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रामकृष्ण परमहंस: जो आचरण में उतरे वह ज्ञान

सिर्फ पढ़ने या जानने से ज्ञान नहीं मिलता, उसे आचरण में अपनाने से मिलता है। जिस ज्ञान से चित्तशुद्धि होती है, वही यथार्थ ज्ञान है, बाकी सब अज्ञान हैें। कोरे पांडित्य का क्या लाभ? पंडित को बहुत सारे शास्त्र, अनेक श्लोक मुखाग्र हो सकते हैं, पर वह सब केवल रटने और दोहराने से क्या लाभ? अपन

By Edited By: Published: Fri, 19 Sep 2014 02:44 PM (IST)Updated: Fri, 19 Sep 2014 04:38 PM (IST)
रामकृष्ण परमहंस: जो आचरण में उतरे वह ज्ञान

सिर्फ पढ़ने या जानने से ज्ञान नहीं मिलता, उसे आचरण में अपनाने से मिलता है।

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जिस ज्ञान से चित्तशुद्धि होती है, वही यथार्थ ज्ञान है, बाकी सब अज्ञान हैें। कोरे पांडित्य का क्या लाभ? पंडित को बहुत सारे शास्त्र, अनेक श्लोक मुखाग्र हो सकते हैं, पर वह सब केवल रटने और दोहराने से क्या लाभ? अपने जीवन में शास्त्रों में निहित सत्यों की प्रत्यक्ष उपलब्धि होनी चाहिए।

जब तक संसार के प्रति आसक्ति है, कामिनी-कांचन का लालच है, तब तक चाहे जितने शास्त्र पढ़ो, ज्ञानलाभ नहीं होगा। तथाकथित पंडित ज्ञान की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। वे ब्रšा, ईश्वर, निर्विशेष सत्ता, ज्ञानयोग, दर्शन और तत्वज्ञान आदि कितने गूढ़ विषयों की चर्चा करते हैं, किंतु उनमें ऐसों की संख्या बहुत कम है, जिन्होंने इन विषयों की उपलब्धि की है। उन लोगों में से अधिकांश शुष्क और नीरस होते हैं, वे किसी काम के नहीं। जिस तरह मृदंग या तबले के बोल मुंह से निकालना आसान है, किंतु प्रत्यक्ष बजाना कठिन, इसी तरह धर्म की बातें कहना तो सरल है, किंतु आचरण में लाना कठिन।

क्या धार्मिक ग्रंथ पढ़कर भगवद्भक्ति प्राप्त की जा सकती है? नहीं। पंचांग में लिखा होता है कि अमुक दिन इतना पानी बरसेगा, परंतु समूचे पंचांग को निचोड़ने पर तुम्हें एक बूंद पानी भी नहीं मिलता। इसी प्रकार, पोथियों में धर्म संबंधी अनेक बातें लिखी होती हैं, पर उन्हें केवल पढ़ने से धर्मलाभ नहीं होता, उन्हें तो अपनाना पड़ता है।

जो लोग थोड़ी पुस्तकें व ग्रंथ पढ़ लेते हैं, वे घमंड से फूलकर कुप्पा हो जाते हैं। ग्रंथ ग्रंथ का काम न कर, ग्रंथि का काम करते हैं। यदि उन्हें सत्य प्राप्ति के इरादे से न पढ़ा जाए, तो दांभिकता और अहंकार की गांठ पक्की हो जाती है। लेकिन अभिमान-दांभिकता गरम राख की ढेरी के समान है, जिस पर पानी डालने से सब पानी उड़ जाता है। यानी ऐसे ज्ञान का कोई लाभ नहीं।

स्वामी रामकृष्ण परमहंस


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