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सफलता का सबसे प्रमुख अवरोधक क्रोध है

सफलता का सबसे प्रमुख अवरोधक क्रोध है। क्रोध मनुष्य का एक बहुत खतरनाक अवगुण है। क्रोध वह कीड़ा है जो सूक्ष्म रूप से मनुष्य के अंदर घुसता है और यदि उस कीड़े पर तुरंत नियंत्रण नहीं किया जाए तो वह विकराल रूप धारण कर लेता है और मनुष्य को विनाश

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 04 May 2015 11:57 AM (IST)Updated: Mon, 04 May 2015 12:03 PM (IST)
सफलता का सबसे प्रमुख अवरोधक क्रोध है
सफलता का सबसे प्रमुख अवरोधक क्रोध है

सफलता का सबसे प्रमुख अवरोधक क्रोध है। क्रोध मनुष्य का एक बहुत खतरनाक अवगुण है। क्रोध वह कीड़ा है जो सूक्ष्म रूप से मनुष्य के अंदर घुसता है और यदि उस कीड़े पर तुरंत नियंत्रण नहीं किया जाए तो वह विकराल रूप धारण कर लेता है और मनुष्य को विनाश के मार्ग पर धकेल देता है।

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क्रोध के बढऩे पर मनुष्य का मन, बुद्धि आदि उसके वश में नहीं रहते। क्रोध मनुष्य को असफलता, अपराध और गलत निर्णय की ओर ले जाता है। प्रख्यात वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु ने कहा है-''नाड़ी में आघात क्रोध से होता है। क्रोध बढ़ा तो आघात भी बढ़ा। जरा-सा क्रोध भी पीड़ा का कारण है। भय से नसें नष्ट होतीं हैं, ताप से और चिंता से झुलसती हैं। क्रोध को जीतना मृत्यु पर विजय है।ÓÓ क्रोधी मनुष्य आवेश में हत्या या आत्महत्या तक कर लेता है। उसके सोचने-समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है। क्रोध प्राय: साधारण कारणों से उत्पन्न होता है और साधारणत: ही उसे समाप्त भी किया जा सकता है। क्रोध मनुष्य को असफलता के पास तो पहुंचाता ही है, साथ ही उन लोगों को भी आहत करता है जो उसकी क्रोधाग्नि की चपेट में आते हैं। क्रोधी व्यक्ति का मानसिक संतुलन कभी ठीक नहीं रहता। क्रोध करने वालों से लोग दूर भागने लगते हैं। उनसे बात करने में कतराने लगते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि न जाने कब वे भड़क जाएं और झगड़ा हो जाए। एक तरह से ऐसे व्यक्ति समाज से कट जाते हैं जो उनकी सफलता के लिए अत्यंत घातक होता है।

अक्सर क्रोध पर नियंत्रण करने के लिए मु_ी भींच लेने या उल्टी गिनती करने की बात कही जाती है। क्यों क्रोध के समय में इंसान विवेक खो देता है? स्वभाव में चिड़चिडापन आ जाता है। बेसब्री में सही निर्णय लेना व उचित व्यवहार असंभव हो जाता है। इस तरह के व्यवहार से लोग खिन्न होते हैं। समस्याएं सुलझने की बजाए उलझ जाती हैं। क्रोध के समय शांत रहने और सब्र रखने में ही भलाई है। धीरे-धीरे समस्याएं सुलझने लगेंगी। एक शांत मस्तिष्क ही सही फैसले और उचित व्यवहार कर सकता है। इसी संदर्भ में किसी विद्वान ने कहा है कि अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। क्रोध को वश में कर लेने पर क्रोध बढ़ता है और आवेश को आत्मबल के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।


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