Move to Jagran APP

पर्वो की परंपरा भारतीय संस्कृति, जीवन व समाज के लिए मंगलकारी

पर्व भावनाओं के अगणित रंगों का समुच्चय और उसकी अभिव्यक्ति का सरस माध्यम है। भारतीय संस्कृति में यह आध्यात्मिकता का प्रतिरूप है। पर्व का वाह्य कलेवर भले ही सामाजिक रूप में झलकता है, परंतु मूलत: उसका प्राण आध्यात्मिकता में बसता है और पल्लवित होता है। पर्व समष्टि के रूप में लोक-हितकारी और वैयक्तिक रूप में मानवीय विकास का दृढ़ आधार है

By Edited By: Published: Sat, 18 Oct 2014 11:42 AM (IST)Updated: Sat, 18 Oct 2014 11:43 AM (IST)
पर्वो की परंपरा भारतीय संस्कृति, जीवन व समाज के लिए मंगलकारी
पर्वो की परंपरा भारतीय संस्कृति, जीवन व समाज के लिए मंगलकारी

पर्व भावनाओं के अगणित रंगों का समुच्चय और उसकी अभिव्यक्ति का सरस माध्यम है। भारतीय संस्कृति में यह आध्यात्मिकता का प्रतिरूप है। पर्व का वाह्य कलेवर भले ही सामाजिक रूप में झलकता है, परंतु मूलत: उसका प्राण आध्यात्मिकता में बसता है और पल्लवित होता है। पर्व समष्टि के रूप में लोक-हितकारी और वैयक्तिक रूप में मानवीय विकास का दृढ़ आधार है।
ऐसे बड़े दुर्लभ अवसर होते हैं, जिसमें समष्टि के साथ व्यष्टि के कल्याण की उदात्त भावना भी जुड़ी हुई होती है। पर्व इन दोनों को साथ लेकर चलता है। इसमें उन्नति के साथ ही मानसिक और आध्यात्मिक उत्थान भी समाविष्ट है। पर्व के साथ सामाजिक और वैयक्तिक जीवन में नूतन चेतना का संचार होता है। इसमें नवप्राण व नव उमंग पर्वे के कारण ही हिलोरें लेती हैं। इसके अभाव की परिणति जीवन को शुष्कता, कठोरता और अतृप्ति से भर देती है। ऋतु-पर्वितन के अवसर पर कृषि से प्राप्त समृद्धि और निश्चिंतता ही इसका मुख्य आधार रहा है। पर्व को परंपरा से भी जोड़कर देखा जाता है। परंपरा एक प्रवाह है, जिसका प्राण विवेक है। पर्व-परंपरा और विवेक के समुचित सामंजस्य से ही समग्रता का बोध होता है। इसमें किसी का भी तिरोहित होना विकास नहीं, पराभव को दर्शाता है, जो आत्मिक जीवन की जीवंत प्रक्रिया बनकर जीवन को अनुशासित नहीं, आत्मानुशासित करे। इसी तरह जो सदैव जन-कल्याण का उपदेश देते हुए गूढ़ बंधनों से मुक्ति के अनगिनत आयामों को विस्तृत करे, जो आंतरिक और वाह्य दोनों को संपूर्ण रूप से विकसित करे, वह परंपरा है। हमारे यहां की परंपराएं शाश्वत हैं। यह पर्व-परंपरा मनुष्य के जीवन में विकास के नूतन आयाम खोलती है और समाज की कुरीतियों-अंधविश्वासों से बचाकर एक नवीन आधार प्रदान करती है। भारतीय समाज की बनावट और बुनावट इन पर्व-परंपराओं से सुदृढ़ होती है। भारतीय संस्कृति में प्रत्येक पर्व की परंपरा के पीछे एक सुनिश्चित सदुद्देश्य सन्निहित हैं। कालक्रम में पर्वो की वैज्ञानिकता के लोप हो जाने से ये रूढि़ बन गए और कोरे कर्मकांडों में सिमटकर रह गए।
पर्वो की परंपरा भारतीय संस्कृति, जीवन और समाज के लिए मंगलकारी है। पर्वो के मूलभूत-सूत्रों को बरकरार रखते हुए वर्तमान परिस्थिति के अनुरूप ढालना होगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.