साधना में परमात्मा का अनुभव किया जाता है
वेद को श्रुति भी कहते हैं। नाम श्रुति इसलिए पड़ा, क्योंकि वाणी को सुनकर ही उसे लिखित रूप में रखा गया। वेद की वाणी एक व्यक्ति की बनाई या लिखी हुई नहीं है।
वेद को लोग श्रुति भी कहते हैं। इसका नाम श्रुति इसलिए पड़ा, क्योंकि वाणी को सुनकर ही उसे लिखित रूप में रखा गया है। वेद की वाणी किसी एक व्यक्ति की बनाई या लिखी हुई नहीं है।
लिपिबद्ध करने से पहले मंत्ररूपी शब्दों को सुना गया और फिर उन्हें लिपिबद्ध किया गया। दरअसल, यदि हम किसी मंजिल पर पहुंचना चाहते हैं, तो इसके लिए अनेक मार्ग हो सकते हैं। यदि कोई यह कहता हो कि मैंने उस मार्ग को अपनाया और मंजिल पा ली तो यह सत्य नहीं हो सकता। मंजिल पर पहुंचने के लिए प्रयास करना पड़ता है। केवल मार्ग पकड़ लेने भर भर से कोई मंजिल तक नहीं पहुंच जाता है। प्रार्थना परमात्मा के सम्मुख आत्मसमर्पण का माध्यम है। आत्मसमर्पण करने वाले के मन में अहंकार नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए शबरी को लें। शबरी ने सोचा कि वह प्रभु (राम) को बेर खिलाएगी, वह भी ऐसे जो खट्टे न हों। अब भला उसे कैसे पता होता कि यह बेर खट्टा है या मीठा।
इसलिए वह पहले बेर चखती है और मीठे होने पर उसे प्रभु को खिलाती है। ऐसा लगता है कि एक विचारधारा के समर्थक सामंतवादी विचारधारा से ग्रस्त हैं। ऐसे लोगों ने रामचरितमानस जैसे ग्रंथ को सामंतवाद का प्रतीक बताया है। शबरी द्वारा प्रभु राम को जूठा बेर खिलाना कौन सा सामंतवाद है? केवट को गले लगाने वाले राम सामंतवादी कैसे हो गये? सुग्रीव से मैत्री करके और वानर सेना बनाकर उस सेना के साथ लंका पर आक्रमण करना, कौन सा सामंतवाद है?
राजघराने में पैदा होना, कोई पाप नहीं है। भगवान बुद्ध और महावीर के रूप में जो कमल खिले वे भी राजघराने में पैदा हुए थे तो क्या वह भी सामंतवादी हो गए? आप इन परंपराओं पर मत चलें, आपको जिस मार्ग से होकर जाना है, उस पर बढ़ते चलें। अपने उद्देश्य को अपनी मंजिल पर ही रखें। साधना में परमात्मा का अनुभव किया जाता है, लेकिन हमारे-आपके जैसे लोग जो कुछ नहीं जानते, वे अज्ञानी हैं। आपके प्रत्येक कार्य में पूजा होनी चाहिए। आपको परमात्मा के साक्षात दर्शन तभी हो सकते हैं, जब आपके जीवन के जितने भी कार्य हैं, सभी के सभी पूजा बन जाएं। इस मामले में आप मार्ग की चिंता मत करना। मार्ग तो भ्रमित करते हैं। उद्देश्य तो एक ही है, लेकिन उसके कई मार्ग हो सकते हैं। आप उसकी चिंता मत करें। साधकों को साधना करने दें। साधना के माध्यम से परमात्मा का अनुभव प्राप्त करने दें।