विपदा में नकारात्मक विचार आते जो दुघर्टनाओं को जन्म देते
दुर्घटनाएं अक्सर मन की पीड़ा और संताप के रूप में हमारे शरीर में एकत्र होती रहती हैं। जब हम उस पीड़ा से अत्यंत व्यथित होते हैं, तो अपने साथ कुछ बुरा कर डालते हैं या मार्ग में बुरा हो जाता है। उसे ही दुर्घटना का नाम दे दिया जाता है।
दुर्घटनाएं अक्सर मन की पीड़ा और संताप के रूप में हमारे शरीर में एकत्र होती रहती हैं। जब हम उस पीड़ा से अत्यंत व्यथित होते हैं, तो अपने साथ कुछ बुरा कर डालते हैं या मार्ग में बुरा हो जाता है। उसे ही दुर्घटना का नाम दे दिया जाता है।
परेशानी से हमारे मानसिक विचार नकारात्मक हो जाते हैं जो दुर्घटना को बढ़ावा देते हैं। दुर्घटनाएं कभी-कभी क्रोध की अभिव्यक्ति होती हैं। क्रोध में व्यक्ति इतना पागल हो जाता है कि वह अपने साथ होने वाले अहित की भी परवाह नहीं करता।
पाइथागोरस कहते हैं कि क्रोध मूर्खता से शुरू होता है और पश्चाताप पर खत्म होता है। फिर भी कई लोग क्रोध से दूर नहीं रहते और दुर्घटनाओं को अपने गले लगाते हैं।
दुर्घटनाएं कुंठा का संकेत होती हैं, जो कई बार बोल न पाने की मजबूरी महसूस करने से भी घटित होती हैं। प्रसिद्ध लेखिका लुइस एल ने, 'यू कैन हील योर लाइफÓ नामक पुस्तक में लिखा है, 'विपदा में नकारात्मक विचारों से लोगों के साथ दुर्घटनाएं होती हैं। इसके विपरीत सकारात्मक भावों के साथ सहजता से जीवन जीने वाले लोगों को जीवन भर एक खरोंच तक नहीं आती। इसलिए अपने मन में दूसरों के प्रति ईष्र्या या द्वेष नहीं रखना चाहिए।Ó अध्यात्म व्यक्ति को शांति प्रदान करता है। उसे अहिंसक बनाता है और हिंसक प्रवृत्तियों से दूर रखता है। जिस तरह जीवन में सुख, प्रसन्नता और धन का आना-जाना लगा रहता है, उसी तरह दुर्घटनाएं भी व्यक्ति के जीवन के साथ जुड़ी हुई हैं। आकस्मिक दुर्घटना स्वाभाविक है, लेकिन वे दुर्घटनाएं जो जानबूझकर किसी व्यक्ति के साथ की जाती हैं, गलत हैं। सार्वजनिक स्थलों पर बम विस्फोट आदि ने मानव जाति को भयभीत कर दिया है। ये सभी आतंकवाद की आड़ में ऐसी दुर्घटनाएं हैं, जिन्हें नकारात्मक विचारों से ग्रस्त व्यक्तियों के द्वारा अंजाम दिया जाता है। दुर्घटनाएं परिवार समाज और देश को हिला देती हैं। इनसे परिवार व देश की आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर फर्क पड़ता है। ऐसा नहीं है कि दुर्घटनाओं को अंजाम देने वाले इनसे अछूते रहते हैं, बल्कि कुत्सित इरादों के साथ व्यक्तियों व देश को नुकसान पहुंचाने से स्वयं की भी क्षति होती है। हृदय से नकारात्मक भावों को निकाल कर भी दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है। जब मन में सुंदर विचार होंगे तो व्यक्ति देश व विश्व को सुंदर बनाने में अपना सहयोग करेगा।