Move to Jagran APP

मानव-जीवन की सर्वोत्तम उपलब्धि शांति है

मानव-जीवन की सर्वोत्तम उपलब्धि शांति है। जीवन में जो दौड़ है वह इसी शांति के लिए है। कोई धन से शांति खरीदना चाहता है, कोई पद से और कोई सत्ता से, कोई अधिकार के बल पर। सच तो यह है कि शांति पाने के लिए बहुत सारे साधनों की जरूरत

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 21 Apr 2015 12:27 PM (IST)Updated: Tue, 21 Apr 2015 12:32 PM (IST)
मानव-जीवन की सर्वोत्तम उपलब्धि शांति है
मानव-जीवन की सर्वोत्तम उपलब्धि शांति है

मानव-जीवन की सर्वोत्तम उपलब्धि शांति है। जीवन में जो दौड़ है वह इसी शांति के लिए है। कोई धन से शांति खरीदना चाहता है, कोई पद से और कोई सत्ता से, कोई अधिकार के बल पर। सच तो यह है कि शांति पाने के लिए बहुत सारे साधनों की जरूरत नहीं होती। शांत और सुखी हर कोई बन सकता है, जबकि धनवान हर कोई नहीं बन सकता।

loksabha election banner

सामान्यतया प्रत्येक व्यक्ति में कुछ बनने की चाह होती है। यही चाह अशांति का मूल कारण है। दूसरे जैसा मकान, दूसरे जैसा अधिकार, दूसरे की जैसी कार, दूसरे के जैसा मोबाइल, दूसरे जैसे वस्त्र, इस प्रकार की नकल से प्रतिस्पर्धा का भाव पनपता है। प्रतिस्पर्धा से संघर्ष और संघर्ष से असंतोष, अतृप्ति और दुख होता है।

भगवान महावीर ने कहा है कि जो व्यक्ति बाहर से स्वयं को भरने की चेष्टा में है वह अशांत है। जो अर्थ या पदार्थ विशेष में सुख की खोज करता है, वह सुख-दुख रूपी दो तटों के बीच बहकर समाप्त हो जाता है। अपेक्षा है कि शांति के लिए अध्यात्म और भौतिकता के बीच संतुलन स्थापित किया जाए। महान दार्शनिक राधाकृष्णन के शब्दों में विज्ञान ने मानव को पदार्थ जगत में विजयी बनाया है, परंतु उसके साथ-साथ भीतरी रिक्तता से उसे भर दिया है। वर्तमान युग हमारे सामने प्रश्नचिह्न् बनकर खड़ा है। इस समस्या का समाधान भौतिकता में कदापि नहीं है। महावीर से पूछा गया था, शांति का मार्ग क्या है? उन्होंने कहा-आत्मा को देखो। इसी प्रश्न पर भगवान कृष्ण ने कहा-मन को देखो और बुद्ध ने कहा-सांस को देखो। परिणाम तीनों के समान हैं। श्वास दर्शन यानी अध्यात्म का दर्शन। इसी से मन शांत होता है, आत्मानुभव बढ़ता है और यही वास्तविक शांति का मार्ग है।

भगवान महावीर ने कहा है कि शांति को धरती पर उतरने के लिए योग्य पात्र चाहिए। आज स्वयं शांति किसी में समा जाने को आतुर है। विश्व कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा है कि घड़ा नदी के पानी के लिए जितना आतुर है, उससे अधिक आतुर है स्वयं नदी घड़े में समा जाने के लिए। शांति हमारे चारों ओर बिखरी पड़ी है। अपेक्षा है केवल उसका आह्वान करने की, पुकारने की। जिन्होंने भगवान को पुकारा, भगवान उनमें समा गए। शांति की खोज भीड़ से नहीं, एकांत से होती है, आचरण से नहीं अंतस से होती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.