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हमारा हृदय अज्ञान से आच्छादित है

हमारे सांसारिक रिश्ते भी स्वार्थ से जुड़े होते हैं। हमारी इच्छाएं अनंत आकाश के समान हैं जो हमें हमेशा तनावग्रस्त रखती हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 03 Dec 2016 11:20 AM (IST)Updated: Sat, 03 Dec 2016 11:24 AM (IST)
हमारा हृदय अज्ञान से आच्छादित है
हमारा हृदय अज्ञान से आच्छादित है

शांति हमारा स्वधर्म है, जिसकी खोज में हम सब लगे हुए हैं। आज हम ऐसे समय में जी रहे हैं जिसमें व्यक्ति बौद्धिक रूप से पहले से अधिक विकसित है। इतनी प्रगति के उपरांत भी हम अशांत क्यों हैं? शांति के लिए क्यों व्याकुल हैं? हमारे बौद्धिक और भौतिक संवर्धन के बावजूद हम शांति का अनुभव क्यों नहीं कर पा रहे हैं? यह चिंतनीय और विचारणीय प्रश्न हैं। हम इस तथ्य से परिचित नहीं हैं कि जिस शांति की खोज में हम भटकते रहते हैं वह हमारी मूल प्रकृति है, हमारा मूल स्वभाव है। हमारा हृदय अज्ञान से आच्छादित है। हमारा अशांत मन जब सकारात्मक ऊर्जा से रहित हो जाता है तो नकारात्मकता हमारे मन में प्रविष्ट हो जाती है और हमारी इंद्रियां शिथिल होकर अपना प्रभाव हमारे कर्मो पर डालती हैं। परिणामस्वरूप हमें अत्यंत दुख और पीड़ा की अनुभूति होने लगती है और हम उससे छुटकारा पाने की युक्तियां तलाशने लगते हैं। शांति की खोज में हमारा व्यवहार आक्रामक हो उठता है।
इस प्रयास में कुछ मानवीय बाधाएं इसे परिसीमित कर देती हैं, जिसमें पहली बाधा मानव शरीर है। हम न तो अपने पूर्वजन्म के बारे में जानते हैं और न ही भविष्य के बारे में। जानते हैं तो केवल अपने वर्तमान के बारे में, लेकिन वर्तमान में भी हम अनुशासित कर्म न कर अयथार्थ कर्म करते जाते हैं और भविष्य के लिए खाई खोदते रहते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि अच्छे व बुरे दोनों तरह के कर्मो का फल मनुष्य कई बार जन्म लेकर भोगता है।
कर्म ही पूजा है। यह कर्म ही आपको चिरकाल के लिए महान बनाता है। शांति एक सामूहिक भावना है। इसलिए दूसरों के लिए शांति की उम्मीद रखे बगैर हम केवल अपने लिए शांति की उम्मीद रखें, यह असंभव है। जब तक हम स्वयं के साथ-साथ समाज में शांति स्थापित करने के लिए सकारात्मक कदम नहीं उठाएंगे तब तक सार्वभौमिक शांति बनाए रखने की कामना पूरी नहीं हो सकेगी। भौतिकवाद के अंतर्गत हमने एक मिथ्या भ्रम पाल रखा है कि अधिक धन-संपदा अर्जित करकेहम शांति से जीवन व्यतीत कर सकते हैं, परंतु वास्तव में धन आज तक किसी को शांति नहीं दे सका है। इस संसार की नश्वर वस्तुएं न तो हमारे साथ जाएंगी और न ही हमें शांति दे सकती हैं। हमारे सांसारिक रिश्ते भी स्वार्थ से जुड़े होते हैं। हमारी इच्छाएं अनंत आकाश के समान हैं जो हमें हमेशा तनावग्रस्त रखती हैं।


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