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समय की महिमा और मर्यादा में जीवन के सभी रहस्य समाए हैं

समय की महिमा और मर्यादा में जीवन के सभी रहस्य समाए हैं। समय का हर पल बहुमूल्य है। प्रतिक्षण बेशकीमती है। समय क्षण-क्षण की बूंदों से विनिर्मित एक अनंत धारा है, जिसमें जन्म के रूप में जीवन अनवरत बहता रहता है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 03 Mar 2015 10:36 AM (IST)Updated: Tue, 03 Mar 2015 10:40 AM (IST)
समय की महिमा और मर्यादा में जीवन के सभी रहस्य समाए हैं
समय की महिमा और मर्यादा में जीवन के सभी रहस्य समाए हैं

समय की महिमा और मर्यादा में जीवन के सभी रहस्य समाए हैं। समय का हर पल बहुमूल्य है। प्रतिक्षण बेशकीमती है। समय क्षण-क्षण की बूंदों से विनिर्मित एक अनंत धारा है, जिसमें जन्म के रूप में जीवन अनवरत बहता रहता है।

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काल का कोई क्षण सामान्य नहीं होता। यह असामान्य और अद्भुत होता है, क्योंकि वह कोई क्षण ही था, जिसने हमें जीवन दिया। वह कोई क्षण ही है जो सफलता और असफलता का अनुदान देता है। हर क्षण एक अनोखा अवसर लेकर आता है। उस क्षण के सदुपयोग में ही सच्ची सार्थकता है। अस्त-व्यस्त जीवन-शैली और नकारात्मक आदतें भी बहुमूल्य अवसरों को होली के समान जलाती रहती हैं। ये साधनों को, जिनके द्वारा सफलता पाई जा सकती हैं, उन्हें या तो नष्ट कर देती हैं या जटिल बना देती हैं। नवीनतम अनुसंधानों से स्पष्ट होता है कि मस्तिष्क के बाएं भाग में विश्लेषणात्मक बुद्धि होती है, जबकि दाएं भाग में कल्पना-शक्ति, जो समय के नियोजन में आवश्यक भूमिका निभाती है।

मस्तिष्क के दोनों भागों से संबंधित संज्ञान-बोध के समय का बेहतरीन सदुपयोग किया जा सकता है। इस आधुनिक वैज्ञानिक खोज में उपनिषद् के मंत्रसूत्र ही झलकते दिखाई देते हैं। इन मंत्रसूत्रों में कहा गया है कि दृढ़ इच्छाशक्ति और प्रबल संकल्प-बल से समयचक्र को बलात इच्छानुकूल मोड़ा जा सकता है।

आजकल समय की महत्ता और प्रबंधन कुछ अधिक ही बढ़ गया है। ऐसा इसलिए, क्योंकि प्रतिष्ठित कार्पोरेट जगत अर्थतंत्र में कम समय में अधिक उत्पादकता पर जोर दे रहा है। यही बुद्धिमत्ता है। अध्यात्म-जगत में भी समय के महत्व को स्वीकारा गया है। समय का परिस्थिति के अनुरूप उचित और सार्थक ढंग से उपयोग करना समय-प्रबंधन कहलाता है। काल का नियम ही है-अनवरत-निरंतर बहना। इस सच्चाई को समझा जाए कि हम भी इस धारा में बह रहे हैं। इसलिए हम अपने समय, दिन, महीने और वर्षों का सदुपयोग करना सीख जाए। ऐसी कार्य योजना बनाई जाए, जिसमें प्रत्येक वर्ष के साथ प्रत्येक दिन और हर पल के उदे्श्यपूर्ण उपयोग का सुअवसर प्राप्त हो। ध्यान रहे, कार्य योजना एकांगी न हो, बहुआयामी हो। इसमें हमारे चिंतन, चरित्र और व्यवहार से लेकर परिवार, समाज के नियम-विधान को संपूर्ण रूप से समय के सामंजस्य के साथ प्रतिपादित किया जाए।


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