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आज बहुत से लोगों के जीवन में दुख और असंतोष इसी कारण है

जीवन में कुछ भी हासिल करने के लिए प्रयास करना पड़ता है। श्रम के बगैर कुछ भी नहीं मिलता। इसीलिए हर महापुरुष ने कर्म पर बल दिया है। कभी कर्म करने पर भी फल नहीं प्राप्त होता तो मनुष्य हताशा और कुंठा से ग्रस्त हो जाता है। इसके लिए या

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 26 May 2015 10:59 AM (IST)Updated: Tue, 26 May 2015 11:02 AM (IST)
आज बहुत से लोगों के जीवन में दुख और असंतोष इसी कारण है
आज बहुत से लोगों के जीवन में दुख और असंतोष इसी कारण है

जीवन में कुछ भी हासिल करने के लिए प्रयास करना पड़ता है। श्रम के बगैर कुछ भी नहीं मिलता। इसीलिए हर महापुरुष ने कर्म पर बल दिया है। कभी कर्म करने पर भी फल नहीं प्राप्त होता तो मनुष्य हताशा और कुंठा से ग्रस्त हो जाता है। इसके लिए या तो भाग्य को या परिस्थितियों और व्यक्तियों को उत्तरदायी मानकर जैसी स्थिति बनती है उसे वैसा ही स्वीकार कर लेता है।
आज बहुत से लोगों के जीवन में दुख और असंतोष इसी कारण है। यह जीवन की प्रगति पर स्वयं विराम लगा देने और अपनी खुशियों को घर में ही कैद कर देने जैसा है। किसी भी असफलता के तीन प्रमुख कारण होते हैं। पहला कारण है पात्रता। किसी भी वस्तु या लक्ष्य की प्राप्ति की इच्छा करने से पहले अपनी योग्यता देखनी चाहिए। इनके मध्य समानुपातिक संबंध नहीं होगा तो कार्य कैसे सिद्ध होगा। श्रेष्ठ यह है कि अपनी पात्रता को अपनी इच्छा के अनुकूल बढ़ाया जाए।
मनुष्य का अहंकार और अज्ञान उसे इनमें से एक भी कार्य नहीं करने देता। वह अपनी इच्छाएं दूसरों की प्रतिस्पर्धा और ईष्र्या के सापेक्ष तय करता है जो आधारहीन होती हैं। इसीलिए वे कभी पूर्ण नहीं हो पातीं। हर व्यक्ति बेहतर जीवन चाहता है। इसमें कुछ गलत नहीं, गलत है तो इच्छा और योग्यता के मध्य असंतुलन। गिलास में जग भर दूध नहीं समा सकता है। जग भर दूध के लिए जग चाहिए। दूसरा कारण है आत्मावलोकन में अरुचि। मनुष्य का स्वभाव है कि वह न तो दूसरों द्वारा इंगित की जा रही अपनी कमियों को देखना चाहता है और न ही स्वयं आत्म परीक्षण करना चाहता है। कई बार पात्रता होने के बावजूद प्रयासों की कमी के कारण सफलता नहीं मिलती। निरंतर आत्मावलोकन से विफलता को रोका जा सकता है। इसके लिए एकाग्रता और धैर्य चाहिए। धर्म और अपने इष्ट से इसके लिए प्रेरणा और ऊर्जा की याचना करने वाले ही अंतस परीक्षण कर पाते हैं और अपने लक्ष्य के निकट पहुंच जाते हैं। तीसरा प्रश्न है-आत्म विश्वास का। यदि ईश्वर की सत्ता और उसके न्याय पर विश्वास हो तो विफलता और निराशा कभी जीवन को छू नहीं सकती। मार्ग में अवरोध आ सकते हैं, किंतु मन का विश्वास उनसे पार पाने में सहायक होता है। संसार में कितने ही महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने जीवन के घोर अंधेरों से निकल कर अपने जीवन को ही नहीं आलोकित किया, बल्कि समूचे संसार को प्रकाशित और लाभान्वित किया।


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