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यहां के मंदिर के शीर्ष पर त्रिशूल नहीं, बल्कि पंचशूल है

झारखण्ड के देवघर जिला स्थित वैद्यनाथ धाम सभी द्वादश ज्यातिर्लिगों से भिन्न है। यही कारण है कि सावन में यहां ज्योतिर्लिगों पर जलाभिषेक करने वालों की संख्या अधिक होती है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि किसी भी द्वादश ज्योतिर्लिग से अलग यहां के मंदिर के शीर्ष

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 31 Jul 2015 02:15 PM (IST)Updated: Fri, 31 Jul 2015 02:17 PM (IST)
यहां के मंदिर के शीर्ष पर त्रिशूल नहीं, बल्कि पंचशूल है
यहां के मंदिर के शीर्ष पर त्रिशूल नहीं, बल्कि पंचशूल है

देवघर। झारखण्ड के देवघर जिला स्थित वैद्यनाथ धाम सभी द्वादश ज्यातिर्लिगों से भिन्न है। यही कारण है कि सावन में यहां ज्योतिर्लिगों पर जलाभिषेक करने वालों की संख्या अधिक होती है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि किसी भी द्वादश ज्योतिर्लिग से अलग यहां के मंदिर के शीर्ष पर त्रिशूल नहीं, बल्कि पंचशूल है।

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यहां मनोरथ पूर्ण करने वाला कामना द्वादश ज्योतिर्लिग स्थापित है। पंचशूल के विषय में धर्म के जानकारों का अलग-अलग मत है। मान्यता है कि यह त्रेता युग में रावण की लंका के बाहर सुरक्षा कवच के रूप में स्थापित था। धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, भगवान विष्णु ने यहां शिवलिंग स्थापित किया था। उन्होंने एक ग्वाले का भेष धारण कर रावण को यहां रोका, जो कैलाश से शिवलिंग को उठाकर लंका ले जा रहा था।

मंदिर के तीर्थ पुरोहित दुर्लभ मिश्रा के अनुसार, धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि रावण को पंचशूल के सुरक्षा कवच को भेदना आता था, जबकि इस कवच को भेदना भगवान राम के भी वश में भी नहीं था। विभीषण द्वारा बताई गई युक्ति के बाद ही राम और उनकी सेना लंका में प्रवेश कर सकी थी।

धर्म के जानकार पंडित सूर्यमणि परिहस्त का कहना है कि पंचशूल का अर्थ काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा ईष्र्या जैसे पांच शूलों से मानव का मुक्त होना है, जबकि एक अन्य जानकार के अनुसार, पंचशूल पंचतत्वों- क्षिति, जल, पावक, गगन तथा समीरा से बने इस शरीर का द्योतक है। मंदिर के पंडों के मुताबिक, मुख्य मंदिर में स्वर्णकलश के ऊपर स्थापित पंचशूल सहित यहां के सभी 22 मंदिरों में स्थापित पंचशूलों को वर्ष में एक बार शिवरात्रि के दिन मंदिर से नीचे लाया जाता है तथा सभी को एक निश्चित स्थान पर रखकर विशेष पूजा-अर्चना के बाद फिर से वहीं स्थापित कर दिया जाता है। इस पूजा को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। ऐसा नहीं कि मंदिर पर चढ़कर कोई भी पंडित या पुजारी पंचशूल को उतार सकता है। पंचशूल को मंदिर से नीचे लाने और ऊपर स्थापित करने के लिए एक ही परिवार के लोगों को मान्यता मिली हुई है और उसी परिवार के सदस्य यह काम करते हैं।

यूं तो यहां वर्षभर भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन सावन के महीने में यहां प्रतिदिन 70 से 80 हजार भक्त बाबा वैद्यनाथ का जलाभिषेक करते हैं। सोमवार को इन भक्तों की संख्या एक लाख को पार कर जाती है। अधिकतर भक्त सुल्तानगंज की उत्तरवाहिणी गंगा से जलभर कर कांवड़ लेकर करीब 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर यहां पहुंचते हैं और उसी जल से भगवान का जलाभिषेक करते हैं।

वैद्यनाथ धाम मंदिर के प्रांगण में ऐसे तो विभिन्न देवी-देवताओं के 22 मंदिर हैं। मंदिर के मध्य प्रांगण में भव्य 72 फीट ऊंचा शिव का मंदिर है। इसके अतिरिक्त प्रांगण में अन्य 22 मंदिर स्थापित हैं। मंदिर प्रांगण में एक घंटा, एक चंद्रकूप और मंदिर में प्रवेश के लिए एक विशाल सिंह दरवाजा बना हुआ है।


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