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आज संपूर्ण जगत सौंदर्य के पीछे भागने पर विवश है

आज संपूर्ण जगत सौंदर्य के पीछे भागने पर विवश है। प्रत्येक मानव यही इच्छा रखता है कि वह सुंदर दिखे और अपनी सुंदरता के बल पर समाज को प्रभावित कर सके। पहले यह तथ्य महिलाओं पर लागू होता था, लेकिन वर्तमान परिवेश में पुरुष भी सौंदर्य को लेकर जागरूक हो

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 01 Sep 2015 11:23 AM (IST)Updated: Tue, 01 Sep 2015 11:26 AM (IST)
आज संपूर्ण जगत सौंदर्य के पीछे भागने पर विवश है
आज संपूर्ण जगत सौंदर्य के पीछे भागने पर विवश है

आज संपूर्ण जगत सौंदर्य के पीछे भागने पर विवश है। प्रत्येक मानव यही इच्छा रखता है कि वह सुंदर दिखे और अपनी सुंदरता के बल पर समाज को प्रभावित कर सके। पहले यह तथ्य महिलाओं पर लागू होता था, लेकिन वर्तमान परिवेश में पुरुष भी सौंदर्य को लेकर जागरूक हो गए हैं। भले ही हम सौंदर्य की परिभाषा आज तक नहीं समझ सके हैं। सौंदर्य को सहजता से दो भागों में आंतरिक व वाह्य में विभाजित किया जा सकता है। इनमें भी आंतरिक सौंदर्य पर कम, बल्कि वाह्य सौंदर्य को लेकर लोग अधिकाधिक चिंतित हैं। यही कारण है कि सौंदर्य दिखने के प्रयास में कृत्रिम प्रसाधनों का प्रचलन बढ़ा है, जबकि आंतरिक सौंदर्य के आवश्यक तत्व विचार, भाव, व्यवहार, लज्जा, मर्यादा व संवेदना आदि मूल्यहीन हो गए हैं। कभी-कभी तो ऐसा प्रतीत होता है कि मानव वह दिखने की कोशिश करता है जो वह होता ही नहीं है।
कृत्रिम प्रसाधनों से रंगी पुती सुंदरता के स्थान पर मानव यदि अपने अंतस में मानवीय गुणों का विकास करे तो इन गुणों से प्रकट होने वाले सौंदर्य न केवल शुभ फलदायी होगा, बल्कि इससे उसके जीवन को भी एक नई दिशा मिल जाएगी। सौंदर्य प्रसाधनों से बनावटी सौंदर्य से आप कुछ क्षण किसी को प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन कुछ समय पश्चात जब आपका बनावटीपन लोगों के सामने प्रकट होता है तो आपके समक्ष लज्जित होने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं रह जाता है। इसके विपरीत यदि कोई मानव गुणवान है और सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ता है तो न केवल उसका जीवन परिवर्तित हो जाता है, बल्कि समाज से भी सम्मान प्राप्त करता है।
यह विडंबना है कि आज समाज में मूल्यहीन लोगों की पूजा-अर्चना हो रही है, जबकि गुणवान व्यक्ति अपनी विवशता पर अश्रु बहाने पर विवश है, लेकिन यह भी परम सत्य है कि यह युग भी सदैव नहीं रहेगा और पाश्चात्य संस्कृति से ऊबकर लोग पुन: अपनी संस्कृति व सामाजिक मूल्यों को समङोंगे। इतिहास साक्षी है कि संसार में जितनी भी दिव्य आत्माओं ने जन्म लिया है, उन्होंने मानवीय गुणों के आधार पर आंतरिक व वाह्य सौंदर्य के संयोग की ऐसी मिसाल पेश की, जो उन्हें महानता के शिखर पर ले गई। भले ही उन्होंने कोई सौंदर्य प्रतियोगिता न जीती हो, लेकिन यही क्या कम है कि वे अपने गुणों के बल पर विश्व के हृदय पर राज करने में सफल हुए।


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