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मृत्यु ब्रह्मांड की शक्तियों से जीव का संबंध विच्छेद होने का नियम है

आज तक जीवन-मृत्यु के सत्य को ठीक से इसलिए नहीं समझा गया कि विज्ञान ने प्रत्यक्ष प्रमाण के आधार पर निष्कर्ष निकालने का प्रयास किया है। संसार में सब कुछ प्रत्यक्ष और परोक्ष, दोनों शक्तियों से बना है। जो प्रत्यक्ष है उसे अणु कहते हैं, जो अप्रत्यक्ष है उसे विभु

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 31 Jul 2015 11:15 AM (IST)Updated: Fri, 31 Jul 2015 11:30 AM (IST)
मृत्यु ब्रह्मांड की शक्तियों से जीव का संबंध विच्छेद होने का नियम है
मृत्यु ब्रह्मांड की शक्तियों से जीव का संबंध विच्छेद होने का नियम है

आज तक जीवन-मृत्यु के सत्य को ठीक से इसलिए नहीं समझा गया कि विज्ञान ने प्रत्यक्ष प्रमाण के आधार पर निष्कर्ष निकालने का प्रयास किया है। संसार में सब कुछ प्रत्यक्ष और परोक्ष, दोनों शक्तियों से बना है। जो प्रत्यक्ष है उसे अणु कहते हैं, जो अप्रत्यक्ष है उसे विभु कहते हैं। सृष्टि में दोनों महत्वपूर्ण हैं। जैसे शरीर अणु है तो प्राण विभु है। प्राणतत्व को समझना विज्ञान की समझ से बाहर की बात है। यही कारण है कि जन्म और मृत्यु को अभी तक विज्ञान नहीं समझ सका है।
आइंस्टीन जैसे विज्ञान के महान ज्ञाता के सामने जब परमाणु की अंतिम इकाई सामने आई तो आइंस्टीन स्वयं भ्रमित हो गए और निर्णय नहीं कर सके कि परमाणु की अंतिम इकाई प्रकाश है या ध्वनि है, क्योंकि विभु की व्यापकता विज्ञान की समझ से बाहर है। इसलिए विज्ञान जब जन्म और मृत्यु की चर्चा करता है तो निष्कर्ष के पहले ही चुप हो जाता है। भारत में अध्यात्म को विज्ञान के महाविज्ञान के रूप में स्वीकार किया गया। जीवन और मृत्यु के रहस्यों का खुलासा केवल अध्यात्म कर सकता है, विज्ञान नहीं। अध्यात्म मानता है कि यह पूरा ब्रह्मांड अस्तित्व है। विज्ञान की भाषा में इसे तत्व कह सकते हैं। अध्यात्म और विज्ञान, दोनों अपने-अपने विचार की अपने ढंग से व्याख्या करते हैं लेकिन सत्य यही है कि जीव और मृत्यु के रहस्य का समाधान अध्यात्म के पास है।
अध्यात्म इसे प्राण ऊर्जा कहता है। यह प्राण ऊर्जा संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है। मनुष्य के शरीर में जब पांच तत्व-पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश समतुल्य मात्र में एकत्र होते हैं तो शरीर बन जाता है। प्रश्न समतुल्यता का है। जब पांच तत्वों का समतुल्य मिश्रण बनता है तो शरीर बन जाता है। शरीर के अस्तित्व में आते ही उसमें प्राण प्रवेश कर जाता है। मां के गर्भ में पल रहे सूक्ष्म जीव का सीधा संबंध ब्रह्मांड से रहता है, वहीं से उसका पोषण होता है। वहीं से ऊर्जा लेकर जीवन शरीर रूप में बढ़ता रहता है। यही जन्म का कारण होता है। मृत्यु ब्रह्मांड की शक्तियों से जीव का संबंध विच्छेद होने का नियम है। जो शक्ति प्राणतत्व, जीवन ऊर्जा और गर्भ काल में जीव को मिलती है उसका सीधा संबंध ब्रह्मांड से टूट जाता है और जीव मर जाता है।


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