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धर्म व विज्ञान हमें दूसरों के प्रति सहिष्णु बनाना सिखाते

धर्म और विज्ञान को भ्रांतिवश गलत प्रकार से परिभाषित किया जाता रहा है, जबकि ये दोनों एक ही हैं और दोनों का पारस्परिक संबंध है। विज्ञान को तो उसके वास्तविक रूप में समझ लिया जाता है, किंतु धर्म को उससे संबंधित व्यक्ति अपने दृष्टिकोण के अनुकूल ग्रहण करते हैं, जिसका परोक्ष प्रभाव विज्ञान के अर्थ पर भी होता है। धर्म और विज्ञान के इस द्व

By Edited By: Published: Mon, 20 Oct 2014 11:14 AM (IST)Updated: Mon, 20 Oct 2014 11:15 AM (IST)
धर्म व विज्ञान हमें दूसरों के प्रति सहिष्णु बनाना सिखाते
धर्म व विज्ञान हमें दूसरों के प्रति सहिष्णु बनाना सिखाते

धर्म और विज्ञान को भ्रांतिवश गलत प्रकार से परिभाषित किया जाता रहा है, जबकि ये दोनों एक ही हैं और दोनों का पारस्परिक संबंध है। विज्ञान को तो उसके वास्तविक रूप में समझ लिया जाता है, किंतु धर्म को उससे संबंधित व्यक्ति अपने दृष्टिकोण के अनुकूल ग्रहण करते हैं, जिसका परोक्ष प्रभाव विज्ञान के अर्थ पर भी होता है।
धर्म और विज्ञान के इस द्वैत भाव के कारण उत्पन्न समस्याओं पर गहन चिंतन और विचार विमर्श किया जाना आवश्यक है। विज्ञान और धर्म-एक दूसरे के विरोधी न होकर पूरक हैं और सभी धमरें का आधार अनुभवजन्य सौंदर्य है। अनुभूत सच्चाई ही धार्मिक विश्वास का आधार बनती है। इसी प्रकार विज्ञान भी विभिन्न गणितीय उपयोग व तार्किक सत्यों पर आधारित है।
वैज्ञानिक मान्यताएं सदैव नई खोजों की प्राप्ति में लगी रहती हैं और ये नई खोजें पुरानी खोजों का स्थान लेती रहती हैं। धर्म का आधार यदि विज्ञान सम्मत नहीं है, तो वह अधिक समय तक प्रभावी नहीं रह सकेगा। मानव जीवन का आधार सूर्य, चंद्रमा और तारागण के अस्तित्व, पृथ्वी द्वारा सूर्य की प्रदक्षिणा और ऐसी ही अनेक घटनाएं वैज्ञानिक विश्लेषणों पर आधारित हैं, किंतु इन सब का नियंता कोई भी नहीं है, यही धर्म द्वारा परिपुष्ट किया जाता है।
धर्म और विज्ञान हमें दूसरों के प्रति सहिष्णु बनाना सिखाते हैं और इसीलिए धर्म में घृणा और हिंसा का कोई स्थान नहीं है। वैज्ञानिक अपने आविष्कारों का उपयोग मानव मात्र की भलाई करने के लिए प्रयासरत रहते हैं और यही उनका मूल उद्देश्य भी है। धर्म का उद्देश्य भी मानव जीवन को और अधिक उपयोगी बनाने और मानव जाति की सेवा करना है। इस प्रकार दोनों में कोई अंतर नहीं है। महानतम वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि धर्म को विज्ञान का और विज्ञान को धर्म का पूरक बनना चाहिए। विज्ञान भौतिक पदार्थो का अध्ययन करता तो वहीं विज्ञान चेतना का अध्ययन करता है। धर्म और विज्ञान में परस्पर समन्वय से ही जीव मात्र का कल्याण संभव है। संसार की जिन सभ्यताओं ने इस सिद्धांत को अपनाया है, वे ही आज जीवित हैं और जिन्होंने इसके विपरीत आचरण किया है, वे इतिहास में सिमटकर रह गई हैं।


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