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ऐसा जीवन ठहर-सा जाता है...

चुनौतियां जीवन में अनायास भी आती हैं और इन्हें योजनाबद्ध तरीके से आमंत्रित भी किया जाता है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 22 Jul 2016 10:20 AM (IST)Updated: Fri, 22 Jul 2016 10:23 AM (IST)
ऐसा जीवन ठहर-सा जाता है...
ऐसा जीवन ठहर-सा जाता है...

प्रकृति पहेलियां पूछने में माहिर है। उसकी पहेली बड़ी अबूझ और रहस्यमयी होती हैं। इन पहेलियों का हल जीवन के व्यापक अनुभव में ही खोजा-पाया जा सकता है। जो ढूंढ़ेगा, पाएगा अवश्य। प्रकृति में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसका समाधान नहीं है और जिसे पाया नहीं जा सकता। बस, इस गूढ़ता को जानने और वांछित की प्राप्ति के लिए हमें सदैव तत्पर और तैयार बने रहना चाहिए। जो ऐसा कर सकते है, उनकी अंतर्निहित क्षमताओं में वृद्धि होती है और उनके व्यक्तित्व का निरंतर विकास होता है।
चुनौतियां जीवन में अनायास भी आती हैं और इन्हें योजनाबद्ध तरीके से आमंत्रित भी किया जाता है। जो इन चुनौतियों से भागते हैं, पलायन करते हैं, उनका जीवन सामथ्र्यहीन, भयग्रस्त और कमजारियों से घिर जाता है, क्योंकि ऐसे लोग चुनौती को देखते ही तनावग्रस्त हो जाते हैं, तनाव से भर जाते हैं। उनकी शारीरिक एवं मानसिक शक्तियां काम करना बंद कर देती हैं।
आधुनिक शोधों से पता चलता है कि तनाव वस्तुत: चुनौतियों का समुचित प्रबंधन करने की क्षमता का अभाव और अपनी क्षमताओं का सही आकलन न कर पाने के कारण जन्म लेता है। परिस्थितिजन्य और स्वयं के बुलावे पर आई चुनौतियों को हम ठीक-ठीक जान नहीं पाते हैं। जब हम इन्हें नहीं जान पाते हैं तो इनसे जूझने का साहस नहीं होता है और हम ऐसी चीजों से भाग खड़े होते हैं, तब हमें तनाव देने वाले कारक डराते हैं और हम उनसे डरते हैं। हम अपनी क्षमताओं और सामथ्र्य से अनभिज्ञ बने रहते हैं। हमें विश्वास नहीं रहता कि हम इन चुनौतियों को स्वीकार कर सकते हैं और इनसे पार भी पा सकते हैं। हमारे पास अनगिनत सामथ्र्य है। इनमें से प्रमुख है हमारी भावना, ज्ञान और व्यवहार की शक्ति। जो चुनौतियों का सामना करते हैं, उनके पीछे उनकी शक्तियों की आधारशिला है। जिनमें ऐसी सामथ्र्य पैदा हो जाती है वे जीवन में तनाव में गिरकर भी तनावमुक्त होते हैं और वे चुनौतियों से बेहतर ढंग से जूझ लेते हैं। ध्यान रहे मानवीय मन सदा सकारात्मक और सुखद वातावरण में बने रहना जाहता है, ऐश्वर्य और भोग के बीच जीना चाहता है। ऐसा जीवन ठहर-सा जाता है, व्यक्तित्व निर्बल हो जाता है और अपनी निर्बलता की भ्रांति पनपती है।


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