो हमारे जीवन को बेहतर बना सकते हैं -
भालचंद्र है उनका नाम
गणेश जी के मस्तक (भाल) पर द्वितीया का चंद्रमा सुशोभित रहता है, इसलिए उन्हें भालचंद्र भी कहते हैं। चंद्रमा शीतलता का प्रतीक है। इसका अर्थ हम यह ग्रहण करें कि जिसके मन-मस्तिष्क में शीतलता और शांति होगी, वही बड़ी से बड़ी समस्याओं का समाधान सरलता से कर सकता है। आखिर वे बुद्धि के देवता हैं। बुद्धि तभी काम करती है, जब हमारा दिमाग ठंडा हो।
वे गजानन हैं
यानी उनका मुख (आनन) हाथी का है। हाथी का मुख होने की पौराणिक कहानी तो सभी ने पढ़ी होगी, लेकिन हमें जो ग्रहण करना है, वह यह है कि बुद्धि के स्वामी को हाथी की तरह धीर-गंभीर और बुद्धिमान तो होना ही चाहिए। हाथी स्वयं ही विशाल मस्तिष्क और विपुल बुद्धि का प्रतीक है। बड़े कान का अर्थ है बात को गहराई से सुना जाए। उनके कान सूप की तरह हैं और सूप का स्वभाव है कि वह सार-सार को ग्रहण कर लेता है और थोथा यानी कूड़ा-कर्कट को उड़ा देता है। इसी प्रकार मानव स्वभाव भी होना चाहिए। उसे अच्छी बातें ग्रहण करनी चाहिए और बेकार की बातों पर गौर नहीं करना चाहिए। लंबी सूंड तीव्र घ्राणशक्ति की महत्ता को प्रतिपादित करता है। जो विवेकी व्यक्ति है, वह अपने आसपास के माहौल को पहले ही सूंघ सकता है, संकटों की आहट सुन सकता है और वह अपने दिमाग का इस्तेमाल करके उनसे पार पाने का रास्ता भी तलाश सकता है।
एकदंत हैं गणेश
गणेश जी का एक ही दांत है, दूसरा दांत खंडित है। यह गणेश जी की कार्यक्षमता और दक्षता का बोधक है। एकदंत होते हुए भी वे पूर्ण हैं। यह इस बात का सूचक है कि हमें अपनी कमी का रोना न रोते हुए, जो भी हमारे पास संसाधन उपलब्ध हैं, उसी में हमें दक्षता के साथ कार्य संपन्न करना चाहिए।
वक्त्रतुंड महाकाय
गणेश जी का उदर यानी पेट काफी बड़ा है, इसलिए उन्हें लंबोदर भी कहा जाता है। आमतौर पर देखा जाता है, जो लोग गोल-मटोल होते हैं, वे हमेशा प्रसन्नचित्त रहते हैं। वे चाहे गणेशजी हों, लाफिंग बुद्धा हों या फिर सेंटा क्लाज हों। संभवत: उनके लंबोदर स्वरूप से हमें यह ग्रहण करना चाहिए कि बुद्धि के द्वारा हम समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं और सबसे बड़ी समृद्धि प्रसन्नता है।
पाश और अंकुशधारी
गणेश जी के हाथ में अंकुश और पाश हैं। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अंकुश और पाश की आवश्यकता पड़ती है। अपने चंचल मन पर अंकुश लगाने की अत्यंत आवश्यकता है। अपने भीतर की बुराइयों को पाश में फंसाकर आप उन पर अंकुश लगा सकते हैं।
विघ्नेश्वर और विघ्नविनाशक
गणेश जी को विघ्नेश्वर कहा जाता हैं। यानी वे विघ्नों के ईश्वर हैं। वहीं वे विघ्नों के विनाशक भी हैं। वे दो विपरीत गुणों के स्वामी हैं। यदि जीवन में सुख ही सुख हो, तो वह सुख भी दुख की तरह ही हो जाता है। दुखों के कारण ही हमें सुख की अनुभूति होती है। इसी प्रकार से हमें जीवन के हर पक्ष को स्वीकार करना चाहिए। विघ्न न आएं, तो हमें अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं हो पाता। जीवन से विघ्नों को हम
अपनी ही बुद्धि से दूर भी कर सकते हैं।
इस प्रकार, श्रीगणेश के बुद्धि और विवेक रूपी उनके स्वरूप के मर्म पर चिंतन करके अपने जीवन को सफल बनाया जा सकता है।


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