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सभ्यता और महानता का प्रधान गुण सादगी है

सभ्यता और महानता का प्रधान गुण सादगी है। संसार भर के महापुरुषों ने ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के आदर्श को स्वीकार किया है और वे उत्थान पथ पर अग्रसर हुए हैं। व्यक्तिगत जीवन में अभाव, निर्धनता और गरीबी, नैसर्गिक सुख-शांति को नष्ट न कर सके, इसके लिए आवश्यक है कि

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 03 Jul 2015 09:25 AM (IST)Updated: Fri, 03 Jul 2015 09:29 AM (IST)
सभ्यता और महानता का प्रधान गुण सादगी है
सभ्यता और महानता का प्रधान गुण सादगी है

सभ्यता और महानता का प्रधान गुण सादगी है। संसार भर के महापुरुषों ने ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के आदर्श को स्वीकार किया है और वे उत्थान पथ पर अग्रसर हुए हैं। व्यक्तिगत जीवन में अभाव, निर्धनता और गरीबी, नैसर्गिक सुख-शांति को नष्ट न कर सके, इसके लिए आवश्यक है कि हम अपनी आवश्यकताएं उतनी ही रखें, जिन्हें सीमित आय में पूरा किया जा सके। सादगी का व्यवहार व सिद्धांत मात्र व्यक्तिगत जीवन में ही उपयोगी नहीं है, अपितु सामाजिक सुव्यवस्था के लिए भी अति महत्वपूर्ण है। सादगी से रहने वाले मनुष्य समाज के विकास में अपना योगदान दे सकते हैं।
महात्मा गांधी, महामना मालवीय, बिनोवा भावे, सरदार पटेल, गुरु गोलवलकर जैसे अनेकानेक भारतीय महापुरुषों ने अपने जीवन में सादगी का समावेश करके मनोयोग से राष्ट्र की महती और अविस्मरणीय सेवा की। समूची यूनानी सभ्यता को लोग आज सुकरात और अरस्तू के कारण जानते हैं। एक बार अरस्तू से किसी ने पूछा, ‘आप थोड़े से साधनों और न के बराबर संपत्ति में किस प्रकार सुखपूर्वक रह लेते हैं’। अरस्तू ने उत्तर दिया कि जहां तक जरूरतों का संबंध है, मैं उन्हें कम से कम रखता हूं, उन्हें बढ़ाता नहीं हूं। उनके औचित्य की मेरे पास एक ही कसौटी है कि उस कसौटी पर जो खरा उतर जाता है, उन्हें पूरा करना उचित समझता हूं, अन्यथा उन्हें अपनी सूची से अलग हटा देता हूं।
सादगी अपनाने कावस्तुत: मूल उद्देश्य यह है कि हम अपनी कार्यक्षमता बढ़ा लें और अधिक से अधिक कार्य करें। यह तभी संभव है जब श्रम, समय, मनोयोग जैसी अमूल्य संपत्ति की बचत की जा सके। सादगी, वस्तुओं व साधनों के उपयोग से नहीं रोकती, वह तो केवल दृष्टिकोण भर बदलती है और साधनों को और उपयोगी बनाती है। आवश्यकताओं का जन्म मनोरथ से होता है। मन कभी इस वस्तु को आवश्यक बताता है, तो कभी दूसरी वस्तु को। एक के पूरी होते ही और नवीन आवश्यकताएं उत्पन्न हो जाती हैं।
मनोरथ की कोई अंतिम सीमा नहीं होती। विवेकपूर्ण अपनाई गई सादगी सभ्यता को और आगे बढ़ाने में समर्थ होती है। जब साधनों का अभाव रहा तब भी महापुरुषों ने साधनों के बगैर सादगी अपनाकर मानवीय सभ्यता को ऊंचाइयों पर लाकर प्रतिष्ठित कर दिया है।


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